मतलब बहुत वज़नदार होता है, निकल जाने के बाद, हर रिश्ते को हल्का कर देता है.!

*शब्द भी एक तरह का भोजन है।*


*किस समय कौनसा शब्द परोसना है वो आ जाये तो दुनिया मे उससे बढ़िया रसोइया कोई नही है।*



सुंदर सुविचार



*प्रतिभा ईश्वर से मिलती है,*
*नतमस्तक रहें..!*

*ख्याति समाज से मिलती है,*
*आभारी रहें..!*

*लेकिन,,,*

*मनोवृत्ति और घमंड* 
*स्वयं से मिलते हैं,*
*सावधान रहें..!!*



आज का आदमी मेहनत में कम और मुकद्दर में ज्यादा विश्वास रखता है। आज का आदमी सफल तो होना चाहता है मगर उसके लिए कुछ खोना नहीं चाहता है। वह भूल रहा है कि सफलताएँ किस्मत से नहीं मेहनत से मिला करती हैं। 
   
किसी की शानदार कोठी देखकर कई लोग कह उठते हैं कि काश अपनी किस्मत भी ऐसी होती लेकिन वे लोग तब यह भूल जाते हैं कि ये शानदार कोठी, शानदार गाड़ी उसे किस्मत ने ही नहीं दी अपितु इसके पीछे उसकी कड़ी मेहनत रही है। मुकद्दर के भरोसे रहने वालों को सिर्फ उतना मिलता है जितना मेहनत करने वाले छोड़ दिया करते हैं।
     
किस्मत का भी अपना महत्व है। मेहनत करने के बाद किस्मत पर आश रखी जा सकती है मगर खाली किस्मत के भरोसे सफलता प्राप्त करने से बढ़कर कोई दूसरी नासमझी नहीं हो सकती है।
     
दो अक्षर का होता है "लक", ढाई अक्षर का होता है "भाग्य", तीन अक्षर का होता है "नसीव" लेकिन चार अक्षर के शब्द मेंहनत के चरणों में ये सब पड़े रहते हैं।

  


मनुष्य जन्म से नहीं अपितु कर्म से महान बनता है और मनुष्य चित्र से नहीं, चरित्र से सुन्दर बनता है। अच्छे परिवार में जन्म लेना मात्र एक संयोग है और अच्छे कार्यों द्वारा जीवन को उत्कृष्ट बनाना एक उपलब्धि। इसलिए इस बात पर ज्यादा विचार मत करना कि मेरा परिवार कैसा है ? लेकिन यह जरूर विचारणीय है कि मेरा व्यवहार कैसा है? 

      

आपके जीवन जीने का ढंग ही पैमाना (मापक) है आपकी महानता का। आपके जीने के ढंग से ही निर्धारण होगा कि आपने कितना सुन्दर जीवन जिया।

   

मनुष्य की     वास्तविक सुन्दरता उसका सुन्दर तन नहीं अपितु सुन्दर मन है। गुण न हो तो रूप व्यर्थ है क्योंकि जीवन रूपवान होकर नहीं, गुणवान होकर जिया जाता है।

    

समाज अच्छे (चित्र) रूप वालों को नहीं अपितु अच्छे चरित्र वालों को पूज्यनीय मानता है। अत: कुल और रूप कितना भी सुन्दर क्यों न हो मगर सदगुणों के अभाव में दोनों का कोई महत्व नहीं।


क्या बताएं यार तुम्हें दुनिया के मजे।

सर झुकाके लूट लो दुनिया के मजे॥




सुविचार


*सुना है,*
*"मतलब" बहुत वज़नदार होता है,*
*निकल जाने के बाद,*
*हर रिश्ते को हल्का कर देता है.!*

स्वामी विवेकानन्द का विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में दिया गया भाषण

स्वामी विवेकानन्द का विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में दिया गया भाषण
Author : स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक बेहद चर्चित भाषण दिया था। विवेकानंद का जब भी जि़क्र आता है उनके इस भाषण की चर्चा जरूर होती है। पढ़ें विवेकानंद का यह भाषण...
अमेरिका के बहनो और भाइयो,

आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।
मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्त्राइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था। और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है। भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है: जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं।वर्तमान सम्मेलन जोकि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है: जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं।
सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इसके भयानक वंशज हठधमिर्ता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं।
अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।

*क्या वास्तव में हम कोई गलती तो नहीं कर रहे हैं.....?*

पुत्र अमेरिका में जॉब करता है।
उसके माँ बाप गाँव में रहते हैं।
बुजुर्ग हैं, बीमार हैं, लाचार हैं।
पुत्र कुछ सहायता करने की बजाय पिता जी को एक पत्र लिखता है। कृपया ध्यान से पढ़ें और विचार करें कि किसको क्या लिखना चाहिए था ?

