माँ सुविचार लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
माँ सुविचार लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस- विषय पर निबंध नारी का सम्मान

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस- विषय पर निबंध नारी का सम्मान
महिला दिवस पर निबंध : नारी का सम्मान

   

रवीन्द्र गुप्ता

भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है- 'यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:। अर्थात्, जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। किंतु वर्तमान में जो हालात दिखाई देते हैं, उसमें नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे 'भोग की वस्तु' समझकर आदमी 'अपने तरीके' से 'इस्तेमाल' कर रहा है। यह बेहद चिंताजनक बात है। लेकिन हमारी संस्कृति को बनाए रखते हुए नारी का सम्मान कैसे किय जाए, इस पर विचार करना आवश्यक है।

माता का हमेशा सम्मान हो

 

मां अर्थात माता के रूप में नारी, धरती पर अपने सबसे पवित्रतम रूप में है। माता यानी जननी। मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है, क्योंकि ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। मां देवकी (कृष्ण) तथा मां पार्वती (गणपति/ कार्तिकेय) के संदर्भ में हम देख सकते हैं इसे।

 

किंतु बदलते समय के हिसाब से संतानों ने अपनी मां को महत्व देना कम कर दिया है। यह चिंताजनक पहलू है। सब धन-लिप्सा व अपने स्वार्थ में डूबते जा रहे हैं। परंतु जन्म देने वाली माता के रूप में नारी का सम्मान अनिवार्य रूप से होना चाहिए, जो वर्तमान में कम हो गया है, यह सवाल आजकल यक्षप्रश्न की तरह चहुंओर पांव पसारता जा रहा है। इस बारे में नई पीढ़ी को आत्मावलोकन करना चाहिए।

 

 

बाजी मार रही हैं लड़कियां

अगर आजकल की लड़कियों पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि ये लड़कियां आजकल बहुत बाजी मार रही हैं। इन्हें हर क्षेत्र में हम आगे बढ़ते हुए देखा जा सकता है । विभिन्न परीक्षाओं की मेरिट लिस्ट में लड़कियां तेजी से आगे बढ़ रही हैं। किसी समय इन्हें कमजोर समझा जाता था, किंतु इन्होंने अपनी मेहनत और मेधा शक्ति के बल पर हर क्षेत्र में प्रवीणता अर्जित कर ली है। इनकी इस प्रतिभा का सम्मान किया जाना चाहिए।

 

कंधे से कंधा मिलाकर चलती नारी

नारी का सारा जीवन पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने में ही बीत जाता है। पहले पिता की छत्रछाया में उसका बचपन बीतता है। पिता के घर में भी उसे घर का कामकाज करना होता है तथा साथ ही अपनी पढ़ाई भी जारी रखनी होती है। उसका यह क्रम विवाह तक जारी रहता है। 

 

उसे इस दौरान घर के कामकाज के साथ पढ़ाई-लिखाई की दोहरी जिम्मेदारी निभानी होती है, जबकि इस दौरान लड़कों को पढ़ाई-लिखाई के अलावा और कोई काम नहीं रहता है। कुछ नवुयवक तो ठीक से पढ़ाई भी नहीं करते हैं, जबकि उन्हें इसके अलावा और कोई काम ही नहीं रहता है। इस नजरिए से देखा जाए, तो नारी सदैव पुरुष के साथ कंधेसे कंधा मिलाकर तो चलती ही है, बल्कि उनसे भी अधि‍क जिम्मेदारियों का निर्वहन भी करती हैं। नारी इस तरह से भी सम्माननीय है।

 

विवाह पश्चात

विवाह पश्चात तो महिलाओं पर और भी भारी जिम्मेदारि‍यां आ जाती है। पति, सास-ससुर, देवर-ननद की सेवा के पश्चात उनके पास अपने लिए समय ही नहीं बचता। वे कोल्हू के बैल की मानिंद घर-परिवार में ही खटती रहती हैं। संतान के जन्म के बाद तो उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। घर-परिवार, चौके-चूल्हे में खटने में ही एक आम महिला का जीवन कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता। कई बार वे अपने अरमानों का भी गला घोंट देती हैं घर-परिवार की खातिर। उन्हें इतना समय भी नहीं मिल पाता है वे अपने लिए भी जिएं। परिवार की खातिर अपना जीवन होम करने में भारतीय महिलाएं सबसे आगे हैं। परिवार के प्रति उनका यह त्याग उन्हें सम्मान का अधि‍कारी बनाता है।

शेष अगले पेज पर...

