वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!! सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!


आगे सफर था और पीछे हमसफर था..
रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता..






मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी..



ए दिल तू ही बता,उस वक्त मैं कहाँ जाता...


मुद्दत का सफर भी था और बरसो का हमसफर भी था
रूकते तो बिछड जाते और चलते तो बिखर जाते....




यूँ समँझ लो,
प्यास लगी थी गजब की...
मगर पानी मे जहर था...



पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते.






बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!





वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!






सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।।
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।।






"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है!!








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"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"..
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी!!!!
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया....
अब अमीरी का लालच दे के जवानी ले जाएगा. .......




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आप कितने भी पवित्र शब्द
               पढ ले या बोल लें
        वो आपका भला नही करेंगे
                 जब तक आप
उन्हें उपयोग में नही लाते ।।


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आज जब आप उठ रहे थे , कोई अपनी आखिरी साँसे ले रहा था….
एक और दिन के लिए ईश्वर को धन्यवाद दीजिये। इसे बर्वाद मत करिये।


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आज जब आप उठ रहे थे , कोई अपनी आखिरी साँसे ले रहा था….
एक और दिन के लिए ईश्वर को धन्यवाद दीजिये। इसे बर्वाद मत करिये।


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अपनी गलतियो को स्वीकारना एवं उन्हे सुधारना, जीवन मे सफलता की पहली सीढी है,
और परस्पर सम्बन्धो को सहज एवं सरल रखने का सर्वोत्तम मंत्र है ।





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एक "इच्छा" कुछ नहीं बदलती,
एक  "निर्णय" कुछ बदलता है ,
लेकिन....                     
एक "निश्चय" सब कुछ बदल देता है| 



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जीवन के  तीन मंत्र
 *आनंद में- वचन मत दीजिये*
*क्रोध  में - उत्तर मत दीजिये*
*दुःख में - निर्णय मत लीजिये*

मघसॅ डे ने उजववा करतां ते मघर साथे अडघो कलाक पसार करशो तो पण तेना जीवनमां उत्सव जेवुं वातावरण रहेशे.

मातृशकितने सलाम :
आजे '' मघॅस डे '' छे. कवि कहे छे: ' हे मानवी शीतळता मेळववाने माटे दोडादोड शानी करे छे ? साची शीतळता तो मानी गोदमां ज छे, जे हिमालयनी टोच पर पण नथी. '
गुजराती कवि बोटादकरे मातृवंदनानुं अदभूत काव्य '' जननीनी जोड सखी नहीं मळे रे लोल '' ललकायुॅ छे. तो मां ते मां बीजा बघा वगडाना वा जेवी देशी कहेवत पण ओछा शब्दोमां मानो महिमा समजावी जाय छे.
तो मात्र मानी खुशी अने आनंद माटे अने उसत्वोना घजागरा छोडीने साचा मनथी तेने भेटजो.. तेने ऐक वखत कहेजो के तमे तेने चाहो छो...तमारा जीवनमां तेनुं स्थान विशेष छे... पछी मने नथी लागतुं के, भेट सोगादो के केक लाववाना घतिंग करवानी जरुर पडे. मघसॅ डे ने उजववा करतां ते मघर साथे अडघो कलाक पसार करशो तो पण तेना जीवनमां उत्सव जेवुं वातावरण रहेशे. कारण के ऐकाद दिवसनी उजवणीथी आ अमूल्य ऋुण उतरे ऐवुं नथी. आ प्रसंगे कवि अनिल चावडानी रचना याद आवे छे...
'' दिकरा साथे रहेवा मा ह्रदयमां हषॅ राखे छे.
  दिकरो बिमार मा माटे अलगथी नसॅ राखे छे.
  सहेज अडतामां ज दु:खो सामटा थई  जाय छे गायब.
  मा हथेळीमां सतत जादुई ऐवो स्पशॅ राखे छे.

जो रुला के खुद भी रो पड़े वही "माँ" है।

रुलाना हर किसी को आता है,
हँसाना भी हर किसी को आता है,
रुला के जो मना ले वो "पापा"  है,
और जो रुला के खुद भी रो पड़े वही "माँ" है।



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आज लाखो रुपये
बेकार है
वो एक रुपये के सामने
जो MAA स्कूल जाते वक्त देती थी
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-माँ-
माँ एक ऐसा शब्द हैं,
जिसे सिर्फ़ बोलने से ही अपने हृदय में प्यार और ख़ुशी की लहर आ जाती हैं...





