शौचालयों स्वच्छता के नारे - ये शौचालयों के नारें है जो बिलकुल नये है- सभी को एकबार जरुर सुनाओ ।।

शौचालयों स्वच्छता के नारे -

ये शौचालयों के नारें  है जो बिलकुल नये
है- सभी को एकबार जरुर सुनाओ ।।

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घर मै फ्रिज है घर मै टी बी
  शौच को बाहर जाती बीबी
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सौ बीघा है घर मै खेती
बाहर शौच को जाती बेटी
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घर बनवाया कितना सुंदर
शौचालय ना घर के अंदर
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लाखों के पहनें है गहने
बाहर शौच को जाती बहने
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घर मै बहू करे मर्यादा
बाहर बदन दिखाये आधा
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शौचालय है शान हमारी
छू मंतर होती बीमारी
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गांव गांव की हालत ऐसी
बीच सडक पर बेटी बैठी
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गाॅव मै जब होता अँधियारा
महिला देखे सडक किनारा
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शौचालय बन वालो भईया
शासन दे रही खूब रुपैया
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बाहर नही शौच को जाना
शौचालय अपना बनवाना
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बाहर शौच काम है गंदा
बंद करो ये मिलकर धंदा
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करते काम सभी ये खोटा
जाव ना बाहर लेकर लोटा
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अपनी इज्जत आप बचाओ
नही शौच को बाहर जाओ
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बाहर शौच है सोच पुरानी
बदल के लिखे दो नई कहानी
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रहन सहन घर का सब बदला
बाहर शौच ना जाना बदला
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नई रजाई नया है गद्दा
बदला नही शौच का अडडा
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बहू ब्याह कर घर मै लाये
पर शौचालय नही बनाये
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सोच अभी है बही पुरानी
बाहर शौच जाये बहू रानी
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बैठी बीच सडक पर चाची
आया कोई उठी हगासी
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घर मै आई नई फटफटिया
शौच कोई जाती बाहर बिटिया
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शौचालय है बहुत जरूरी
पंचायत देती मंजूरी
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शौचालय तुम खुद बनवाओ
बाहर हजार रूपया पाओ
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बारह हजार की मिलती राशि
फौरन खाते मै आ जाती
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पंचायत को देना खाता
आपका रूपया बैंक मै आता
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नही बीच मै कोई दलाल
छीन ना पाये कोई माल
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जिसके घर मै बनी ना टट्टी
उससे सब कोई करना कट्टी
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सबको शौक पडी गहनों की
बाहर इज्जत जाये बहनों की
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गुरु ही ब्रम्हा गुरु ही विष्णु गुरु देवो महेश्वरः , गुरु ही साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवै नमः

*गुरुपूर्णिमा पर विशेष-------*


*( गुरु+पूर्ण+माँ )*
                  *अर्थात*
 *सर्वप्रथम: माँ ही पूर्ण गुरु है*


*धन्य है वो लोग जो गुरु के संपर्क मे है तथा उनके सानिध्य में जीवन मे कुछ ज्ञान और शिक्षा ग्रहण करने का अवसर मिला।*
*गुरु शब्द और गुरु का जीवन समुद्र की गहराई है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है।*

"सब धरती कागज करूँ
लिखनी सब वनराय
सात समुंदर मसि करूँ 
गुरु गुण लिखा ना जाये"

*गुरु का महत्व -*
सात द्वीप नौ खंड में 
गुरु से बड़ा ना कोय ।
करता करे न कर सके 
गुरु करे सो होय ।

*गुरु का हाथ पकड़ने की बजाय अपना हाथ गुरु को पकड़ा दो क्योंकि हम गुरु का हाथ गलती से छोड़ सकते हैं, किन्तु........*
*गुरु हाथ पकड़ेंगे तो कभी नहीं छोड़ेंगे*

गुरु ही ब्रम्हा गुरु ही विष्णु गुरु देवो महेश्वरः ।।
गुरु ही साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवै नमः ।।