बच्चों में संस्कार डालना

बच्चों में संस्कार भरने का काम मां के रूप में नारी द्वारा ही किया जाता है। यह तो हम सभी बचपन से सुनते चले आ रहे हैं कि बच्चों की प्रथम गुरु मां ही होती है। मां के व्यक्तित्व-कृतित्व का बच्चों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार का असर पड़ता है। 

 

इतिहास उठाकर देखें तो मां पुतलीबाई ने गांधीजी व जीजाबाई ने शिवाजी महाराज में श्रेष्ठ संस्कारों का बीजारोपण किया था। जिसका ही परिणाम है कि शिवाजी महाराज व गांधीजी को हम आज भी उनके श्रेष्ठ कर्मों के कारण आज भी जानते हैं। इनका व्यक्तित्व विराट व अनुपम है। बेहतर संस्कार देकर बच्चे को समाज में उदाहरण बनाना, नारी ही कर सकती है। अत: नारी सम्माननीय है।

 

 

अभद्रता की पराकाष्ठा

आजकल महिलाओं के साथ अभद्रता की पराकाष्ठा हो रही है। हम रोज ही अखबारों और न्यूज चैनलों में पढ़ते व देखते हैं, कि महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की गई या सामूहिक बलात्कार किया गया। इसे नैतिक पतन ही कहा जाएगा। शायद ही कोई दिन जाता हो, जब महिलाओं के साथ की गई अभद्रता पर समाचार न हो। 
 

क्या कारण है इसका? प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में दिन-पर-‍दिन अश्लीलता बढ़ती‍ जा रही है। इसका नवयुवकों के मन-मस्तिष्क पर बहुत ही खराब असर पड़ता है। वे इसके क्रियान्वयन पर विचार करने लगते हैं। परिणाम होता है दिल्ली गैंगरेप जैसा जघन्य व घृणित अपराध। नारी के सम्मान और उसकी अस्मिता की रक्षा के लिए इस पर विचार करना बेहद जरूरी है, साथ ही उसके सम्मान और अस्मिता की रक्षा करना भी जरूरी है।

 

 

अशालीन वस्त्र भी एक कारण

कतिपय 'आधुनिक' महिलाओं का पहनावा भी शालीन नहीं हुआ करता है। इन वस्त्रों के कारण भी यौन-अपराध बढ़ते जा रहे हैं। इन महिलाओं का सोचना कुछ अलग ढंग का हुआ करता हैं। वे सोचती हैं कि हम आधुनिक हैं। यह विचार उचित नहीं कहा जा सकता है। अपराध होने यह बात उभरकर सामने नहीं आ पाती है कि उनके वस्त्रों के कारण भी यह अपराध प्रेरित हुआ है।

 

‍इतिहास से

देवी अहिल्याबाई होलकर, मदर टेरेसा, इला भट्ट, महादेवी वर्मा, राजकुमारी अमृत कौर, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गांधी आदि जैसी कुछ प्रसिद्ध महिलाओं ने अपने मन-वचन व कर्म से सारे जग-संसार में अपना नाम रोशन किया है। कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी का बायां हाथ बनकर उनके कंधे से कंधा मिलाकर देश को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 

 

इंदिरा गांधी ने अपने दृढ़-संकल्प के बल पर भारत व विश्व राजनीति को प्रभावित किया है। उन्हें लौह-महिला यूं ही नहीं कहा जाता है। इंदिरा गांधी ने पिता, पति व एक पुत्र के निधन के बावजूद हौसला नहीं खोया। दृढ़ चट्टान की तरह वे अपने कर्मक्षेत्र में कार्यरत रहीं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन तो उन्हें 'चतुर महिला' तक कहते थे, क्योंकि इंदिराजी राजनीति के साथ वाक्-चातुर्य में भी माहिर थीं।

 

अंत में...

