माँ बिना इस सृष्टि की कल्पना अधूरी है

माँ संवेदना है, भावना है, अहसास है
माँ जीवन के फूलों में, खूशबू का वास है
माँ रोते हुए बच्चे का, खुशनुमा पालना है
माँ मरूस्थल में नदी या मीठा-सा झरना है
माँ लोरी है, गीत है, प्यारी-सी थाप है
माँ पूजा की थाली है, मंत्रो का जाप है
माँ आँखो का सिसकता हुआ किनारा है
माँ ममता की धारा है, गालों पर पप्पी है,
माँ बच्चों के लिए जादू की झप्पी है
माँ झुलसते दिनों में, कोयल की बोली है
माँ मेंहँदी है, कुंकम है, सिंदूर है, रोली है
माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है
माँ फूंक से ठंडा किया कलेवा है
माँ कलम है, दवात है, स्याही है
माँ परमात्मा की स्वयं एक गवाही है
माँ अनुष्ठान  है, साधना है, जीवन का हवन है
माँ जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है
माँ चूड़ीवाले हाथों के, मजबूत कंधो का नाम है
माँ काशी है, काबा है, और चारों धाम है||
माँ चिन्ता है, याद है, हिचकी है
माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है
माँ चूल्हा, धुँआ, रोटी और हाथों का छाला है
माँ जीवन की कड़वाहट में अमृत का प्याला है
माँ पृथ्वी है, जगत है, धूरी है
माँ बिना इस सृष्टि की कल्पना अधूरी है
माँ का महत्व दुनिया में कम हो नहीं सकता
माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता ।

महाकवि ओम व्यास ओम जी की इन अनमोल पंग्तियों के साथ

माँ तो माँ होती है! क्या मेरी, क्या तेरी?

माँ तो माँ होती है! क्या मेरी, क्या तेरी?
पति के घर में प्रवेश करते ही
पत्नी का गुस्सा फूट पड़ा :
"पूरे दिन कहाँ रहे? आफिस में पता किया, वहाँ भी नहीं पहुँचे! मामला क्या है?"
"वो-वो... मैं..."
पति की हकलाहट पर झल्लाते हुए पत्नी फिर बरसी, "बोलते नही? कहां चले गये थे। ये गंन्दा बक्सा और कपड़ों की पोटली किसकी उठा लाये?"
"वो मैं माँ को लाने गाँव चला गया था।"
पति थोड़ी हिम्मत करके बोला।
"क्या कहा? तुम्हारी मां को यहां ले आये? शर्म नहीं आई तुम्हें? तुम्हारे भाईयों के पास इन्हे क्या तकलीफ है?"
आग बबूला थी पत्नी!
उसने पास खड़ी फटी सफेद साड़ी से आँखें पोंछती बीमार वृद्धा की तरफ देखा तक नहीं।
"इन्हें मेरे भाईयों के पास नहीं छोड़ा जा सकता। तुम समझ क्यों नहीं रहीं।"
पति ने दबीजुबान से कहा।
"क्यों, यहाँ कोई कुबेर का खजाना रखा है? तुम्हारी सात हजार रूपल्ली की पगार में बच्चों की पढ़ाई और घर खर्च कैसे चला रही हूँ, मैं ही जानती हूँ!"
पत्नी का स्वर उतना ही तीव्र था।
"अब ये हमारे पास ही रहेगी।"
पति ने कठोरता अपनाई।
"मैं कहती हूँ, इन्हें इसी वक्त वापिस छोड़ कर आओ। वरना मैं इस घर में एक पल भी नहीं रहूंगी और इन महारानीजी को भी यहाँ आते जरा भी लाज नहीं आई?"
कह कर पत्नी ने बूढी औरत की तरफ देखा, तो पाँव तले से जमीन ही सरक गयी!
झेंपते हुए पत्नी बोली:
"मां, तुम?"
"हाँ बेटा! तुम्हारे भाई और भाभी ने मुझे घर से निकाल दिया। दामाद जी को फोन किया, तो ये मुझे यहां ले आये।"
बुढ़िया ने कहा, तो पत्नी ने गद्गद् नजरों से पति की तरफ देखा और मुस्कराते हुए बोली।
"आप भी बड़े वो हो, डार्लिंग! पहले क्यों नहीं बताया कि मेरी मां को लाने गये थे?"
इतना शेयर करो, कि हर औरत तक पहुंच जाये! मुझे आपके संस्कारों के बारे में पता है, पर ये आप उन तक जरूर पहूँचा सकते हैं, जिनको इस मानसिकता से उबरने की जरूरत है कि माँ तो माँ होती है! क्या मेरी, क्या तेरी?


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मासूमियत का इससे पवित्र
प्रमाण कहीं देखा है ????
एक बच्चे को
उसकी माँ मार रही थी
और बचाने के लिये बच्चा
माँ को ही पुकार रहा था...


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"गोल्ड" मे INVESTMENT करोगे तो
बेहतर PROFIT होगा,....
..."शेअर मार्केट" मे INVESTMENT करोगे तो
अच्छा PROFIT होगा,
...  "प्राँपर्टी में"INVESTMENT करोगे तो
अच्छे से अच्छा PROFIT होगा,
...लेकिन थोडा बहुत भी "माता-पिता की
सेवा" में INVESTMENT करोगे
तो कसम से ऐसा PROFIT होगा
की जीवन में कभी INVESTMENT
करने की जरुरत नहीं पड़ेगी । 





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माँ थी मोटुं कोई नथी,  कारण... 

