मन में से अहंकार निकल जाए तो.. जीवन जीने में मज़ा आ जाता है..

 *रिश्तों की रस्सी कमजोर तब* 

          *हो जाती है ,.....*

    *जब  इंसान  गलत  फहमी में* 

          *पैदा होने वाले......*

    *सवालों  के  जबाब  भी खुद*

          *ही बना लेता है.....!*

    *हर   इंसान   दिल   का  बुरा*

          *नहीं होता ......  ,*

    *बुझ जाता है चिराग अक्सर* 

          *तेल की कमी के कारण...,* 

    *हर बार  कसूर हवा का नहीं* 

          *होता.......!!*

        *Have a nice day*

   

सुपर सुविचार


"किसी बात को  सिर्फ इसलिए मत मानो कि ऐसा सदियों से होता आया है, परम्परा है, या सुनने मे आई है । इसलिए मत मानो कि किसी धर्म शास्त्र, ग्रंथ में लिखा हुआ है या ज्यादातर लोग मानते है । किसी धर्मगुरु, आचार्य, साधु-संत, ज्योतिषी की बात को आंख मूंद कर मत मान लेना । किसी बात को सिर्फ इसलिए भी मत मान लेना कि वह तुमसे कोई बड़ा या आदरणीय व्यक्ति कह रहा है बल्कि *हर बात को पहले बुद्धी, तर्क, विवेक, चिंतन व अनुभूति की कसौटी पर तोलना, कसना, परखना, ओर यदि वह बात स्वयं के लिए, समाज व सम्पूर्ण मानव जगत के कल्याण के हित लगे, तो ही मानना ।"*                                          


"अपने दीपक स्वयं बनो"


सुपर सुविचार




   *पैर में से काँटा निकल जाए तो*

       *चलने में मज़ा आ जाता है,*

*और मन में से अहंकार निकल जाए तो..*

     *जीवन जीने में मज़ा आ जाता है..*

     *चलने वाले पैरों में कितना फर्क है ,*

         *एक आगे है तो एक पीछे  ।*

    *पर ना तो आगे वाले को अभिमान है*

      *और ना पीछे वाले को अपमान ।*

           *क्योंकि उन्हें पता होता है*

      *कि पलभर में ये बदलने वाला है ।*

       *" इसी को  जिन्दगी  कहते है "?* 

       *"खुश रहिये मुस्कुराते  रहिये*  



*"चर्चा और आरोप*
*ये दो चीजें * 
*सिर्फ सफल व्यक्ति  के भाग्य  में ही होती है..!!"*


यह सामान्य नियम है कि दूसरों की निंदा नहीं करनी चाहिए और अपनी प्रशंसा स्वयं नहीं करनी चाहिए।*
*यह ठीक है।*
*परंतु कहीं-कहीं इसके अपवाद भी होते हैं ।*

जब किसी का दोष दूर करना हो , उसे अपराधों से दुखों से बचाना हो , तो ऐसी स्थिति में उसके दोष बताए जा सकते हैं । जैसे माता पिता बच्चों को तथा अध्यापक विद्यार्थियों को उनके दोष बताते हैं....यहां उद्देश्य उनका कल्याण करना है , उन्हें दुखी या अपमानित करना नहीं है ।*

इसी प्रकार से जब दूसरे लोग आप के विषय में नहीं जानते और आपको अपना परिचय स्वयं देना पड़ जाए,  तो ऐसी परिस्थिति में आप अपने गुण स्वयं भी बता सकते हैं , तब उसमें दोष नहीं माना जाएगा।

जैसे सभी डॉक्टर लोग अपने क्लीनिक पर अपनी सारी डिग्रियां स्वयं लिखते हैं । बड़े-बड़े विद्वान तथा  अधिकारी अपने विजिटिंग कार्ड पर अपनी सारी योग्यताएं स्वयं लिखते हैं।

तो इस प्रकार से परिचय देने की दृष्टि से यदि अपने गुण बताए जाएं , तो इसमें दोष नहीं है ।*
*ईश्वर ने भी वेदों में अपना परिचय देने के लिए बहुत सारे गुण स्वयं बताए हैं।*