अंत में हम यही कहना ठीक रहेगा कि हम हर महिला का सम्मान करें। अवहेलना, भ्रूण हत्या और नारी की अहमियत न समझने के परिणाम स्वरूप महिलाओं की संख्या, पुरुषों के मुकाबले आधी भी नहीं बची है। इंसान को यह नहीं भूलना चाहिए, कि नारी द्वारा जन्म दिए जाने पर ही वह दुनिया में अस्तित्व बना पाया है और यहां तक पहुंचा है। उसे ठुकराना या अपमान करना सही नहीं है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी, दुर्गा व लक्ष्मी आदि का यथोचित सम्मान दिया गया है अत: उसे उचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए।

*वह शब्द सही मायने मे परिवार है !!!*

जन्मदिन क्या है..??
.
.
ये सवाल BBC World के एक प्रोग्राम में विश्व के तमाम बड़े VVIP की उपस्थिति में पूछा गया था..
.
जिसका सबसे सुंदर जवाब डॉ अब्दुल कलाम जी ने दिया था.
.
उन्होंने कहा था कि...
*जन्म दिन आपकी जिंदगी का एक मात्र वो दिन होता है जिस दिन आपके रोने की आवाज पर आपकी मां मुस्कराई थी*
.
.
उसके बाद फिर ऐसा दिन कभी नहीं आता कि औलाद के रोने पर मां मुस्कराये.


_______________________

*एक रात मैं अपने कमरे में सो रहा था के अचानक मेरी आँख खुल गई ।सामने यमदूत को खड़ा देखा। मैंने पुछा यहाँ कैसे ?यमदूत ने कहा कि मैं तेरी माँ को लेने आया हुँ । मैं घबरा गया,दिल बैठ गया, आँखें नम हो गई । मैंने यमदूत से कहा, एक सौदा करते है, तुम माँ की जिदंगी बक्क्ष दो और मुझे ले चलो । यमदूत ने मुस्कुरा कर कहा मै लेने तो तुझे ही आया था पर तुझ से पहले ये सौदा तेरी माँ ने कर लिया*


_____________________________

धरती  पर  प्यार  से  तीन  शब्दों    की  रचना  हुयी  है .......
1.   Boyfriend
2.   Girlfriend
3.   Family
किन्तु  एक  बात  ध्यान  देने             वाली  है  कि .....
Boyfriend   और
Girlfriend    इन  दो  शब्दों   के   
                  अन्तिम  तीन  अक्षर     से  बनता  है  "end" 
इसलिये  ये  सम्बन्ध  एक  दिन  ख़त्म   हो   जाते   हैं  परन्तु .....
तीसरा  शब्द  है  :
FAMILY  =  FAM  +  ILY     
जिसके  पहले  तीन  अक्षर  से     बनता  है :
Fam = Father  And  Mother 
आैर  अन्तिम  तीन  अक्षर  से :
ily  =  I  Love  You
अत:  जिस  शब्द   का   आरम्भ पिता  एंव  माता  से  और  अन्त   प्यार  के  साथ  हो,  वह   शब्द    सही  मायने  मे  परिवार  है !!!

_________________________________

*परणित पुरुष ने वाँचवा अने वंचावालायक*

*किन किन रिश्तों में पुरुष का नाम पहले आता है*

किन किन रिश्तों में पुरुष का नाम पहले आता है
दादा.दादी
नाना.नानी
मामा.मामी
काका .काकी
भइया.भाभी
पती.पत्नी
लेकिन सिर्फ एक रिश्ता है ऐसा है
जिसमे पुरुष बाद में आता हैऔर वो है
माँ बाप का
माँ-बाप साक्षात भगवान का रूप होते है ,
क्योंकि भगवान के ही नामों मे
पहले स्त्री का नाम आता है ,
जैसे....
गौरी शंकर , लक्ष्मी नारायण ,सीता राम ,राधे कृष्ण...
अगर सन्देश अच्छा लगे तो अपने परिचितों के साथ भी शेयर करे

मा विशे सुवाक्यो.

