*"हमें अक्सर*
*महसूस होता है*
*कि दूसरों का जीवन*
*अच्छा है............*
*लेकिन*
*हम ये भूल जाते है कि*
*उनके लिए*
*'हम भी दूसरे ही है..."*
जीवन को दो तरीकों से सुखद बनाया जा सकता है। पहला यह है कि जो तुम्हें पसंद है उसे प्राप्त कर लो या जो प्राप्त है उसे पसंद कर लो।
अगर आप भी उन व्यक्तिओं में से एक हैं जो प्राप्त को पसंद नहीं करते और ना ही पसंद को प्राप्त करने का सामर्थ्य रखते हैं तो आपने स्वयं ही अपने सुखों का द्वार बंद कर रखा है।
सुख प्राप्त करने की चाह में आदमी मकान बदलता है, दुकान बदलता है। कभी-कभी देश बदलता है तो कभी-कभी भेष भी बदलता है। लेकिन अपनी सोच और स्वभाव बदलने को राजी नहीं है।
भूमि नहीं अपनी भूमिका बदलो। जिस दिन आदमी ने अपना स्वभाव जीत लिया उसी दिन उसका अभाव मिट जायेगा।
*चांद भी क्या खूब है,*
*न सर पर घूंघट है,*
*न चेहरे पे बुरका,*
*कभी करवाचौथ का हो गया,*
*तो कभी ईद का,*
*तो कभी ग्रहण का*
*अगर*
*ज़मीन पर होता तो*
*टूटकर विवादों मे होता,*
*अदालत की सुनवाइयों में होता,*
*अखबार की सुर्ख़ियों में होता,*
*लेकिन*
*शुक्र है आसमान में बादलों की गोद में है,*
*इसीलिए ज़मीन में कविताओं और ग़ज़लों में महफूज़ है”*