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"माँ" तू है, तो हम है...
"माँ" एक रिश्ता नहीं एक अहसास है,
भगवान मान लो या खुदा,
खुद वो माँ के रूप में हमारे आस पास है..
मारी वन्दनीय माँ अने मारा तमाम मित्रो ना माँ ने मारा प्रणाम..




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माँ है तो लोरी है
शगुन है
माँ है तो गीत है
उत्सव है
माँ है तो मंदिर है
मोक्ष है
माँ है तो मुमकिन है शहंशाह होना,
माँ के आँचल से बड़ा
दुनिया में कोई साम्राज्य नहीं




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I A S के साक्षात्कार में एक सवाल पूछा गया
यदि गर्दन नीची कर आपको खाने को कहा जाय
हर रोज अलग-अलग महिलाऐ बिना बोले आपको खाना परोसे..और ये पता लगाना हो कि आपकी मां ने किस दिन खाना परोसा तो...आपके पास क्या आधार है..?
" जिस दिन आधी रोटी मांगने पर भी,पूरी रोटी थाली में आ जाए तो समझ लूंगा
आज मां ने ही परोसा है ।"


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प्रेम से जो देती है वो बहन है,
लड़ झगड़ के जो देता है वो भाई है,
पूछ कर जो देता है वो पिता है,
बिना मांगे जो सब कुछ दे दे, वो माँ है।   

       

लाइन छोटी है पर मलतब बहुत बड़ा है.

लाइन छोटी है पर मलतब बहुत बड़ा है..
उम्र भर उठाया बोझ उस ''खीली'' ने..
और लोग तारीफ़ ''तस्वीर'' की करते रहे..



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❛"मतलब की बात
         सब समजते है,
     "सही बात का मतलब
        कोइ नहि समजता"




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कीसीकी तलाश मे मत नीकलो..
लोग खो नही - बदल जाते हे
छोटे थे तब सब नाम से बुलाते थे ,
बड़े हो गये तो बस काम से बुलाते हे..!!



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सब फ़साने हैं दुनियादारी के,
किस से किस का सुकून लूटा है;
सच तो ये है कि इस ज़माने में,
मैं भी झूठा हूँ तू भी झूठा है।



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(1)
“मतलब” का वजन बहुत ज्यादा होता है,
तभी तो “मतलब” निकलते ही रिश्ते हल्के हो जाते है.
                                   
(2)
जब कोई दिल दुखाये तो बेहतर है चुप रहना चाहिये...
.
क्योंकि...
.
जिंन्हें हम जवाब नहीं देते.. उन्हें वक़्त जवाब देता हैं...



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कितने झूठे हो गये है हम.......
बचपन में अपनों से
भी रोज रुठते थे, आज दुश्मनों से भी
मुस्करा के मिलते है.!!

                                  

     

माँ बिना इस सृष्टि की कल्पना अधूरी है

माँ संवेदना है, भावना है, अहसास है
माँ जीवन के फूलों में, खूशबू का वास है
माँ रोते हुए बच्चे का, खुशनुमा पालना है
माँ मरूस्थल में नदी या मीठा-सा झरना है
माँ लोरी है, गीत है, प्यारी-सी थाप है
माँ पूजा की थाली है, मंत्रो का जाप है
माँ आँखो का सिसकता हुआ किनारा है
माँ ममता की धारा है, गालों पर पप्पी है,
माँ बच्चों के लिए जादू की झप्पी है
माँ झुलसते दिनों में, कोयल की बोली है
माँ मेंहँदी है, कुंकम है, सिंदूर है, रोली है
माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है
माँ फूंक से ठंडा किया कलेवा है
माँ कलम है, दवात है, स्याही है
माँ परमात्मा की स्वयं एक गवाही है
माँ अनुष्ठान  है, साधना है, जीवन का हवन है
माँ जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है
माँ चूड़ीवाले हाथों के, मजबूत कंधो का नाम है
माँ काशी है, काबा है, और चारों धाम है||
माँ चिन्ता है, याद है, हिचकी है
माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है
माँ चूल्हा, धुँआ, रोटी और हाथों का छाला है
माँ जीवन की कड़वाहट में अमृत का प्याला है
माँ पृथ्वी है, जगत है, धूरी है
माँ बिना इस सृष्टि की कल्पना अधूरी है
माँ का महत्व दुनिया में कम हो नहीं सकता
माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता ।

महाकवि ओम व्यास ओम जी की इन अनमोल पंग्तियों के साथ

माँ तो माँ होती है! क्या मेरी, क्या तेरी?