*गुरु के बिना ज्ञान अधूरा है , गुरु ही हमें सही राह दिखाते है ।*
*इसलिए हमें गुरु की हर आज्ञा का पालन करना चाहिए ।।*
*प्रभु श्रीराम एवं श्री कृष्ण को भी गुरु के पास शिक्षा प्राप्त करना पड़ी थी।*
*गुरु भक्ति के कई उदाहरण हमारे ग्रंथों में हैं ।।*







*गुरु ही मीत है*
                     *गुरु ही प्रीत है*
*गुरु ही जीवन है*
                     *गुरु ही प्रकाश है*
*गुरु ही सांस है*
                     *गुरु ही आस है*
*गुरु ही प्यास हैै*
                     *गुरु ही ज्ञान है*
*गुरु ही ससांर है*
                     *गुरु ही प्यार है*
*गुरु ही गीत है*
                     *गुरु ही संगीत है*
*गुरु ही लहर है*
                     *गुरु ही भीतर है*
*गुरु ही बाहर है*
                     *गुरु ही बहार है*
*गुरु ही प्राण है*
                     *गुरु ही जान है*
*गुरु ही संबल है*
                     *गुरु ही आलंबन है*
*गुरु ही दर्पण है*
                     *गुरु ही धर्म है*
*गुरु ही कर्म है*
                     *गुरु ही मर्म है*
*गुरु ही नर्म है*
                     *गुरु ही प्राण है*
*गुरु ही जहान है*
                     *गुरु ही समाधान है*
*गुरु ही आराधना है*
                     *गुरु ही उपासना है*
*गुरु ही सगुन है*
                     *गुरु ही निर्गुण है*
*गुरु ही आदि है*
                     *गुरु ही अन्त हैै*
*गुरु ही अनन्त है*
                     *गुरु ही विलय है*
*गुरु ही प्रलय है*
                     *गुरु ही आधि है*
*गुरु ही व्याधि है*
                     *गुरु ही समाधि है*
*गुरु ही जप है*
                     *गुरु ही तप है*
*गुरु ही ताप है*
                     *गुरु ही यज्ञः है*
*गुरु ही हवन है*
                     *गुरु ही समिध है*
*गुरु ही समिधा है*
                     *गुरु ही आरती है*
*गुरु ही भजन है*
                     *गुरु ही भोजन है*
*गुरु ही साज है*
                     *गुरु ही वाद्य है*
*गुरु ही वन्दना है*
                     *गुरु ही आलाप है*
*गुरु ही प्यारा है*
                     *गुरु ही न्यारा है*
*गुरु ही दुलारा हैै*
                     *गुरु ही मनन है*
*गुरु ही चिंतन है*
                     *गुरु ही वंदन है*
*गुरु ही चन्दन है*
                     *गुरु ही अभिनन्दन है*
*गुरु ही नंदन है*
                     *गुरु ही गरिमा है*
*गुरु ही महिमा है*
                     *गुरु ही चेतना है*
*गुरु ही भावना है*
                     *गुरु ही गहना है*
*गुरु ही पाहुना है*
                     *गुरु ही अमृत है*
*गुरु ही खुशबू है*
                     *गुरु ही मंजिल है*
*गुरु ही सकल जहाँ है*
                     *गुरु समष्टि है*
*गुरु ही व्यष्टि है*
                     *गुरु ही सृष्टी है*
*गुरु ही सपना है*
                     *गुरु ही अपना है*
करता करे ना कर सके,
    गुरु करे सब होय।
सात द्वीप नौ खंड में,
    गुरु से बड़ा ना कोय ।।
सात संमुद्र की मसीह करु,
लेखनी सब वनराय।
सब धरती कागज करु पर,
गुरु गुण लिखा ना जाय ।।
गुरु को पारस जानिए, करे लौह को स्वर्ण.
शिष्य और गुरु जगत में, केवल दो ही वर्ण..
*
संस्कार की सान पर, गुरु धरता है धार.
नीर-क्षीर सम शिष्य के, कर आचार-विचार..
*
माटी से मूरत गढ़े, सद्गुरु फूंके प्राण.
कर अपूर्ण को पूर्ण गुरु, भव से देता त्राण..
*
गुरु से भेद न मानिये, गुरु से रहें न दूर.
गुरु बिन 'सलिल' मनुष्य है, आँखें रहते सूर
गुरु पूर्णिमा की आप सभी को अनंत बधाई
गुरु गोविन्द दोऊ ख़ड़े काके लागो पाय।
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय॥
     ब्रह्मा बनकर अपने शिष्य में सदगुणों का सृजन करना। बिष्णु बनकर उसके सदगुणों, सदप्रवृत्तियों का रक्षण और पालन करना।
महेश बनकर उसमे शेष दुष्प्रवृतियों का नाश करना और शिष्य को उसके साक्षात ब्रह्म स्वरुप का आभास करा देने वाले ऐसे प्रज्ञा पुरुष के प्रति कृत्य - कृत्य हो जाने वाला महापर्व ही गुरु पूर्णिमा है।
    
