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महिला सशक्तिकरण पर निबंध- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के महत्व पर विस्तृत निबंध

महिला सशक्तिकरण पर निबंध- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के महत्व पर विस्तृत निबंध

महिला सशक्तिकरण के बिना देश व समाज में नारी को असली आजादी हासिल नहीं हो सकती | वह सदियों पुरानी मूढ़ताओं और दुष्टताओं से लोहा नहीं ले सकती | बन्धनों से मुक्त होकर अपने निर्णय खुद नहीं ले सकती | स्त्री सशक्तिकरण के अभाव में वह इस योग्य नहीं बन सकती कि स्वयं अपनी निजी स्वतंत्रता और अपने फैसलों पर आधिकार पा सके |

महिला अधिकारों और समानता का अवसर पाने में महिला सशक्तिकरण ही अहम भूमिका निभा सकती है | क्योंकि स्त्री सशक्तिकरण महिलाओं को सिर्फ गुजारे – भत्ते के लिए ही तैयार नहीं करती बल्कि उन्हें अपने अंदर नारी चेतना को जगाने और सामाजिक अत्याचारों से मुक्ति पाने का माहौल भी तैयारी करती है |

बेहतर समाज के निर्माण में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता को महसूस करते हुए  विश्व पटल पर नारी शक्ति को जागृत करने के लिए हर वर्ष दुनिया भर में 8 मार्च का दिन अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है | नारी जागरण को समर्पित इस दिवस पर एक थीम तय की जाती है | यह थीम हर साल अलग – अलग रखी जाती है |

इस वर्ष 2017 की थीम है ” Be bold for change ” यानि ‘ महिलाओं की स्थिति में सुधार करने के लिए महिलाओं को ही बोल्ड होकर खुद आगे बढ़ना होगा ‘ हैं | क्योंकि नारी विश्व की चेतना है, माया है, ममता है, और मुक्ति है | दुसरे शब्दों में कहे तो जीवन मात्र के लिए करुणा सजाने वाली महाप्रकृति का नाम नारी है |

हमारे आदि – ग्रंथों में नारी को गुरुतर मानते हुए यहाँ तक घोषित किया गया है  – “यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता |” अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है |

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पारम्परिक विचारधारा में प्राचीन काल से ही स्त्री की पत्नी और माता की भूमिका में प्रशंसा तो की गयी है, किन्तु मानवीय रूप से उसे सदैव से ही बहुत हेय समझा गया है | नारी को पुरुष का पुछल्ला मात्र मानकर सामाजिक उत्पीड़न किया जाता रहा है |

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रोमिला थापर कहती है, “पर्याप्त अधिकार और स्वतंत्रता की स्थिति से लेकर उतनी ही अधिक अधीनता की स्थिति तक उसमें व्यापक परिवर्तन आते रहे |”

नारी की स्थिति में कृषक समाजों के विकास और राज्यों के जन्म के साथ निर्णायक गिरावट आने लगी | इसमें हिन्दू समाज में जाति – सोपान नाम का केंद्रीय संगठनकारी सिद्धांत पुरुष प्रधान की विचारधारा की मुख्य भूमिका रही | इस विचारधारा के कारण शूद्रों और स्त्रियों दोनों को वैदिक अनुष्ठानों से वंचित कर दिया गया | सार्वजनिक जीवन जब जब पुरुषों का कर्मक्षेत्र बन गया, तो स्त्रियाँ घरों तक सीमित होकर रह गई |लेकिन यदि यह जीवन का एक सच था, तो दूसरी ओर यह बात भी सच थी कि स्त्रियों का अलगाव कोई निरपवाद, सार्वभौमिक प्रथा न थी |

Women Empowerment in Hindi

समय – समय पर राजनितिक, समाजिक, आर्थिक क्षेत्रों में धनी और निर्धन दोनों वर्गों की स्त्रियों की अत्यधिक सार्वजिनक सक्रियता के प्रमाण भी मिलते है | रजिया सुन्तल,अहिल्याबाई, नूरजहाँ, गुलबदन, हर्रम बेगम आदि स्त्रियों के चरित्र उदहारण स्वरुप हैं |