                         *पुत्र का पत्र पिता के नाम*

पूज्य पिताजी!

आपके आशीर्वाद से
आपकी भावनाओं/इच्छाओं के अनुरूप मैं अमेरिका में व्यस्त हूं।
यहाँ पैसा, बंगला, साधन सब हैं
नहीं है तो केवलसमय।

मैं आपसे मिलना चाहता हूं
आपके पास बैठकर बातें करना चाहता हूँ।
आपके दुख दर्द को बांटना चाहता हूँ
परन्तु क्षेत्र की दूरी
बच्चों के अध्ययन की मजबूरी
कार्यालय का काम करना जरूरी
क्या करूँ? कैसे कहूँ?
चाह कर भी स्वर्ग जैसी जन्म भूमि
और माँ बाप के पास आ नहीं सकता।

पिताजी।!
मेरे पास अनेक सन्देश आते हैं -
"माता-पिता सब कुछ बेचकर भी बच्चों को पढ़ाते हैं
और बच्चेसबको छोड़ परदेस चले जाते हैं 
पुत्र, माता-पिता के किसी काम नहीं आते हैं। "

पर पिताजी
मैं कहाँ जानता था
इंजीनियरिंग क्या होती है?
मैं कहाँ जानता था कि पैसे की कीमत क्या होती है?
मुझे कहाँ पता था कि अमेरिका कहाँ है ?
मेरा कॉलेज, पैसा और अमेरिका तो बस
आपकी गोद ही थी न?

आपने ही मंदिर न भेजकर स्कूल भेजा,
पाठशाला नहीं कोचिंग भेजा,
आपने अपने मन में दबी इच्छाओं को पूरा करने इंजीनियरिंग /पैसा /पद की कीमत,
गोद में बिठा बिठाकर सिखाई।

माँ ने भी दूध पिलाते हुये ,
मेरा राजा बेटा बड़ा आदमी बनेगा ,
गाड़ी बंगला होगा हवा में उड़ेगा ,
कहा था।
मेरी लौकिक उन्नति के लिए
घी के दीपक जलाये थे।।

मेरे पूज्य पिताजी!
मैं बस आपसे इतना पूछना चाहता हूं कि
मैं आपकी सेवा नहीं कर पा रहा,
मैं बीमारी में दवा देने नहीं आ पा रहा,
मैं चाहकर भी पुत्र धर्म नहीं निभा पा रहा,
मैं हजारों किलोमीटर दूर
बंगले में और आप,गाँव के उसी पुराने मकान में ,
क्या इसका सारा दोष सिर्फ़ मेरा है?

आपका पुत्र,
  ******

*अब यह फैंसला हर माँ बाप को करना है कि अपना पेट काट काट कर, दुनिया की हर तकलीफ सह कर, अपना सबकुछ बेचकर,बच्चों के सुंदर भविष्य के सपने क्या इसी दिन के लिये देखते हैं?*
*क्या वास्तव में हम कोई गलती तो नहीं कर रहे हैं.....?*

लाख जमाने भर की *डिग्रीयाँ* हो हमारे पास *अपनों* की तकलीफ़  नहीं पढ़ पाये तो *अनपढ़* है हम

लाख जमाने भर की
*डिग्रीयाँ* हो हमारे पास

*अपनों* की तकलीफ़
नहीं पढ़ पाये तो *अनपढ़* है हम


अकेले ही लड़नी होती है, जिंदगी की लड़ाई क्योंकि लोग सिर्फ तसल्ली देते है साथ नही। 
“ सही शिक्षक” और “सही सड़क”
दोनों एक जैसे होते हैं
खुद जहाँ है वहीं पर रहते हैं
मगर दुसरो को उनकी
मंजिल तक पहुंचा हीं देते हैं!