जगत में कुशलता पूर्वक चलना सिखाए वो गुरु और जगत से कुशलता पूर्वक चलाकर जगदीश तक पहुँचा दे वो सद्गुरु है।
शूल से फूल, कंकड़ से कंचन, और भोगवान से भगवान बनाने वाले ऐसे सदगुरु देव के चरणों में बारम्बार प्रणाम है।
भारत के सभी पूज्य संतों और गुरुओं के चरणों में वंदन, उनका निरंतर आशीर्वाद और सान्निध्य हम सबको
          
            "पानी" के बिना
            "नदी" बेकार है,
           "अतिथि" के बिना
            "आँगन" बेकार है,
             "प्रेम" ना हौ तो
         "सगेसम्बन्धी"बेकार है,
                   *और*
         जीवन में "गुरु" ना हौ तो
             "जीवन" बेकार है।
                *इसलिये*
       जीवन में "गुरु" ज़रूरी है
पर गुरुर नही.
जय माता जी,

घमंड से अपना *सर* ऊँचा न करे... जीतने वाले भी .... अपना *गोल्ड मैडल*... सिर झुका के हासिल करते है


घमंड से अपना *सर* ऊँचा न करे...
जीतने वाले भी ....
अपना *गोल्ड मैडल*...
सिर झुका के हासिल करते है




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आहिस्ता से पढना- पछतायेगा कौन ? 
एक वाक्य भी दिल में बैठ गया तो कविता सार्थक हो जायेगी -
मैं रूठा ,
      तुम भी रूठ गए
                      फिर मनाएगा कौन ?
आज दरार है ,
           कल खाई होगी
                           फिर भरेगा कौन ?
मैं चुप ,
     तुम भी चुप
          इस चुप्पी को फिर तोडे़गा कौन ?
छोटी बात को लगा लोगे दिल से ,
                 तो रिश्ता फिर निभाएगा कौन ?
दुखी मैं भी और  तुम भी बिछड़कर ,
                   सोचो हाथ फिर बढ़ाएगा कौन ?
न मैं राजी ,
       न तुम राजी ,
             फिर माफ़ करने का बड़प्पन
                                       दिखाएगा कौन ?
डूब जाएगा यादों में दिल कभी ,
                        तो फिर धैर्य बंधायेगा कौन ?
एक अहम् मेरे ,
       एक तेरे भीतर भी ,
               इस अहम् को फिर हराएगा कौन ?
ज़िंदगी किसको मिली है सदा के लिए ?
              फिर इन लम्हों में अकेला
                                     रह जाएगा कौन ?
मूंद ली दोनों में से गर किसी दिन
           एक ने आँखें....
                तो कल इस बात पर फिर
                                      पछतायेगा कौन ?