महिला शक्ति की सार्वजनिक सक्रियता का प्रमाण औपनिवेशिक काल में हुए 1857 के विद्रोह में भी दिखाई पड़ता है | रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, रानी राजेश्वरी देवी,सुगरा बीबी, अदा देवी, आशा देवी गुज्जर, भगवानी देवी, रणबीरी बाल्मिकी, झलकारी बाई, अवंती बाई, महाबिरा देवी आदि वीरंगनाओं ने भाग लेकर समाज में सदैव उपेक्षित समझी जाने वाली महिलाओं की वीरता, साहस और सक्रिय भूमिका को बाहर लाकर राष्ट्र, समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा प्रदान किया |

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19 वी सदी में सामाजिक सुधार आंदोलन की बात करें या 20वी सदी के राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्ष की, नारी ने पुरुषों के साथ भाग लेकर पुरानी मान्यताओं को दरकिनार करते हुए अपनी शक्ति का जबदस्त अहसास कराया |

आज हमारे मानस में नारी शक्ति की पहचान स्वतंत्र, जिज्ञासु और आत्मविश्वास से भरी स्त्री की तस्वीर न उभर कर एक ऐसी संघर्षशील स्त्री की तस्वीर उभरती है, जिसके घरेलू दायित्व वही के वही हैं | अब परिस्थियों की मांग है कि आत्मदया और आत्मपीडन के तार पर साधा हुआ अपने पारम्परिक स्वरूप के प्रति आक्रोश एक स्तर के बाद बंद हो |

बीती बातों को याद करने या दोहराने से महिलाओं की स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला | देश की आधी आबादी को अब अपने सत्य से वृहत सत्य की परिधि तक जाना होगा | यह देखना होगा कि किसी भी महत्वपूर्ण क्षेत्र में महिलाओं के कार्य करने या न करने से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्या विशेष फर्क पड़ेगा | लेकिन स्त्री सशक्तिकरण का सारा रास्ता एक लम्बी छलांग लगाकर एक बार में पार नहीं किया जा सकता, उसे कदम – कदम पर चलकर ही पार किया जा सकता है |

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आज सम्पूर्ण व्यवस्था में जिस आमूल रूप से स्त्री सम्बन्धी मुद्दों के पुनर्मूल्यांकन और विश्लेषण की जरुरत है, उस निर्णय के अधिकार को पुरुष व्यवस्था ने अभी तक अपने पास रखा है | स्त्री की अस्मिता का संघर्ष दोहरे स्तरों पर है क्योंकि अस्मिता का संघर्ष केवल अपने होने अपनी शक्ति की पहचान करने मात्र से नहीं जुड़ा है बल्कि अस्मिता का संघर्ष और विकास का मुद्दा एक दूसरे से जुड़ा हुआ है |

वर्तमान में महिलाएँ उत्पादन एवं पुनरुत्पादन के कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं फिर भी द्रुत आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तनों में महिलाओं का योगदान अदृश्य तथा मान्यता रहित रहा क्योंकि कि उनसे स्टीरियों टाइप प्रक्रिया और पारम्परिक भूमिका निभाने की आशा की जाती रही |

महिलाओं की आर्थिक भूमिका की उपेक्षा की जाती रही जबकि सशक्तिकरण के लिए आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना परम आवश्यक है | और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के लिए महिलाओं का शिक्षित होना बेहद जरुरी है लेकिन भारत में आज भी महिलाओं के लिए पर्याप्त शिक्षा व्यवस्था की कमी है |

एक शिक्षित महिला ही इस महा अभियान का नेतृत्व कर सकती है | इसके अतिरिक्त नारी का स्वास्थ्य, समाज में व्याप्त यौन हिंसा, वेश्यावृति की बढ़ती घटनाओं को रोकना कारगर उपाय है |

महिलाओं को उनकी क्षमता और योग्यता के अनुसार विकास का पूर्ण अवसर प्रदान करना और नारी सशक्तिकरण राष्ट्रीय नीति को अपडेट करने की भी जरुरत है | साथ ही महिलाओं के प्रति लोगों की सोच में बदलाव की भी आवश्यकता है |

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नारी मनुष्य वर्ग का अभिन्न अंग है | उसके स्थिति का समाज पर और समाज का उसकी स्थिति पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है | समाज निर्माण में मात्र पुरुष ही भाग ले और नारी को घर के पिंजरे में ही कैद रखा जाए, यह अनुचित है | इसमें नारी वर्ग को और समाज को तो हानि है ही, प्रतिबन्ध लगाने वाले पुरुष भी उस हानि से नहीं बच सकते |

नारी चेतना रूप है | वह परिवार संचालन का उत्तरदायित्व संभालते हुए भी समाज निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है |

