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हम शायद विशेष लोग हैं !! एकबार जरूर पढ़ें

*हम शायद विशेष लोग हैं !!*
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*क्योंकि हम वो आखरी पीढ़ी  हैं जिन्होंने -*
*कई कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं*

*जमीन पर बैठ कर खाना खाया है,  प्लेट में चाय पी है।*

*हम वो आखरी लोग हैं जिन्होंने -*

*बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली डंडा, छुपा छिपी, खो खो, कबड्डी कंचे.. जैसे खेल खेले ।*

*हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने -*

*कम (या बल्ब की पीली)  रोशनी में होम वर्क किया है और नावेल पढ़े हैं -*

*हम वही पीढ़ी के लोग हैं*

*जिन्होंने अपनों के लिए अपने जज़्बात खतों में आदान प्रदान किये हैं ।*

*हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने -*

*कूलर, एसी या हीटर के बिना ही  बचपन गुज़ारा है -*

*हम अक्सर अपने छोटे बालों में सरसों का ज्यादा  तेल लगा  कर स्कूल और शादियों में जाया करते थे-*

*हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं,*

*जिन्होंने स्याही वाली  दावात या पेन से कॉपी,  किताबें, कपडे और हाथ काले, नीले किये-*

*हम वो आखरी लोग हैं -*

*जिन्होंने टीचर्स से मार खाई है।*

*हम वो आखरी लोग हैं जो-*

*मोहल्ले के बुज़ुर्गों को दूर से देखकर नुक्कड़ से भाग कर घर आ जाया करते थे !*

*हम वो आखरी लोग हैं जिन्होंने -*

*अपने स्कूल के सफ़ेद केनवास शूज़ पर खड़िया का पेस्ट लगाकर चमकाये हैं !*

*हम वो आखरी लोग हैं जिन्होंने -*

*गोदरेज सोप की गोल डिबिया से साबुन लगाकर  शेव बनाई है।  जिन्होंने गुड़  की चाय पी है । काफी समय तक सुबह काला या लाल दंत मंजन या सफेद टूथ पाउडर ही इस्तेमाल किया है।*

*हम निश्चित ही  वो आखिर लोग हैं*

*जिन्होंने  चांदनी रातों में रेडियो पर BBC की ख़बरें, विविध भारती, आल इंडिया रेडियो और बिनाका जैसे  प्रोग्राम सुने हैं।*

*कभी वो भी ज़माने थे :*
*हम सब शाम  होते ही छत पर पानी का छिड़काव किया करते थे-*
*उसके बाद सफ़ेद चादरें बिछा कर सोते थे-*
*एक स्टैंड वाला पंखा सब को हवा के लिए हुआ करता था-*
*सुबह सूरज निकलने के बाद भी ढीठ बने सोते रहते थे-*
*वो सब दौर बीत गया, चादरें अब नहीं बिछा करतीं, डब्बों जैसे कमरों में कूलर, एसी के सामने रात होती है, दिन गुज़रते हैं -*

*वो खूबसूरत रिश्ते और उनकी मिठास बांटने वाले लोग लगातार कम होते गए, होते जा रहे हैं -*

*उस दौर के लोग ज्यादा पढ़े लिखे कम ही होते थे*,

*उन लोगों के घर भले ही पक्के और  ऊंचे नहीं होते थे, मगर क़द में वो आज के इंसानों से कहीं ज्यादा बड़े हुआ करते थे-*

*अब तो लोग जितना पढ़ लिख रहे हैं उतना ही खुदगर्ज़ी, बेमुरव्वती, अनिश्चितता और अकेलेपन, व निराशा,  में खोते जा रहे हैं !*

*हम ही वो खुशनसीब लोग हैं जिन्होंने रिश्तों की मिठास महसूस की है*

*दुआओं में इज़्ज़त और मिन्नतों में नेमत किस्मत वालो को नसीब है....आज का इंसान मुँह पर कुछ और दिल से कुछ और हे..*