कल जो वो नासमज बहेन की पढाई के खिलाफ था, आज बीवी के इलाज के लिए लेडी डोक्टर ढूढता है..!

मेरी बाकी उंगलियां
उस उंगली से जलती है,
जिस उंगली को पकड़कर,
मेरी बेटी चलती है...!!!



________________________


"कल जो वो नासमज बहेन की पढाई के खिलाफ था, आज बीवी के इलाज के लिए लेडी डोक्टर ढूढता है..!  
                                        
"'बेटी बचाओ, बेटी पढाओ..!'

________________________

बेहतरीन शब्द.....

"जब मैंने जन्म लिया,वहां "एक नारी" थी जिसने मुझे थाम लिया......
     
                        || मेरी माँ ||

बचपन में जैसे जैसे मैं बड़ा होता गया "एक नारी" वहां मेरा ध्यान रखने और मेरे साथ खेलने के लिए मौजूद थी.....
                  || मेरी बहन ||

जब मैं स्कूल गया "एक नारी" ने मुझे पढ़ने और सिखने में मदद की......
                || मेरी शिक्षिका ||
जब भी मै जीवन से निराश और हताश हुआ और जब भी हारा तब "एक नारी" ने मुझे संभाला ...
              || मेरी महिला मित्र ||
जब मुझे सहयोग,साथी और प्रेम की आवश्यकता हुई तब "एक नारी" हमेशा मेरे साथ थी.....
              || मेरी पत्नी ||

जब भी मैं जीवन में कठोर हुआ तब "एक नारी" ने मेरे व्यवहार को नरम कर दिया.....
              ||मेरी बेटी||

जब मैं मरूँगा तब भी "एक नारी" मुझे अपने गोद में समा लेगी.......
              || धरती माँ ||
यदि आप पुरुष हैं तो हर नारी का सम्मान करें.....और यदि आप महिला हैं, उन में से एक होने पर गर्व  करे...

________________________


क्या खूब लिखा है एक पिता ने…
हमें तो सुख मे साथी चाहिये
दुख मे तो…
हमारी "बेटी" अकेली ही काफी है…

मघसॅ डे ने उजववा करतां ते मघर साथे अडघो कलाक पसार करशो तो पण तेना जीवनमां उत्सव जेवुं वातावरण रहेशे.

मातृशकितने सलाम :
आजे '' मघॅस डे '' छे. कवि कहे छे: ' हे मानवी शीतळता मेळववाने माटे दोडादोड शानी करे छे ? साची शीतळता तो मानी गोदमां ज छे, जे हिमालयनी टोच पर पण नथी. '
गुजराती कवि बोटादकरे मातृवंदनानुं अदभूत काव्य '' जननीनी जोड सखी नहीं मळे रे लोल '' ललकायुॅ छे. तो मां ते मां बीजा बघा वगडाना वा जेवी देशी कहेवत पण ओछा शब्दोमां मानो महिमा समजावी जाय छे.
तो मात्र मानी खुशी अने आनंद माटे अने उसत्वोना घजागरा छोडीने साचा मनथी तेने भेटजो.. तेने ऐक वखत कहेजो के तमे तेने चाहो छो...तमारा जीवनमां तेनुं स्थान विशेष छे... पछी मने नथी लागतुं के, भेट सोगादो के केक लाववाना घतिंग करवानी जरुर पडे. मघसॅ डे ने उजववा करतां ते मघर साथे अडघो कलाक पसार करशो तो पण तेना जीवनमां उत्सव जेवुं वातावरण रहेशे. कारण के ऐकाद दिवसनी उजवणीथी आ अमूल्य ऋुण उतरे ऐवुं नथी. आ प्रसंगे कवि अनिल चावडानी रचना याद आवे छे...
'' दिकरा साथे रहेवा मा ह्रदयमां हषॅ राखे छे.
  दिकरो बिमार मा माटे अलगथी नसॅ राखे छे.
  सहेज अडतामां ज दु:खो सामटा थई  जाय छे गायब.
  मा हथेळीमां सतत जादुई ऐवो स्पशॅ राखे छे.