दुनिया के किसी भी देश व समाज का विकास महिला सशक्तिकरण के अभाव में संभव नहीं है | समाज की उन्नति के लिए स्त्री को विकास के लिए स्वच्छ और उपयुक्त पर्यावरण उपलब्ध कराना पूरी मनुष्य जाति का कर्तव्य है |

समाज में नारी और पुरुष दोनों को एक बराबरी का दर्जा मिलाना चाहिए | जिस दिन महिला और पुरुष के बीच का भेद – भाव खत्म हो जायेगा उस दिन हमारे समाज में एक नये युग का आरम्भ हो जाएगा | लेकिन आज भी सामाजिक क्षेत्र में महिलाओं को शारीरिक और मानसिक हिंसा का सामना करना पड़ रहा है |

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भारतीय राष्ट्रीय कानून के तहत 2001 राष्ट्रीय महिला नीति पारित की गयी | पुरुषों के समान सभी क्षेत्रों में महिलाओं को अधिकार देने के लिए कानून बनाए गए लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि महिलाओं को अधिकार देने के नाम पर राष्ट्रीय महिला नीति को बने 15 वर्ष से ज्यादा समय बीत गए पर आज भी महिला सशक्तिकरण नहीं हुआ | नारी सशक्तिकरण के नारे और भाषण तो दीए जाते है लेकिन हकीकत में आज समाज में महिला की हालत बेहद चिंताजनक है |

आर्थिक और प्रौद्योगिक परिवर्तनों के बावजूद महिलाओं के प्रति हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है | यह एक विचित्र विडम्बना है कि जो महिला घर, परिवार और समाज की सुरक्षा की बुनियादी कड़ी है आज उसी के खिलाफ हिंसा होती है | सच तो यह है कि एक सभ्य समाज में महिलाओं के प्रति हिंसा किसी भी तरह स्वीकार एवं क्षमा योग्य नहीं है |

भारतीय प्राचीन संस्कृति में नारी को स्वयं शक्ति स्वरूपा कहा गया है | नारी के उसी शक्ति को और भी सशक्त बनाने के लिए महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता है | जिससे वह सड़क से लेकर घर तक, स्कूल से लेकर दफ्तर तक हर जगह सिर उठाकर चल सके, समाज के सभी बंधनों से मुक्त होकर अपने निर्णय खुद ले सके | वह इतनी सशक्त हो कि उसकी तरफ कोई गलत नजर से देखने की हिम्मत न कर सके |

नारी सशक्तिकरण के द्वारा ही  स्वस्थ्य समाज का निर्माण किया जा सकता है  | इस बात को दुनिया भर के सभी देशों ने माना है और इसलिए देश के संविधान में भी महिलाओं को हर क्षेत्र में बिना किसी भेद भाव के पुरुषों के समकक्ष अधिकार दिए गए है | महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए महिला सशक्तिकरण योजना “राष्ट्रीय महिला आयोग” तथा विभिन्न राज्यों में “राज्य महिला आयोग” की स्थापना की गई है जो सुधार के लिए अनवरत प्रयासरत हैं |

महिलाओं को मुख्य धारा में लाने के लिए हमारी सरकार ने वर्ष 2001 को महिला सशक्तिकरण वर्ष के रूप में घोषित किया | यह बात बिलकुल सत्य है कि महिलाओं की आधी आबादी के हर क्षेत्र में सशक्त होने पर ही देश सशक्त होगा और सही मायने में उसका सम्पूर्ण विकास होगा |

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यद्यपि नारी का महत्व उसके त्याग, तपस्या, सेवा-भाव और समर्पण में निहित है | बिना इन भावों के नारी नारी कहाँ रह जाती है और शायद इसीलिए पुरुष को कठोर कहा गया है तथा स्त्री को कोमल | यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि स्त्री अन्तर्जगत का उच्चतम विकास है जिसके बल पर समस्त सदाचार ठहरे हुए है | इसलिए प्रकृति ने भी उसे इतना सुंदर मनमोहक आवरण दिया है |

रमणी रूप की स्वामिनी नारी का जीवन नि:संदेह सेवा और समर्पण का सार है | लेकिन इस समर्पण को समझने वाला सह्रदय पुरुषों की संख्या बहुत कम है | ज्यादातर पुरुष नारी की इन विशेषताओं की उपेक्षा कर उसकी कोमल भावनाओं को उसकी विवशता समझते है और इस प्रकार अपनी मानसिक संकीर्णता का परिचय देते है | यह त्रासदी आधे भाग की है | इसी आधी आबादी को आगे लाना और सशक्त बनाना महिला सशक्तिकरण का उद्देश्य है |