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      *कोई आपके लिए रूपये*
               *खर्च करेगा तो कोई*
                *समय खर्च करेगा,*
             *समय खर्च करने वाले*
         *व्यक्ति को हमेशा अधिक*
              *महत्व और सम्मान*
                 *देना क्योंकि...*
           *वह आपके पीछे अपने*
           *जीवन के वो पल खर्च*
          *कर रहा है जो उसे कभी*
             *वापिस नही मिलेंगे !!*



*अभिमान तब आता है*
*जब हमे लगता है हमने कुछ काम किया है,*
                *और* .. .. ..
    *सम्मान तब मिलता है .. .. ..*
*जब दुनिया को लगता है,*
*कि आप ने कुछ महत्वपूर्ण काम किया है ।।*



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रेती मा पडेली खाँड़ कीडी वीणी शके पण हाथी नही
तेथी क्यारेय नाना माणस ने नानों न गणवो,
क्यारेक नानों माणस मोटु काम करी जाय छे,

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दर्पण जब चेहरे का दाग दिखाता है,
तब हम दर्पण नहीं तोडते बल्कि दाग साफ करते हैं।
उसी प्रकार हमारी कमी बताने वाले पर क्रोध करने के बजाय कमी दूर करना श्रेष्ठ है।  







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"मनुष्य कितना भी गोरा क्यों ना हो परंतु उसकी
परछाई सदैव काली होती है...!!
"मैं श्रेष्ठ हूँ" यह आत्मविश्वास है
लेकिन....
"सिर्फ मैं ही श्रेष्ठ हूँ"यह अहंकार है !


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            "अंहकार" और "पेट"
               जब बढ़ जाता है,
                  तो 'इंसान....
                चाह कर भी
        "गले" नहीं मिल सकता..!!"
       
      





   
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          "कर्म" एक ऐसा रेस्टोरेंट है ,
               जहाँ ऑर्डर देने की
                  जरुरत नहीं है
             हमें वही मिलता है जो
                 हमने पकाया है।
         
            जिंदगी की बैंक में जब
             " प्यार " का " बैलेंस "
                 कम हो जाता है
             तब " हंसी-खुशी " के
           चेक बाउंस होने लगते हैं।
                 इसलिए हमेशा
                 अपनों के साथ
           नज़दीकियां बनाए रखिए ।
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*"रोने से तो आंसू भी पराये हो जाते हैं,*
*"लेकिन मुस्कुराने से...*
*पराये भी अपने हो जाते हैं !*
*"मुझे वो रिश्ते पसंद है,*
*"जिनमें " मैं " नहीं " हम " हो !!*
*"इंसानियत दिल में होती है, हैसियत में नही,*
*"उपरवाला कर्म देखता है, वसीयत नही..!!*
          .
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.
                *घमंड* और *पेट*
                जब ये दोनों बढतें हैं..
          तब *इन्सान* चाह कर भी 
       किसी को गले नहीं लगा सकता..
      जिस प्रकार नींबू के रस की एक बूँद
     हज़ारों लीटर दूध को बर्बाद कर देती है...
                     ...उसी प्रकार...
                  *मनुष्य* *का* *अहंकार*
              भी अच्छे से अच्छे संबंधों को
                     बर्बाद कर देता है".!!!
      
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: *" नफरतों में क्या रखा हैं ..,*
*मोहब्बत से जीना सीखो..,*
            *क्योकि*
*ये दुनियाँ न तो हमारा घर हैं ...*
                *और ...*
*न ही आप का ठिकाना ..,*
*याद रहे !                                        .       दूसरा मौका सिर्फ*                            
*कहानियाँ देती हैं , जिन्दगी नहीं....*..                                .                         *मानव कितने भी प्रयत्न कर ले* 
            *अंधेरे में छाया*
            *बुढ़ापे में काया*
                    *और*
          *अंत समय मे माया*
       *किसी का साथ नहीं देती*
             
     *""सदा मुस्कुराते रहिये""*

*हर चीज़ की कीमत समय आने पर ही होती है,*

*हर चीज़ की कीमत समय आने पर ही होती है,*
*मुफ्त में मिलता हुआ ये ओक्सिजन, अस्पताल में बहुत महंगा बिकता है।।*



