बहुत दिन बाद पकड़ में आई...
थोड़ी सी खुशी...
तो पूछा ?
"कहाँ रहती हो आजकल.... ?
ज्यादा मिलती नहीं..?"
"यही तो हूँ"
जवाब मिला।
बहुत भाव खाती हो खुशी ?..
कुछ सीखो
अपनी बहन से...
हर दूसरे दिन आती है
हमसे मिलने.. "परेशानी"।
"आती तो मैं भी हूं...
पर आप ध्यान नही देते"।
"अच्छा...? कहाँ थी तुम जब पड़ोसीने नई गाड़ी ली ?
और तब कहाँ थी जब रिश्तेदार ने बड़ा घर बनाया?"
शिकायत होंठो पे थी कि.....
उसने टोक दिया बीच में.
"मैं रहती हूँ..…
कभी आपकी बच्चे की किलकारियो में,
कभी रास्ते मे मिल जाती हूँ ..
एक दोस्त के रूप में,
कभी ...
एक अच्छी फिल्म देखने में,
कभी...
गुम कर मिली हुई किसी चीज़ में,
कभी...
घरवालों की परवाह में,
कभी ...
मानसून की पहली बारिश में,
कभी...
कोई गाना सुनने में,
दरअसल...
थोड़ा थोड़ा बाँट देती हूँ,
खुद को
छोटे छोटे पलों में....
उनके अहसासों में।
लगता है चश्मे का नंबर बढ़ गया है आपका...!
सिर्फ बड़ी चीज़ो में ही ढूंढते हो मुझे.....!!!
खैर...
अब तो पता मालूम हो गया ना मेरा...?
ढूंढ लेना मुझे आसानी से अब छोटी छोटी बातों में..."
* खुश रहने के दो तरीके हैं;
* आवश्यकताओं को कम करें * और * स्थिति * के साथ सहभागिता।