हमेशा से नारी सशक्तिकरण के मार्ग में उसका शारीरिक रूप से कमजोर होना बाधक बनता रहा है | इस बात को जयशंकर प्रसाद जी ने भी महसूस कर अपनी रचना में लिखा है –

“यह आज समझ तो पाई हूँ

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दुर्बलता में मैं नारी हूँ |

अवयव की सारी कोमलता

लेकर मैं सबसे हारी हूँ ||”

लेकिन इस सबके बावजूद नारी को जहाँ भी आर्थिक, सामाजिक, राजनितिक क्षेत्रों में पुरुषों के समान अवसर प्राप्त हुए है, वहाँ उसने अपने आप को पुरुषों के समकक्ष श्रेष्ठ साबित कर दिखाया है | आज स्त्री की छवि भले ही ‘पवित्र देवी आदरणीय’ की नहीं है लेकिन भारतीय संस्कृति के इतिहास के पन्ने पलट कर देखे तो नर और नारी को गृहस्थी की गाड़ी चलाने के लिए दो पहियों की भांति माना गया है | एक के बिना दूसरा अधूरा तथा आश्रयहीन था |

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यदि विभिन्न कालों के आधार पर भारतीय स्त्रियों की स्थिति पर दृष्टि डाले तो हम पायेंगे कि वैदिक काल में नारी पग – पग पर पुरुष की सहभागिनी हुआ करती थी | किन्तु उत्तर वैदिक युग में नारी की दशा गिरती गई | मध्यकाल आते – आते स्त्री जाति की दशा और भी दयनीय हो गई | इस काल में महिलाओं को अबला माना जाता था, जिसका जिक्र कवि मैथलीशरण ने अपनी रचना में की है –

“अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी ”

पर बदलते भारतीय समाज में नारी की स्थिति भी परिवर्तनीय रही है | कभी नारी को श्रद्धा के साथ पूजा गया तो कभी दासता के बंधन में जकड़कर पशुवत व्यवहार किया गया | प्रसिद्ध लेखिका सिमोन कहती है कि –

“स्त्री की स्थिति अधीनता की है स्त्री सदियों से ठगी गई है और यदि उसने कुछ स्वतंत्रता हासिल की है तो बस उतनी ही जितनी पुरुष ने अपनी सुविधा के लिए उसे देनी चाही |”

बदलते समय के साथ आज की नारी पढ़ – लिख कर स्वतंत्र है | वह अपने अधिकारों के प्रति सजग है तथा स्वयं अपना निर्णय लेती है | अब वह चारदीवारी से बाहर निकलकर देश के लिए विशेष महत्वपूर्ण कार्य करती है |

महिला सशक्तिकरण पर निबंध

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वर्ष 2016 में तुर्की के इस्तांबुल में हजारों महिलाओं ने उस बिल का विरोध किया जिसमें यह प्रावधान था कि यदि किसी नाबालिक लड़की से दुष्कर्म का आरोपी उससे शादी कर लें तो उसे सजा नहीं दी जाएगी | महिलाओं के आवाज उठाने पर इस बिल को वापस ले लिया गया |

भारत में भी ऐसी महिलाओं की कमी नहीं है जिन्होंने समाज में बदलाव और महिला सम्मान के लिए अपने अन्दर के डर को जमींदोज कर दिया | ऐसी ही एक मिसाल बनी सहारनपुर की अतिया साबरी | अतिया पहली ऐसी मुस्लिम महिला है जिन्होंने तीन तलाक के खिलाफ आवाज बुलंद किया | तेजाब पीड़ितों के खिलाफ इंसाफ की लड़ाई लड़ने वाली वर्षा जवलगेकर के भी कदम रोकने की नाकाम कोशिश की गई लेकिन उन्होंने इंसाफ की लड़ाई लड़ना नहीं छोड़ा | हमारे देश में ऐसे कई उदहारण है जो महिला सशक्तिकरण का पर्याय बन रही है |

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आज देश में नारी शक्ति को सभी दृष्टि से सशक्त बनाने के प्रयास किये जा रहे है | इसका परिणाम भी देखने को मिल रहा है |महिलाएं जागरूक हो चुकी है |इन्होंने उस सोच को बदल दिया है कि वह घर और परिवार में से किसी एक जिम्मदारी को ही बेहतर निभा सकती है |