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*नदी* का पानी *मीठा* होता है क्योंकि
              वो पानी *देती* रहती है।
*सागर* का पानी *खारा* होता है क्योंकि
             वो हमेशा *लेता* रहता है।
*नाले* का पानी हमेशा *दुर्गंध* देता है क्योंकि
              वो *रूका* हुआ होता है।
           *यही जिंदगी है*
*देते रहोगे* तो सबको *मीठे* लगोगे।
*लेते रहोगे* तो *खारे* लगोगे।और
अगर *रुक गये* तो सबको *बेकार* लगोगे।
    
निष्कर्ष : *सत्कर्म ही जीवन है।*


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         अमीर के जीवन में जो
                    महत्व
       ""सोने""    की      ""चैन""
                का होता है
        गरीब के जीवन में वही
                    महत्व
         ""चैन""   से    ""सोने ""
               का होता है



*मैदान में हारा हुआ फिर से जीत सकता है* *परंतु* *मन से हारा हुआ कभी जीत नहीं सकता।* *आपका आत्मविश्वास ही आपकी सर्वश्रेष्ठ पूँजी है।*

*वो कहते है कि शादी के लिये जोडियां ईश्वर स्वर्ग में ही बना देता है ....* यह सच है??


*पर ईश्वर की बनाई जोडियां एक ही जाति की क्यों होती हैं ??*


*क्या ईश्वर 'जातिवादी' है ??*


या फ़िर जातिवादीयों ने ही.... *ईश्वर* बनाया है...
अब सोचिये.


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*मैदान में हारा हुआ फिर से जीत सकता है*
                 *परंतु*
*मन से हारा हुआ कभी जीत नहीं सकता।*
*आपका आत्मविश्वास ही आपकी सर्वश्रेष्ठ पूँजी है।*



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ज्ञान को आगे रखकर कर्म (पुरुषार्थ) करना चाहिए- पुरुषार्थ से सारे कार्य सिद्ध होते है। आलस्य में जीवन बिताना, उसे नीरस, फीका बनाना है। आलस्य सब दुखों का मूल है। यह दरिद्रता लाता है और ऐश्वर्य ले जाता है। ईश्वर प्राप्ति के लिए जो पुरुषार्थ होता है, उसे परम पुरुषार्थ कहते है। लौकिक और परलौकिक सुख दोनो इसी में है अतएव मनुष्य  को पुरुषार्थी-उद्योगी, यत्नशील होना चाहिए।


 जीवन एवं निर्माण को देखकर हम प्रसन्न होते हैं और मृत्यु एवं निर्माण को देखकर उदास। ऐसे क्यों? क्योकि हम इन दोनों क्रियाओं को भिन्न-भिन्न देखते है, जबकि यह दोनों क्रियाये एक ही है। के लिये निर्वाण अपेक्षित है और जीवन के लिए मृत्यु आवश्यक। यदि मृत्यु न हो तो जीवन निक्कमा और निष्क्रिय होकर बोझ बन जाये। नवीनता से वंचित होकर जड़ता का अभिशाप बनकर रह जाये। न रहने की सम्भावना में ही हर कर्म रुप में रहने का प्रयत्न करते है।


नीतिकारों का कहना है कि जिसका यश है उसीका जीवन-जीवन है। प्रतिष्ठा का, आदर का, विश्वास का, श्रद्धा का सम्पादन करना सचमुच एक बहुत बडी कमाई है। देह मर जाती है पर यश नहीं मरता। ऐतिहासिक सत्पुरुषों को स्वर्ग सिधारे हजारों वर्ष बीत गए परन्तु उसके पुनीत चरित्रों का गायन कर असंख्यों मनुष्य अब भी प्रकाश प्राप्त करते हैं।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
     