*चूहा अगर पत्थर का हो तो*
             *सब उसे पूजते हैं*

      *मगर जिन्दा हो तो मारे बिना*
              *चैन नहीं लेते हैं*

         *साँप अगर पत्थर का हो*
            *तो सब उसे पूजते हैं*

       *मगर जिन्दा हो तो उसी वक़्त*
                   *मार देते हैं*

       *माँ बाप अगर "तस्वीरों" में हो*
               *तो सब पूजते हैं*

       *मगर जिन्दा है तो कीमत नहीं*
                    *समझते"*

       *बस यही समझ नहीं आता के*
       *ज़िन्दगी से इतनी नफरत क्यों*

                       *और*

        *पत्थरों से इतनी मोहब्बत क्यों*

          *जिस तरह लोग मुर्दे इंसान को*
           *कंधा देना पुण्य समझते हैं​*

       *काश" इस तरह' ज़िन्दा" इंसान*
       *को सहारा देंना पुण्य  समझने*
        *लगे तो ज़िन्दगी आसान हो*
                    *जायेगी​*

        *एक बार जरूर सोचिए*

                 


सुपर सुविचार


*"क्षमा "उन फूलों के समान हैं जो कुचले जाने के बाद भी "खुशबू "देना बंद नहीं करते* ......
      
             *हमेशा खुश*
                *रहना  चाहिए,* 
                   *क्योंकि*
               *परेशान होने से*
              *कल की मुश्किल*
                *दूर नहीं होती*
                   *बल्कि....*
              *आज का सुकून*
               *भी चला जाता*
                     *है !!*






*नसीब कहां होती हैं,*
*हर कलाई को राखी.*

*शहरों की अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी मशीनों ने उनका हक जो छीना हैं.!*


*रिश्ते अंकुरित होते हैं प्रेम से,*

*जिंदा रहते हैं संवाद से,*

*महसूस होते हैं संवेदनाओं से,*

*जिये जाते हैं दिल से,*

*मुरझा जाते हैं गलत फहमियों से*

*और बिखर जाते हैं अंहकार से।*




अंग्रेजी सुविचार पर एक नजर

Stay true to yourself, yet always be open to learn. Work hard, and never give up on your dreams, even when nobody else believes they can come true but you. These are not cliches but real tools you need no matter what you do in life to stay focused on your path.


F- Few
R- Relations
I- In
E- Earth
N- Never
D- Die

Happy Friendship Day..all my dear lovaly friends.


*तुरंत आवश्यकता है- आज इन सभी की समाज को अत्यन्त आवश्यकता है।*

*तुरंत आवश्यकता है- आज इन सभी की समाज को अत्यन्त आवश्यकता है।*

(1) *एक इलेक्ट्रिशियन*: जो ऐसे दो व्यक्तियों के बीच कनेक्शन कर सके जिनकी आपस में बातचीत बन्द है।

(2) *एक ऑप्टिशियन*: जो लोगों की दृष्टि के साथ दृष्टिकोण में भी सुधार कर सके।

(3) *एक चित्रकार*: जो हर व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान की रेखा खींच सके।

(4) *एक राज मिस्त्री*: जो दो पड़ोसियों के बीच पुल बनाने में सक्षम हो।

(5) *एक माली*: जो अच्छे विचारों का रोपण करना जानता हो।

(6) *एक प्लम्बर*: जो टूटे हुए रिश्तों को जोड़ सके।

(7) *एक वैज्ञानिक*: जो दो व्यक्तियों के बीच ईगो का इलाज खोज सके।

और सबसे महत्वपूर्ण:
(8) *एक शिक्षक*: जो एक दूसरे के साथ विचारों का सही आदान प्रदान करना सिखा सके।

*आज इन सभी की समाज को अत्यन्त आवश्यकता है।*

*"खुश" रहने का सीधा सा एक ही "मंत्र" है, कि


*जीवन का सत्य*


*दिल में "बुराई" रखने से बेहतर है, कि "नाराजगी" जाहिर कर दो ।*


*जहाँ दूसरों को "समझाना" कठिन हो, वहाँ खुद को समझ लेना ही बेहतर है ।*


*"खुश" रहने का सीधा सा एक ही "मंत्र" है, कि "उम्मीद" अपने आप से रखो, किसी और से नहीं..!*

  

          


सुपर सुविचार



*पानी की हर बूंद*
*का सम्मान करें..*

*चाहे वो आसमान से टपके*
*या किसी की आँखों से...!*



*मै दीपक हूँ, मेरी दुश्मनी तो*
*सिर्फ़ अंधेरे से है,,,,*
*हवा तो बेवजह ही मेरे*
*ख़िलाफ़ है!*

*हवा से कह दो कि खुद को*
*आज़मा के दिखाए*
*बहुत दीपक बुझाती है,*
*एक जला के दिखाए !!*