इक्कीसवीं सदी नारी जीवन में सुखद सम्भावनाओं की सदी है | इसके उदीयमान स्वर्णिम, प्रभात की झाकियाँ अभी से देखने को मिल रही है | यह हर क्षेत्र में आगे आने लगी है | आज की नारी अब जाग्रत और सक्रीय हो चुकी है | युगदृष्टा स्वामी जी ने बहुत अच्छी बात कही है “नारी जब अपने ऊपर थोपी हुई बेड़ियों एवं कड़ियों को तोड़ने लगेगी तो विश्व की कोई शक्ति उसे नहीं रोक पायेगी” | वर्तमान में नारी ने रुढ़िवादी बेड़ियों को तोड़ना शुरू कर दिया है | यह एक सुखद संकेत है | लोगों की सोच बदल रही है, फिर भी इस दिशा में और भी प्रयास अपेक्षित है |

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के महत्व पर विस्तृत हिंदी भाषण एवं निबंध

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के महत्व पर विस्तृत हिंदी भाषण एवं निबंध (International Women’s Day Essay & Speech  In Hindi)

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस / International Women’s Day 8 March Special: स्त्री और पुरुष परमात्मा के दो विशिष्ट सृजन है | यह दोनों एक – दूसरे के अनिवार्य पूरक भी है | एक के अभाव में दूसरा निष्प्रभावी है | लेकिन भारतीय संस्कृति में स्त्री की भूमिका पुरुष की अपेक्षा कहीं अधिक सम्माननीय माना गया है | हमारे आदि-ग्रंथों में नारी को गुरुतर मानते हुए यहाँ तक घोषित किया गया है – यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमंते तत्र देवता | अर्थात जहाँ नारियों की पूजा की जाती है वहां देवता निवास करते है अथवा गृहणी गृहमित्याहू न गृह गृहमुक्यते |

International Women’s Day Speech Hind

इसी सम्माननीय नारी को को सृजन की शक्ति मानकर पूरे विश्व में 8 March को महिलाओं के सम्मान के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस / International Women’s Day मनाया जाता है | महिला दिवस मनाने का उद्देश्य नारी को कुरीतियों की बेड़ियों से निकालकर उसे विकसित – परिष्कृत होने का सुअवसर प्रदान करना है ताकि वह न केवल खुद को सशक्त कर सके बल्कि बेहतर समाज के निर्माण में भरपूर योगदान दे सके |

महिला दिवस मनाने का इतिहास पर विशेष जानकारी

सबसे पहला महिला दिवस अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वाहन पर 28 फरवरी 1909 को मनाया गया था | अमेरिका में उस समय महिला दिवस का उत्सव मनाए जाने के पीछे महिलाओं को वोट देने का अधिकार हासिल करना था क्योंकि तत्कालीन परिस्थियों में अधिकांश देशों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था |

इस उत्सव की महत्ता तब और बढ़ गई जब रूस की महिलाओं ने 1997 में रोटी और कपड़े के लिए वहां की सरकार के खिलाफ़ आन्दोलन छेड़ दिया | जब यह आन्दोलन शुरू हुआ था तो उस समय वहां जुलियन कैलेण्डर के मुताबिक रविवार 23 फ़रवरी का दिन था जबकि दुनिया के बाकि के देशों में ग्रेगेरियन कैलेण्डर का प्रयोग किया जाता था जिसके अनुसार 8 मार्च का दिन था | इसलिए 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस / International Women’s Day मनाया जाने लगा |

भारत में भी अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का उत्सव महिलाओं की उपलब्धियों और उनका सम्मान करने के रूप में मनाया जाता है | लेकिन भारतीय संस्कृति के पुरातन नारी को जो स्वतंत्रता प्राप्त थी क्या आज भी उतनी ही सवतंत्रता उन्हें प्राप्त है ? महिला दिवस पर भाषण देना तो आसान है लेकिन क्या इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को वह सम्मान प्राप्त है जो उसका अधिकार है !! नहीं |

भारतीय संस्कृति में नारी को माता का पद दिया गया है | नारी के गुणगान से इतिहास के पन्ने भरे पड़े है | मंत्रों के माध्यम से इनकी अभ्यर्थना की गई है | इनकी शक्ति को सर्वोपरी समझने का एक सशक्त प्रमाण है श्रेष्ठ देवताओं के नाम के पूर्व उनकी पत्नियों के नाम का उल्लेख होना – जैसे लक्ष्मी-नारायण, गौरी-शंकर, सीता-राम, राधे-श्याम | इतना ही नहीं पति – पत्नी के संदर्भ में भी पत्नी को पति का अर्द्धागिनी विशेषण इसी यथार्थ को ध्यान में रखकर कहा गया है |

भारतीय नारी का विगत, वर्तमान और संभावित स्वरुप

भारतीय नारी का विगत, वर्तमान और संभावित स्वरुप के विषय पर बात करने से पहले हम  सब के लिए यह जानना बहुत जरुरी है कि सही मायने में नारी – सामर्थ्य क्या है ?