एकाग्रता की शक्ति को कैसे बढ़ाये

एकाग्रता की शक्ति को कैसे बढ़ाये
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चाहे आप कहीं भी कोई भी काम कर रहे हों, हर जगह ध्यान भटकाने वाली चीजें होती हैं। इसलिए काम पर एकाग्र होना एक मुश्किल काम है। मनुष्य का मस्तिष्क ऐसा नहीं है कि वह आसपास होने वाले कोलाहल को नजरअंदाज कर सके। माहौल में जरा सी भी हलचल ध्यान भटकाने के लिए काफी होती है।एकाग्रता को बढ़ाने के लिए ढृढ़ता बेहद जरूरी हैं।
۩  जीवन में एकाग्रता बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और इसके इलावा हर क्षेत्र जैसे बिज़नस, जॉब, लौकिक पढ़ाई आदि। किसी भी कार्य में सफलता का आधार एकाग्रता होती है। एकाग्रता वास्तव में एक बहुत बड़ी *तपस्या* है, यह *निरंतर अभ्यास* से हासिल होती है। मन को एकाग्र करने के कुछ अनुभव में से *टिप्स* इस प्रकार हैं ―
۩  मन और बुद्धि का एक होकर कार्य में साथ देना। जितना मन-बुद्धि साथ होंगे उतनी एकाग्रता बढ़ेगी।
۩  *माहौल का करें चुनाव*
आप जिस माहौल में काम करते हैं, वह एकाग्रता को बढ़ाने में काफी महत्वपूर्ण होता है। आरामदायक और आकर्षक माहौल में काम करते समय पूरी तरह से एकाग्रता हासिल की जा सकती है।
۩  *विचारों को नियंत्रित करें*
अपने दिमाग में अनौपचारिक विचार न आने दें। इससे बेवजह ही आपकी एकाग्रता भंग होगी। जब भी मन में काम से अलग विचार आए तो उस पर ध्यान न दें और आप जो काम कर रहे हैं उन पर पूरी तरह से केंद्रित हो जाएं।
۩  *टाइम प्लान बनाएं*
आपको जो काम करना है उसकी सूची बना लें। इसमें संतुलन के जरूरी है कि गंभीर काम को पर्याप्त समय दें।
۩  *नकारात्मक न सोचें*
मन में ऐसे विचार न आने दें कि आप खुद को एकाग्र नहीं कर सकते। इससे दिमाग को यह संदेश जाएगा कि आपमें एकाग्रता की कमी है। ऐसे में काम पर ध्यान केंद्रित करना और भी मुश्किल हो जाएगा।
۩  *मल्टी-टास्किंग से बचें*
मल्टी-टास्किंग में कभी भी एकाग्रता हासिल नहीं की जा सकती। जब आपके सामने काम का अंबार होगा तो आप जो काम कर रहें हैं, उस पर ध्यान नहीं लगा पाएंगे।
۩  *लक्ष्य पर फ़ोकस करें*
जो लक्ष्य जीवन में लेकर चले उस पर सम्पूर्ण रूप से ध्यान दे। जो बात बीत गई उसे छोड दे।अपना प्रेजेंट अच्छे से अच्छा करे।व्यर्थ देखने का सुख हमें एकाग्र होने नही देता।
۩  *शोर शराबा न हो*
ये काफी महत्वपूर्ण है कि आप जहाँ काम कर रहे हैं वहाँ ज्यादा शोर शराबा न हो। इससे आप काम पर ध्यान केंद्रित कर सकते है।
۩  *आहार और व्यायाम*
एकाग्रता हासिल करने में संतुलित आहार और व्यायाम की भी अहम भूमिका होती है। जरूरी पोषक तत्व के अभाव से आप में थकान और आलस्य आ सकता है। इसलिए विटामिन ई से भरपूर बादाम और फल को अपने आहार में शामिल करें। साथ ही रूटीन के तहत व्यायाम भी करें।
۩  *काम को समझें*
