हमें अक्सर महसूस होता है कि दूसरों का जीवन अच्छा है............

*"हमें अक्सर*
*महसूस होता है*
*कि दूसरों का जीवन*
*अच्छा है............*

*लेकिन*
*हम ये भूल जाते है कि*
*उनके लिए*
*'हम भी दूसरे ही है..."*



   जीवन को दो तरीकों से सुखद बनाया जा सकता है। पहला यह है कि जो तुम्हें पसंद है उसे प्राप्त कर लो या जो प्राप्त है उसे पसंद कर लो। 

     अगर आप भी उन व्यक्तिओं में से एक हैं जो प्राप्त को पसंद नहीं करते और ना ही पसंद को प्राप्त करने का सामर्थ्य रखते हैं तो आपने स्वयं ही अपने सुखों का द्वार बंद कर रखा है।

     सुख प्राप्त करने की चाह में आदमी मकान बदलता है, दुकान बदलता है। कभी-कभी देश बदलता है तो कभी-कभी भेष भी बदलता है। लेकिन अपनी सोच और स्वभाव बदलने को राजी नहीं है।

      भूमि नहीं अपनी भूमिका बदलो। जिस दिन आदमी ने अपना स्वभाव जीत लिया उसी दिन उसका अभाव मिट जायेगा।



*चांद भी क्या खूब है,*
*न सर पर घूंघट है,* 
*न चेहरे पे बुरका,*

*कभी करवाचौथ का हो गया,*
*तो कभी ईद का,*
*तो कभी ग्रहण का*

*अगर*

*ज़मीन पर होता तो*
*टूटकर विवादों मे होता,*
*अदालत की सुनवाइयों में होता,*
*अखबार की सुर्ख़ियों में होता,*

*लेकिन*

*शुक्र है आसमान में बादलों की गोद में है,*
*इसीलिए ज़मीन में कविताओं और ग़ज़लों में महफूज़ है”*



  मनुष्य जन्म से नहीं अपितु कर्म से महान बनता है और मनुष्य चित्र से नहीं, चरित्र से सुन्दर बनता है। अच्छे परिवार में जन्म लेना मात्र एक संयोग है और अच्छे कार्यों द्वारा जीवन को उत्कृष्ट बनाना एक उपलब्धि। इसलिए इस बात पर ज्यादा विचार मत करना कि मेरा परिवार कैसा है ? लेकिन यह जरूर विचारणीय है कि मेरा व्यवहार कैसा है? 
      आपके जीवन जीने का ढंग ही पैमाना (मापक) है आपकी महानता का। आपके जीने के ढंग से ही निर्धारण होगा कि आपने कितना सुन्दर जीवन जिया।
    मनुष्य की     वास्तविक सुन्दरता उसका सुन्दर तन नहीं अपितु सुन्दर मन है। गुण न हो तो रूप व्यर्थ है क्योंकि जीवन रूपवान होकर नहीं, गुणवान होकर जिया जाता है।
     समाज अच्छे (चित्र) रूप वालों को नहीं अपितु अच्छे चरित्र वालों को पूज्यनीय मानता है। अत: कुल और रूप कितना भी सुन्दर क्यों न हो मगर सदगुणों के अभाव में दोनों का कोई महत्व नहीं।

क्या बताएं यार तुम्हें दुनिया के मजे।
सर झुकाके लूट लो दुनिया के मजे॥