International Women’s Day Speech

भारतीय नारी सामर्थ्य का यथार्थ

इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रकृति और पुरुष विधाता के दो विशिष्ट सृजन है और एक – दुसरें के पूरक है | एक के अभाव में आप दूसरे की कल्पना भी नहीं कर सकते | लेकिन अनेक समानताओं के होते हुए भी नर – नारी सामर्थ्य और सक्रियता के क्षेत्र कई संदर्भों में भिन्न – भिन्न है |

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भारतीय समाज में जहाँ पुरूषों को पौरुष, श्रम, कठोरता, बर्बरता और अधीरता का प्रतिमूर्ति माना गया है वही नारी को त्याग, दया, करुणा, ममता और धैर्य की प्रतिमूर्ति कहा जाता है |

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द्र जी ने भी अपने प्रसिद्ध उपन्यास गोदान में यह उक्ति कही है कि “ पुरुष में नारी के गुण आ जाते है तो वह महात्मा बन जाता है लेकिन नारी में पुरुष के गुण आ जाते है तो वह कुलता हो जाती है |”

यथार्थ नारी की स्वीकृति को ही दर्शाते हुए जयशंकर प्रसाद जी ने अपनी कामायनी में लिखा है –

नारी तुम केवल श्रध्दा हो, विश्वास रजत नग पद तल में |

पीयूष स्रोत – सी बहा करों, जीवन के सुंदर समतल में ||

भारतीय नारी अपनी इसी विशेषता की वजह से न जाने कितने रिश्तों का निर्वाह किया करती है | बेटी के रूप में जन्म लेकर जीवन आरंभ करने वाली नारी किसी की बहन, किसी की पत्नी, और किसी की माँ होती है |

इतिहास गवाह है कि भारतीय नारी पुरुष को प्रतिष्ठा और उपलब्धि के सर्वोच्च शिखर पर आरूढ़ करने के लिए स्वयं को भी दाव पर लगा दिया करती है | नारी के इसी अभिनव व्यक्तित्व और कृतित्व को लक्ष्य कर कही गयी यह उक्ति एक सर्वमान्य सत्य बनकर स्थापित हो गई है कि प्रत्येक पुरुष के सफलता में एक स्त्री का हाथ होता है |

लेकिन विडम्बना देखिए नारी – सामर्थ पर सवाल हमेशा ही उठते रहे हैं | पर नारी को जो सम्मान (अवस्था) पुरातन भारतीय संस्कृति में प्राप्त था वह सम्मान वह अवस्था आज भी नारी को नहीं मिल सका है |

पुरातन भारतीय समाज में नारी की अवस्था

भारतीय संस्कृति में नारी को माता के पद पर प्रतिष्ठित किया गया है | नारी को देवी मानकर उसकी पूजा की जाती है | पुरातन भारतीय समाज में तो किसी पुरुष द्वारा पत्नी की अनुपस्थिति में किया जाने वाला धार्मिक अनुष्ठान सर्वथा अधूरा समझा जाता था | यही वजह है कि पत्नी के लिए धर्मपत्नी शब्द प्रचलित हुआ |

इस समय की तत्कालीन परिस्थियों में नारी को शिक्षा प्राप्त करने, अपना जीवन – साथी चुनने की स्वतंत्रता प्राप्त थी | ये घर की लक्ष्मी मानी जाती थी और इन्हें लगभग प्रत्येक दृष्टि से भरपूर सम्मान मिलता था | खुद को मिले सम्मान का परिचय इन्होंने अपने नारी – सामर्थ से प्रस्तुत किया |