अगर आप को यह अच्छी तरह से मालूम न हो कि आपको करना क्या है, तो ऐसे में काम के प्रति एकाग्र होना और भी मुश्किल हो जाता है।
۩  *टाल-मटोल न करें*
टाल-मटोल की आदत कभी न डालें। यह एकाग्रता पर गहरा असर डालता है। जबतक कि आप बोझिल कामों को निपटा न लें, अपनी सीट से न उठें।
۩  *सकारात्मक रहें*
जब भी आपको काम पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत हो तो हमेशा अपने आप से बार-बार कहें कि आप ध्यान लगा सकते हैं। यह आपके अंदर एकाग्रता बढ़ाने में मददगार साबित होगा।
۩  *काम को बांटे*
जिस काम का कोई स्पष्ट आरंभ और अंत न हो वह आपके ध्यान को भटका सकता है। अगर आपके पास कोई बहुत बड़ा प्रोजेक्ट हो तो एक रास्ते का चयन करें, जिससे आप उस काम को शुरू कर सकें।
۩  एकाग्रता मतलब किसी चीज़ को लेकर हमारा फोकस।जो एकाग्रता में रहते है उनके संकल्पों में बहुत बल होता है।
۩  *अनुशासन*
अपने आप को अनुशासन में रखना काफी जरूरी होता है। साथ ही प्रभावी काम के लिए जरूरी है कि आप उसमें ज्यादा समय दें। इसलिए छोटे काम से शुरुआत करें और अगर आप आसानी से ध्यान नहीं लगा पा रहे हैं, तो काम को पूरा समय दें।
۩  *अच्छी नींद लें*
अपने सोने का समय सुनिश्चित करें। अगर आप अच्छी नींद नहीं ले रहे हैं तो आप पर थकावट और आलस्य हावी रहेगा। ऐसे में आप किसी भी काम पर ध्यान नहीं लगा पाएंगे।
۩  *जरूरी चीजों की व्यवस्था करें*
इस बात को सुनिश्चित करें कि काम करने से पहले आपने उसके लिए जरूरी चीजों की व्यवस्था कर ली है। इससे अनावश्यक भटकाव नहीं होगा और आप स्थिर होकर काम कर पाएंगे।
۩  इसके इलावा एकाग्रता के अभ्यास के लिए छोटी छोटी चीज़ें फॉलो करना जैसे अपनी श्वास पर ध्यान केंद्रित करना, अपने मन की चेकिंग करना, अपने दिल की धड़कन की सुनना आदि।
۩ ۩  *अव्यक्त बापदादा* ۩ ۩
۩  जहाँ एकाग्रता होगी, वहाँ संकल्प, बोल और कर्म का व्यर्थपन समाप्त हो जाता है और समर्थपन आ जाता है । समर्थ होने के कारण सब में सिद्धि हो जाती है। (28-12-1979)
۩  *साइंस का महत्व क्यों है?*
प्रयोग में आती है तब सब समझते है, हाँ, साइंस अच्छा काम करती है तो साइलेंस की पॉवर का प्रयोग करने के लिए एकाग्रता की शक्ति चाहिए और एकाग्रता का मूल आधार है- मन की कंट्रोलिंग पॉवर, जिससे मनोबल बढ़ता है । मनोबल की बड़ी महिमा है, यह रिद्धि सिद्धि वाले भी मनोबल द्वारा अल्पकाल के चमत्कार दिखाते है । आप तो विधिपूर्वक, रिद्धि सिद्धि नहीं, विधिपूर्वक कल्याण के चमत्कार दिखाएंगे जो वरदान हो जायेंगे; आत्माओं के लिए यह संकल्प शक्ति का प्रयोग वरदान सिद्ध हो जायेगा । 
۩  एकाग्रता बढ़ाने के लिए मन में श्रेष्ठ विचारो का होना अति आवश्यक हैं।बुद्धि को शुद्ध करे।
नीचे दिये गए स्वमान का अभ्यास करें।रात को सोने से पहले 108 बार 21 दिन तक लिखें:

