जिसका विवेक शून्य हो जाता है वह इंसान ही मानसिक गुलाम होता है     

जिसका विवेक शून्य हो जाता है वह इंसान ही मानसिक गुलाम होता है
                          

मन्दिर के पुजारी ने कहा
   "मानो तो देव नही तो पत्थर"
    मैने कहा आप क्या मानते हो,उसने बोला मै तो देव मानता हुँ
    मैने कहा देव मानने से चलना फिरना चालू कर देगे,उन्होने बोला नही
     मैने कहा देव मानकर जो चढ़ावा चढ़ाते है उसको खा लेते है ,उन्होने बोला नही
       मैने कहा देव मानकर जो पूजा करते है उनके सर पर हाथ रखकर आशिर्वाद देते है,उन्होने बोला नही
      मैने कहा फिर क्यो देव मानकर पूजा करते हो,उन्होने कहा मनोकामनाऐ पूर्ण हो जाती है
       मैने कहा क्या सभी भक्तो की यही मनोकामना होती है कि गरीबी बरकार रहे,अत्याचार होता रहे,बलात्कार होते रहे,भ्रष्टाचार बढ़े,और हमेशा परेशानियो का समना करता रहुँ
      पुजारी आज तक निरुत्तर है.
    21वीं सदी है भाई कब सुधरोगे.
  सोचो पहले पुजारी के लिए दानपात्र और श्रद्धालुओ के लिए घण्टा लटकाया हुआ है
    दानपात्र मे पैसै डालो ,घण्टा बजाओ और घर चले जाओ.कुछ नही मिलने वाला बेजान मूर्तियो से .
धर्म अगर सबको शिक्षा, सुरक्षा, रोजगार की गारंटी नहीं दे सकता तो फिर धर्म की जरूरत क्या है?

आज शोषित समाज को जो थोड़ा बहुत सम्मान मिल रहा है वो शिक्षा व संविधान के कारण मिल रहा है ना कि दैवीय शक्ति व धर्मग्रन्थ के कारण।

सम्मान चाहिए तो....
शिक्षित बनिये, धार्मिक नहीं।।
*अज्ञानता से भय पैदा होता है*
     *भय से अंधविश्वास पैदा होता है*
     *अंधविश्वास से अंधभक्ति पैदा होती है*
     *अंधभक्ति से व्यक्ति का विवेक शून्य हो*
     *जाता है और जिसका विवेक शून्य हो जाता है*
      *वह इंसान ही मानसिक गुलाम होता है |*
                            *"अज्ञानी नहीं ज्ञानी बनो"*