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कैकेयी जो रणभूमि में पति की सारथी बनी, गांधारी जिन्होंने अंधे पति के लिए जीवन – पर्यंत आँखों पर पट्टी बाँध ली, सीता जिन्होंने पति के साथ स्वेच्छा से वन – गमन किया या फिर शास्त्रार्थ के लिए पुरुषों को ललकारने वाली गार्गी / मैत्रेयी आदि आदर्श चरित्र नारियों का प्रंसग उल्लेखनीय हैं | नारी के प्रति ऐसी उदात्त अवधारणा समभवत: कही और देखने को नहीं मिलती है | लेकिन भारतीय परिवेश में नारी के प्रति सम्मान सर्वथा एक समान नहीं रहें | समय बीतने के साथ – साथ नारी को मिलने वाले भरपूर सम्मान का अवमूल्यन होना प्रारंभ हो गया |

मध्यकाल में भारतीय नारी की अवस्था

भारतीय परिवेश में मध्यकाल तक आते – आते नारी के सम्मान का अवमूल्यन शुरू गया | नारी को प्राप्त समस्त स्वतंत्रता छीन ली गयी | इस काल की राजनीतिक और सामाजिक विसंगतियों के मध्य नारी यतीम बनकर रह गयी |

मत्स्य – न्याय की परंपरा का अनुगमन करते हुए विजयी राजाओं ने हारे राजाओं को अन्य भेटों के साथ अपनी बेटी भी सौपने के लिए विवश कर दिया इतना ही नहीं हिन्दू परिवारों की धन – सम्पत्ति लूटने के साथ – साथ बहू – बेटियों का भी अपहरण करना शुरू कर दिया |

परिणाम स्वरुप बहू – बेटियों की रक्षा हेतु पर्दा – प्रथा, बाल – विवाह, सती – प्रथा, कन्या – वध, विधवा – प्रताड़ना, आदि तत्कालीन कुरीतियों ने जन्म ले लिया | विदेशियों के आक्रमण से स्थिति और भी भयावह हो गई | बहुविवाह और अनमेल विवाह जैसे भोगवादी मानसिकता का विकास कर नारी को प्राप्त समस्त स्वतंत्रता छीन ली गई |

Hindi essay on Mahila Diwas

दार्शनिक विचारधाराओं में नारी सामर्थ

नारी के मन में असुरक्षा की भावना लाने के जिम्मेदार कही न कही कुछ दार्शनिक की विचारधारा भी सम्लित है | जान स्टुवर्ट मिल, प्लेटो एवं मार्क्स आदि ने नारी को पुरुष के समकक्ष रखने का प्रयास किया लेकिन कुछ दार्शनिक जैसे अरस्तू, हिगेल, कान्ट, नीत्शे, आदि को स्त्री जाति की बौद्धिक और तार्किक क्षमता पर गहरा संदेह था | देकार्ते ने तो खुलकर कहा है कि स्त्री की तर्क क्षमता पुरुषों से कमजोर एवं दुर्बल होती है |

पुरातन में जो नारी पुरुषों की अर्धांगिनी थी उसे जाने – अनजाने ये दार्शनिकों ने दो भागों में बाँट दिया | इन दार्शनिकों ने नारी को संवेदनशील बताकर पुरुषों को उसकी सुरक्षा करने तक की दलील दे डाली | इन्होंने नारी के मन में उसी के अस्तित्व के प्रति असुरक्षा के बीज डाल दिए |

इसके बाद तो नारी को उसके मौलिक अधिकारों से वंचित करने, विरोध करने में नारीवादीरूपी अनेक विचारधाराओं का जन्म हुआ | जिसमें उदार नारीवाद, मार्क्सवादी नारीवाद, मनोविश्लेषक नारीवाद, अराजक नारीवाद, सामाजिक नारीवाद आदि उल्लेखनीय है | इन नारीवादी विचारकों के विचारों का असर भारतीय समाज पर भी पड़ा |

महिला दिवस विशेष : आधुनिक काल में नारी उत्कर्ष का आरंभिक चरण

आधुनिक काल के आरंभ में देश की आजादी के लिए नारी जागरण के महत्व को समझा गया और इसी के निमित्त नारी को विभिन्न विसंगतियों से मुक्त करने का प्रयास शुरू किया गया | इसमें 1955 में पारित विशेष विवाह और विवाह विच्छेद कानून, 1956 में पारित हिन्दू उत्तराधिकार कानून, 1959 में पारित अंतरजातीय विवाह अधिनियम, 1961 में पारित दहेज़ निषेध कानून की वजह से नारी के उत्थान में सर्वथा अनुरूप एवं सुखद परिणाम देखने को मिले |

