कायर भी जंग लड़ लेते है...
जो हार निश्चित हो फिर भी मैदान नहीं छोड़ते...
तो जो लिखा है तकदीर में, वो ही पाओगे...
तो ईश्वर वही लिखेगा, जो आप चाहोगे...
बड़ी शिक्षा देती हैं ..
मगर
-हिम्मत मत हारना-
मातृशकितने सलाम :
आजे '' मघॅस डे '' छे. कवि कहे छे: ' हे मानवी शीतळता मेळववाने माटे दोडादोड शानी करे छे ? साची शीतळता तो मानी गोदमां ज छे, जे हिमालयनी टोच पर पण नथी. '
गुजराती कवि बोटादकरे मातृवंदनानुं अदभूत काव्य '' जननीनी जोड सखी नहीं मळे रे लोल '' ललकायुॅ छे. तो मां ते मां बीजा बघा वगडाना वा जेवी देशी कहेवत पण ओछा शब्दोमां मानो महिमा समजावी जाय छे.
तो मात्र मानी खुशी अने आनंद माटे अने उसत्वोना घजागरा छोडीने साचा मनथी तेने भेटजो.. तेने ऐक वखत कहेजो के तमे तेने चाहो छो...तमारा जीवनमां तेनुं स्थान विशेष छे... पछी मने नथी लागतुं के, भेट सोगादो के केक लाववाना घतिंग करवानी जरुर पडे. मघसॅ डे ने उजववा करतां ते मघर साथे अडघो कलाक पसार करशो तो पण तेना जीवनमां उत्सव जेवुं वातावरण रहेशे. कारण के ऐकाद दिवसनी उजवणीथी आ अमूल्य ऋुण उतरे ऐवुं नथी. आ प्रसंगे कवि अनिल चावडानी रचना याद आवे छे...
'' दिकरा साथे रहेवा मा ह्रदयमां हषॅ राखे छे.
दिकरो बिमार मा माटे अलगथी नसॅ राखे छे.
सहेज अडतामां ज दु:खो सामटा थई जाय छे गायब.
मा हथेळीमां सतत जादुई ऐवो स्पशॅ राखे छे.
माँ संवेदना है, भावना है, अहसास है
माँ जीवन के फूलों में, खूशबू का वास है
माँ रोते हुए बच्चे का, खुशनुमा पालना है
माँ मरूस्थल में नदी या मीठा-सा झरना है
माँ लोरी है, गीत है, प्यारी-सी थाप है
माँ पूजा की थाली है, मंत्रो का जाप है
माँ आँखो का सिसकता हुआ किनारा है
माँ ममता की धारा है, गालों पर पप्पी है,
माँ बच्चों के लिए जादू की झप्पी है
माँ झुलसते दिनों में, कोयल की बोली है
माँ मेंहँदी है, कुंकम है, सिंदूर है, रोली है
माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है
माँ फूंक से ठंडा किया कलेवा है
माँ कलम है, दवात है, स्याही है
माँ परमात्मा की स्वयं एक गवाही है
माँ अनुष्ठान है, साधना है, जीवन का हवन है
माँ जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है
माँ चूड़ीवाले हाथों के, मजबूत कंधो का नाम है
माँ काशी है, काबा है, और चारों धाम है||
माँ चिन्ता है, याद है, हिचकी है
माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है
माँ चूल्हा, धुँआ, रोटी और हाथों का छाला है
माँ जीवन की कड़वाहट में अमृत का प्याला है
माँ पृथ्वी है, जगत है, धूरी है
माँ बिना इस सृष्टि की कल्पना अधूरी है
माँ का महत्व दुनिया में कम हो नहीं सकता
माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता ।
महाकवि ओम व्यास ओम जी की इन अनमोल पंग्तियों के साथ