जो रुला के खुद भी रो पड़े वही "माँ" है।

रुलाना हर किसी को आता है,
हँसाना भी हर किसी को आता है,
रुला के जो मना ले वो "पापा"  है,
और जो रुला के खुद भी रो पड़े वही "माँ" है।



________________________

आज लाखो रुपये
बेकार है
वो एक रुपये के सामने
जो MAA स्कूल जाते वक्त देती थी
________________________


-माँ-
माँ एक ऐसा शब्द हैं,
जिसे सिर्फ़ बोलने से ही अपने हृदय में प्यार और ख़ुशी की लहर आ जाती हैं...





________________________
"माँ" तू है, तो हम है...
"माँ" एक रिश्ता नहीं एक अहसास है,
भगवान मान लो या खुदा,
खुद वो माँ के रूप में हमारे आस पास है..
मारी वन्दनीय माँ अने मारा तमाम मित्रो ना माँ ने मारा प्रणाम..




 ________________________

माँ है तो लोरी है
शगुन है
माँ है तो गीत है
उत्सव है
माँ है तो मंदिर है
मोक्ष है
माँ है तो मुमकिन है शहंशाह होना,
माँ के आँचल से बड़ा
दुनिया में कोई साम्राज्य नहीं




________________________

I A S के साक्षात्कार में एक सवाल पूछा गया
यदि गर्दन नीची कर आपको खाने को कहा जाय
हर रोज अलग-अलग महिलाऐ बिना बोले आपको खाना परोसे..और ये पता लगाना हो कि आपकी मां ने किस दिन खाना परोसा तो...आपके पास क्या आधार है..?
" जिस दिन आधी रोटी मांगने पर भी,पूरी रोटी थाली में आ जाए तो समझ लूंगा
आज मां ने ही परोसा है ।"


________________________


प्रेम से जो देती है वो बहन है,
लड़ झगड़ के जो देता है वो भाई है,
पूछ कर जो देता है वो पिता है,
बिना मांगे जो सब कुछ दे दे, वो माँ है।   

       

माँ बिना इस सृष्टि की कल्पना अधूरी है

माँ संवेदना है, भावना है, अहसास है
माँ जीवन के फूलों में, खूशबू का वास है
माँ रोते हुए बच्चे का, खुशनुमा पालना है
माँ मरूस्थल में नदी या मीठा-सा झरना है
माँ लोरी है, गीत है, प्यारी-सी थाप है
माँ पूजा की थाली है, मंत्रो का जाप है
माँ आँखो का सिसकता हुआ किनारा है
माँ ममता की धारा है, गालों पर पप्पी है,
माँ बच्चों के लिए जादू की झप्पी है
माँ झुलसते दिनों में, कोयल की बोली है
माँ मेंहँदी है, कुंकम है, सिंदूर है, रोली है
माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है
माँ फूंक से ठंडा किया कलेवा है
माँ कलम है, दवात है, स्याही है
माँ परमात्मा की स्वयं एक गवाही है
माँ अनुष्ठान  है, साधना है, जीवन का हवन है
माँ जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है
माँ चूड़ीवाले हाथों के, मजबूत कंधो का नाम है
माँ काशी है, काबा है, और चारों धाम है||
माँ चिन्ता है, याद है, हिचकी है
माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है
माँ चूल्हा, धुँआ, रोटी और हाथों का छाला है
माँ जीवन की कड़वाहट में अमृत का प्याला है
माँ पृथ्वी है, जगत है, धूरी है
माँ बिना इस सृष्टि की कल्पना अधूरी है
माँ का महत्व दुनिया में कम हो नहीं सकता
माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता ।

महाकवि ओम व्यास ओम जी की इन अनमोल पंग्तियों के साथ

माँ तो माँ होती है! क्या मेरी, क्या तेरी?