माँ तो माँ होती है! क्या मेरी, क्या तेरी?
पति के घर में प्रवेश करते ही
पत्नी का गुस्सा फूट पड़ा :
"पूरे दिन कहाँ रहे? आफिस में पता किया, वहाँ भी नहीं पहुँचे! मामला क्या है?"
"वो-वो... मैं..."
पति की हकलाहट पर झल्लाते हुए पत्नी फिर बरसी, "बोलते नही? कहां चले गये थे। ये गंन्दा बक्सा और कपड़ों की पोटली किसकी उठा लाये?"
"वो मैं माँ को लाने गाँव चला गया था।"
पति थोड़ी हिम्मत करके बोला।
"क्या कहा? तुम्हारी मां को यहां ले आये? शर्म नहीं आई तुम्हें? तुम्हारे भाईयों के पास इन्हे क्या तकलीफ है?"
आग बबूला थी पत्नी!
उसने पास खड़ी फटी सफेद साड़ी से आँखें पोंछती बीमार वृद्धा की तरफ देखा तक नहीं।
"इन्हें मेरे भाईयों के पास नहीं छोड़ा जा सकता। तुम समझ क्यों नहीं रहीं।"
पति ने दबीजुबान से कहा।
"क्यों, यहाँ कोई कुबेर का खजाना रखा है? तुम्हारी सात हजार रूपल्ली की पगार में बच्चों की पढ़ाई और घर खर्च कैसे चला रही हूँ, मैं ही जानती हूँ!"
पत्नी का स्वर उतना ही तीव्र था।
"अब ये हमारे पास ही रहेगी।"
पति ने कठोरता अपनाई।
"मैं कहती हूँ, इन्हें इसी वक्त वापिस छोड़ कर आओ। वरना मैं इस घर में एक पल भी नहीं रहूंगी और इन महारानीजी को भी यहाँ आते जरा भी लाज नहीं आई?"
कह कर पत्नी ने बूढी औरत की तरफ देखा, तो पाँव तले से जमीन ही सरक गयी!
झेंपते हुए पत्नी बोली:
"मां, तुम?"
"हाँ बेटा! तुम्हारे भाई और भाभी ने मुझे घर से निकाल दिया। दामाद जी को फोन किया, तो ये मुझे यहां ले आये।"
बुढ़िया ने कहा, तो पत्नी ने गद्गद् नजरों से पति की तरफ देखा और मुस्कराते हुए बोली।
"आप भी बड़े वो हो, डार्लिंग! पहले क्यों नहीं बताया कि मेरी मां को लाने गये थे?"
इतना शेयर करो, कि हर औरत तक पहुंच जाये! मुझे आपके संस्कारों के बारे में पता है, पर ये आप उन तक जरूर पहूँचा सकते हैं, जिनको इस मानसिकता से उबरने की जरूरत है कि माँ तो माँ होती है! क्या मेरी, क्या तेरी?


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मासूमियत का इससे पवित्र
प्रमाण कहीं देखा है ????
एक बच्चे को
उसकी माँ मार रही थी
और बचाने के लिये बच्चा
माँ को ही पुकार रहा था...


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"गोल्ड" मे INVESTMENT करोगे तो
बेहतर PROFIT होगा,....
..."शेअर मार्केट" मे INVESTMENT करोगे तो
अच्छा PROFIT होगा,
...  "प्राँपर्टी में"INVESTMENT करोगे तो
अच्छे से अच्छा PROFIT होगा,
...लेकिन थोडा बहुत भी "माता-पिता की
सेवा" में INVESTMENT करोगे
तो कसम से ऐसा PROFIT होगा
की जीवन में कभी INVESTMENT
करने की जरुरत नहीं पड़ेगी । 





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माँ थी मोटुं कोई नथी,  कारण...