अभिमन्यु की एक बात बड़ी शिक्षा देती हैं .. -हिम्म्त से हारना- मगर -हिम्मत मत हारना-
कायर भी जंग लड़ लेते है...
जो हार निश्चित हो फिर भी मैदान नहीं छोड़ते...
तो जो लिखा है तकदीर में, वो ही पाओगे...
तो ईश्वर वही लिखेगा, जो आप चाहोगे...
बड़ी शिक्षा देती हैं ..
मगर
-हिम्मत मत हारना-
वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!! सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!
मगर पानी मे जहर था...
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।।
_________________________
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"..
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी!!!!
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया....
पढ ले या बोल लें
वो आपका भला नही करेंगे
जब तक आप
उन्हें उपयोग में नही लाते ।।
एक और दिन के लिए ईश्वर को धन्यवाद दीजिये। इसे बर्वाद मत करिये।
एक और दिन के लिए ईश्वर को धन्यवाद दीजिये। इसे बर्वाद मत करिये।
एक "निर्णय" कुछ बदलता है ,
लेकिन....
एक "निश्चय" सब कुछ बदल देता है|
मघसॅ डे ने उजववा करतां ते मघर साथे अडघो कलाक पसार करशो तो पण तेना जीवनमां उत्सव जेवुं वातावरण रहेशे.
मातृशकितने सलाम :
आजे '' मघॅस डे '' छे. कवि कहे छे: ' हे मानवी शीतळता मेळववाने माटे दोडादोड शानी करे छे ? साची शीतळता तो मानी गोदमां ज छे, जे हिमालयनी टोच पर पण नथी. '
गुजराती कवि बोटादकरे मातृवंदनानुं अदभूत काव्य '' जननीनी जोड सखी नहीं मळे रे लोल '' ललकायुॅ छे. तो मां ते मां बीजा बघा वगडाना वा जेवी देशी कहेवत पण ओछा शब्दोमां मानो महिमा समजावी जाय छे.
तो मात्र मानी खुशी अने आनंद माटे अने उसत्वोना घजागरा छोडीने साचा मनथी तेने भेटजो.. तेने ऐक वखत कहेजो के तमे तेने चाहो छो...तमारा जीवनमां तेनुं स्थान विशेष छे... पछी मने नथी लागतुं के, भेट सोगादो के केक लाववाना घतिंग करवानी जरुर पडे. मघसॅ डे ने उजववा करतां ते मघर साथे अडघो कलाक पसार करशो तो पण तेना जीवनमां उत्सव जेवुं वातावरण रहेशे. कारण के ऐकाद दिवसनी उजवणीथी आ अमूल्य ऋुण उतरे ऐवुं नथी. आ प्रसंगे कवि अनिल चावडानी रचना याद आवे छे...
'' दिकरा साथे रहेवा मा ह्रदयमां हषॅ राखे छे.
दिकरो बिमार मा माटे अलगथी नसॅ राखे छे.
सहेज अडतामां ज दु:खो सामटा थई जाय छे गायब.
मा हथेळीमां सतत जादुई ऐवो स्पशॅ राखे छे.
जो रुला के खुद भी रो पड़े वही "माँ" है।
हँसाना भी हर किसी को आता है,
रुला के जो मना ले वो "पापा" है,
बेकार है
वो एक रुपये के सामने
जो MAA स्कूल जाते वक्त देती थी
-माँ-
माँ एक ऐसा शब्द हैं,
जिसे सिर्फ़ बोलने से ही अपने हृदय में प्यार और ख़ुशी की लहर आ जाती हैं...
"माँ" एक रिश्ता नहीं एक अहसास है,
भगवान मान लो या खुदा,
खुद वो माँ के रूप में हमारे आस पास है..
आज मां ने ही परोसा है ।"
लाइन छोटी है पर मलतब बहुत बड़ा है.
सब समजते है,
कोइ नहि समजता"
लोग खो नही - बदल जाते हे
छोटे थे तब सब नाम से बुलाते थे ,
बड़े हो गये तो बस काम से बुलाते हे..!!
किस से किस का सुकून लूटा है;
मैं भी झूठा हूँ तू भी झूठा है।
क्योंकि...
जिंन्हें हम जवाब नहीं देते.. उन्हें वक़्त जवाब देता हैं...
बचपन में अपनों से
भी रोज रुठते थे, आज दुश्मनों से भी
मुस्करा के मिलते है.!!