माँ तो माँ होती है! क्या मेरी, क्या तेरी?
पति के घर में प्रवेश करते ही
पत्नी का गुस्सा फूट पड़ा :
"पूरे दिन कहाँ रहे? आफिस में पता किया, वहाँ भी नहीं पहुँचे! मामला क्या है?"
"वो-वो... मैं..."
पति की हकलाहट पर झल्लाते हुए पत्नी फिर बरसी, "बोलते नही? कहां चले गये थे। ये गंन्दा बक्सा और कपड़ों की पोटली किसकी उठा लाये?"
"वो मैं माँ को लाने गाँव चला गया था।"
पति थोड़ी हिम्मत करके बोला।
"क्या कहा? तुम्हारी मां को यहां ले आये? शर्म नहीं आई तुम्हें? तुम्हारे भाईयों के पास इन्हे क्या तकलीफ है?"
आग बबूला थी पत्नी!
उसने पास खड़ी फटी सफेद साड़ी से आँखें पोंछती बीमार वृद्धा की तरफ देखा तक नहीं।
"इन्हें मेरे भाईयों के पास नहीं छोड़ा जा सकता। तुम समझ क्यों नहीं रहीं।"
पति ने दबीजुबान से कहा।
"क्यों, यहाँ कोई कुबेर का खजाना रखा है? तुम्हारी सात हजार रूपल्ली की पगार में बच्चों की पढ़ाई और घर खर्च कैसे चला रही हूँ, मैं ही जानती हूँ!"
पत्नी का स्वर उतना ही तीव्र था।
"अब ये हमारे पास ही रहेगी।"
पति ने कठोरता अपनाई।
"मैं कहती हूँ, इन्हें इसी वक्त वापिस छोड़ कर आओ। वरना मैं इस घर में एक पल भी नहीं रहूंगी और इन महारानीजी को भी यहाँ आते जरा भी लाज नहीं आई?"
कह कर पत्नी ने बूढी औरत की तरफ देखा, तो पाँव तले से जमीन ही सरक गयी!
झेंपते हुए पत्नी बोली:
"मां, तुम?"
"हाँ बेटा! तुम्हारे भाई और भाभी ने मुझे घर से निकाल दिया। दामाद जी को फोन किया, तो ये मुझे यहां ले आये।"
बुढ़िया ने कहा, तो पत्नी ने गद्गद् नजरों से पति की तरफ देखा और मुस्कराते हुए बोली।
"आप भी बड़े वो हो, डार्लिंग! पहले क्यों नहीं बताया कि मेरी मां को लाने गये थे?"
इतना शेयर करो, कि हर औरत तक पहुंच जाये! मुझे आपके संस्कारों के बारे में पता है, पर ये आप उन तक जरूर पहूँचा सकते हैं, जिनको इस मानसिकता से उबरने की जरूरत है कि माँ तो माँ होती है! क्या मेरी, क्या तेरी?


___________________________

मासूमियत का इससे पवित्र
प्रमाण कहीं देखा है ????
एक बच्चे को
उसकी माँ मार रही थी
और बचाने के लिये बच्चा
माँ को ही पुकार रहा था...


___________________________

"गोल्ड" मे INVESTMENT करोगे तो
बेहतर PROFIT होगा,....
..."शेअर मार्केट" मे INVESTMENT करोगे तो
अच्छा PROFIT होगा,
...  "प्राँपर्टी में"INVESTMENT करोगे तो
अच्छे से अच्छा PROFIT होगा,
...लेकिन थोडा बहुत भी "माता-पिता की
सेवा" में INVESTMENT करोगे
तो कसम से ऐसा PROFIT होगा
की जीवन में कभी INVESTMENT
करने की जरुरत नहीं पड़ेगी । 





___________________________



माँ थी मोटुं कोई नथी,  कारण... 

सजा तो मिलनी ही थी...

वृद्धाश्रम में माँ को छोड़कर वो पलटा ही था की....
माँ ने आवाज़ देकर बुलाया...
बेटा अपने मन में किसी प्रकार का बोझ मत रखना..
तुझे पाने के लिए तीन बेटियो की भ्रूण हत्या की थी...
सजा तो मिलनी ही थी...




मां जो भी बनाए उसे बिना नखरे किये खा लिया करो..."

क्युंकि दुनिया में ऐसे लोग भी है जिनके पास या तो खाना नही होता या मां नही होती..