मैं एकाग्रचित्त आत्मा हूँ
मैं एक महान आत्मा हूँ।

मैं परम पवित्र आत्मा हूँ।
           संकल्प करें......मैं मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ....मेरे पास सभी शक्तिया हैं...मेरे पास एकाग्रता की शक्ति भी है।
۩  परमात्मा जो सर्वशक्तियों का सागर हैं, दाता हैं उसे जाने और उससे अपना connection जोड़े।धीरे 2 उसकी शक्तिया आपके अंदर आने लगेंगे और आपका मन शांत होता जायेगा। एकाग्रता बढ़ती जायेगी।और मानसिक डिस्टर्बेंस धीरे-धीरे समाप्त होता जाएगा।
۩ व्यर्थ देखना जैसे टीवी इंटरनेट कुदृष्टि आदि, व्यर्थ सुनना, व्यर्थ बोलना, व्यर्थ व अनावश्यक सोचना आदि पर नियंत्रण करने से 90% तक एकाग्रता को बढाया जा सकता है।

*23 मार्च शहीदे आझम ने अंजळी.*

*23 मार्च ..शहीदे आझम ने अंजळी.*
,          *हिंद जाया नुं हालरडु*



पिता किसन सिंह अने मां विध्यावती ने ज्यारे पोताना खोळाना खुंदनार ने फांसी नी पेहला छेल्ली वखत मळवा जवानुं हशे..ई चोविस मी मार्च ना लाहोर जेल ने दरवाजे मां पोताना दीकरा ने छेल्ली वार मळवाना अबरखे उभी हसे अने खबर मळे के फांसी तो काल रात्रेज अपाई गई..अने मृत देह सोंपाणो होय..ई आंखो बंद करी ने सुतेला त्रण सावजो ..मां भारती ना भुलकां...सुखदेव राजगुर अने भगतसिंह...ऐनी बंध आखो जोई मां ने काळजे केवा घा वाग्या हशे...आ हिंद ने बिजा तो शुं ठबका देवा ? 




.            *|| हाला गाउं हिंद ना लाला ||*
.        *रचना : जोगीदान गढवी (चडीया )*
.           *राग:  बेटी बहुं बाप ने व्हाली*


लोट्यो तुंतो हिंद ना लाला, हैडा फाट गाउं हुं हाला
काळजडाने बोल ई काला, भोकें मारी छातीये भाला...टेक
निकळ्यो तो तुं निहाळ जावा ने, जलीया वाला जेल
दील दीधुं तुं देस ने तारा, मन मां नोंहतोय मेल
आग्युं घट सळगे आला..हाला गाउं हिंद ना लाला..||01||
खेतरे जई ने खेलतो तो तुं, हळ वावी हथीयार
जोई रहे केम सिखणीं जायो, मातृ भुमी ने मार
मंड्यो लईन हाथ मिशाला, हाला गाउं हिंद ना लाला..||02||
आटक्यो तुं अंगरेज ने माथे, बाटक्यो तुं बळवान
साटक्यो तें सारडील ने सेरी, जाटक्यो लीधेल जान
दागी त्रण गोळीयुं डाला..लीधूं तेंतो वेर ई लाला...||03||
दोसतारुं संग दीधीयुं तेतो, घारा सभा मां धिंह..
बोम फेंकी ने तुं बंकडा बोल्यो, हुं सिखणीं जायो सिंह
अंगरेजांय भर्य उचाला, हरखी तारा गाउं हुं हाला..||04||
थथरी गोरा ना काळजां कंप्या, पाडतां तुं  पड़कार
जुलतो लाहोर मांचडे जोया, अमे  हिंद माता नो हार
विरा त्रण लागीया वाला, हाला गाउ हिंद ना लाला..||05||
हिंद हैये तुं हीबकी हाल्यो, सहीद आजम नो सूर
जननीने जोगीदान जळेळ्या, पांपणे आंहुना पूर
ठबका शुं आ देस ने ठाला, हाला गाउं हिंद ना लाला..||06||