1970 से 1980 तक अधिकतर नारीवाद आंदोलन स्त्री को पराधीनता की बेड़ियों से निकालने के लिए बनाए गए | इसमें कोई संदेह नहीं कि स्वतंत्रता – संग्राम हेतु नारी सामर्थ का सहयोग प्राप्त करने के लिए जो उसे अवसर प्रदान किया गया उन अपेक्षाओं की कसौटी पर नारी खरी उतरी | इसके बदले आजादी मिलने के बाद नारी को बौधानिक, धार्मिक, सामाजिक लगभग हर प्रकार की विसंगतियों से मुक्त कर दिया गया |

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लेकिन आज विडम्बना देखिए आजादी के बाद जिस नारी को पराधीनता की सारी बेड़ियों से मुक्त कर दिया गया था उसे आज उपभोग की वस्तु मानकर बाजार में खड़ा कर दिया गया है | आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी परिवर्तनों के बाद भी महिला हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है |

घरेलू हिंसा, acid attack , honour killing (सम्मान के लिए मौत के घाट उतरना), अपहरण, तथा पति द्वारा उत्पीडन आदि समाज में महिलाओं के लिए आम बात हो गई है | अगर हम भारतीय समाज की बात करें तो यह एक पुरुष प्रधान समाज है | हर जगह पुरुषों का ही वर्चस्व है | हमारे समाज में नारी को दोयम दरजा देकर उसे बताया जाता है कि उसका कार्य केवल बच्चे पैदा करना और घर सम्भालना है, परंतु महिलाएँ इस पुरुष प्रधान मान्यता को प्रारंभ से ही चुनौती देती आ रही है |

पुरातन उद्धरणों की बात करें तो गार्गी, अपाला और मैत्रेयी जैसी विदुषी नारियों ने पुरुषों को शस्त्रार्थ में, आधुनिक काल में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने रणभूमि में अग्रेजों को, महादेवी वर्मा और सुभद्रा कुमारी चौहान ने श्रेष्ठ साहित्य का सृजन करके, इंदिरा प्रियदर्शिनी ने देश को कुशल नेतृत्व प्रदान करके, प्रथम आइपीएस अधिकारी किरण वेदी कठोर प्रशासकीय दायित्वों का सकुशल निर्वहण करके, मदर टरेसा ने अनाथों को गले लगाकर और कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स ने आकाश की ऊचाईयों को छूकर नारी – सामर्थ का अभिनव परिचय प्रस्तुत किया |

International Women’s Day Speech

मध्यकाल में जिस नारी से उसकी सारी स्वतंत्रता छीन ली गयी थी आज वही नारी पुरुषों के एकछत्र साम्राज्य के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है | आकड़े बताते है कि नारी किसी एक क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ रही बल्कि हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है |

आज से कुछ साल पहले जिन खेलों में नारियों को कमजोर बताकर उन्हें खेलने से रोका जाता था आज उन्ही खेलों में मेरी कॉम (Mary Kom) ने सफलता का परचम लहराकर देश का नाम रोशन किया | गीता फोगाट, पीवी सिंधु, सानिया मिर्जा, सायना नेहवाल, साक्षी मलिक आदि जैसी महिलाए खेल जगत की गौरवपूर्ण पहचान है तो प्रियंका चोपड़ा, एश्वर्या राय, सुष्मिता सेन, लारा दत्ता आदि महिलाओं ने सौन्दर्य प्रतियोगिता जीतकर अन्तराष्ट्रीय मंच पर भारत का नाम रौशन किया |

वर्तमान समय को अगर हम नारी उत्कर्ष की सदी कहे तो गलत नहीं होगा | आज की भारतीय नारी लगातार हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है | लेकिन अभी भी भारतीय नारी को अपना खोया हुआ आत्मसम्मान पाने में कुछ समय अवश्य लगेगा, परन्तु संभावनाएँ स्पष्ट है |

आज भारतीय नारी अनेक क्षेत्रों में आपने – अपने प्रयोजनों में कार्यरत हैं जिनमें शिक्षा, संस्कृति, कला, संपदा, प्रतिभा, कॉरपोरेट, media आदि है | अब यह इन सभी क्षेत्रों में अपना वर्चस्व सिद्ध करती जा रही है | आधुनिक नारी कुरीतियों की बेड़ियों से निकलकर अपने भाग्य की निर्माता स्वयं बन रही है और विधाता ने भी उसे मुक्तिदूत बनने का गरिमापूर्ण दायित्व सौप दिया है |