जब तक आप अपने काम से महोब्बत नही करोगे तब तक...

जब तक आप अपने काम से महोब्बत नही करोगे
तब तक आपको उस काम मे सफलता प्राप्त नही होगी.
फिर चाहे वो बिजनेस हो, कला हो, जोब हो, 
कूछ भी हो.  क्योकी लोग कहेते है की महोब्बत मे पागलपन,
जोश, ओर जूनून होता है.
ओर मै कहैता हू कि सफल होनेके लीऐे ये तिनो झरूरी है




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"चलते रहे कदम दोस्तों,
              किनारा जरुर मिलेगा !!
अन्धकार से लड़ते रहो,
              सवेरा जरुर खिलेगा !!
जब ठान लिया मंजिल पर जाना,
              रास्ता जरुर मिलेगा !!
ए राही न थक, चल...
              एक दिन समय जरुर फिरेगा !!



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प्रशंसा से "पिघलना" मत
आलोचना से "उबलना" मत
निःस्वार्थ भाव से कर्म हो
क्योंकि -
         इस 'धरा' का
         इस 'धरा'  पर
         सब 'धरा' रह जाएगा ।



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बिना प्रयास के सिर्फ आप नीचे गिर सकते है,
ऊपर नहीं उठ सकते।
यही गुरुत्वाकर्षण का भी नियम है,
और जीवन का भी।




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सोच मत, साकार कर,
अपने कर्मो से प्यार कर !
          मिलेगा तेरी मेहनत का फल,
किसी ओर का ना इंतज़ार कर !!
           जो चले थे अकेले उनके पीछे आज मेले है
            जो करते रहे इंतज़ार उनकी
जिंदगी में आज भी झमेले है ।


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श्रेष्ठता जन्म से आती नही,
गुणों के कारण निर्माण होती है..
-दूध- -दही- -घी-
'सब एकही कुल के होते हुए भी..'
"सब के मूल्य अलग अलग होते है.."
          !! संगठन मे शक्ति !!



         
  


शाला मां दिवाल पर लखी शकाय तेवा सुविचार - थेंक्स - मनसुखभाइ.

सवाल था कि आदमी मेहनत से आगे बढ़ता है या भाग्य से?


एक पान वाला था। जब भी पान खाने जाओ ऐसा लगता कि वह हमारा ही रास्ता देख रहा हो। हर विषय पर बात करने में उसे बड़ा मज़ा आता। कई बार उसे कहा की भाई देर हो जाती है जल्दी पान लगा दिया करो पर उसकी बात ख़त्म ही नही होती।
एक दिन अचानक कर्म और भाग्य पर बात शुरू हो गई।
तक़दीर और तदबीर की बात सुन मैनें सोचा कि चलो आज उसकी फ़िलासफ़ी देख ही लेते हैं। मैंने एक सवाल उछाल दिया।
मेरा सवाल था कि आदमी मेहनत से आगे बढ़ता है या भाग्य से?
और उसके जवाब से मेरे दिमाग़ के सारे जाले ही साफ़ हो गए।
कहने लगा,आपका किसी बैंक में लाकर तो होगा?
उसकी चाभियाँ ही इस सवाल का जवाब है। हर लाकर की दो चाभियाँ होती हैं।
एक आप के पास होती है और एक मैनेजर के पास।
आप के पास जो चाभी है वह है परिश्रम और मैनेजर के पास वाली भाग्य।
जब तक दोनों नहीं लगतीं ताला नही खुल सकता।
आप कर्मयोगी पुरुष हैं ओर मैनेजर भगवान।
अाप को अपनी चाभी भी लगाते रहना चाहिये।पता नहीं ऊपर वाला कब अपनी चाभी लगा दे।  कहीं ऐसा न हो की भगवान अपनी भाग्यवाली चाभी लगा रहा हो और हम परिश्रम वाली चाभी न लगा पायें और ताला खुलने से रह जाये ।

मैं वाट्सएप करूँ भगवान को... और उसमें 'ब्लू टीक' हो जाए...!!!

एक बार सत्यनारायण कथा की आरती मेरे सामने आने पर मैंने छाँट कर जेब में से कटा फटा पाँच रू का नोट कोई देखे नहीं , ऐसा डाला । वहाँ अत्यधिक ठसाठस भीड़ थी । मेरे कंधे पर ठीक पीछे वाले सज्जन ने थपकी मार कर मेरी ओर ५०० रू का नोट बढ़ाया ।मैंने उनसे नोट ले कर आरती में डाल दिया । अपने मात्र ५ रू डालने पर थोड़ी लज्जा भी आई ।
















बाहर निकलते समय मैंने उन सज्जन को श्रद्धा पूर्वक नमस्कार किया तब उन्होंने बताया कि ५ रू का नोट निकालते समय ५०० का नोट मेरी ही जेब से गिरा था, जो वे मुझे दे रहे थे ।






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काश..
मेरी भी कुछ मुरादें युँ पूरी हो जाए..
"मैं वाट्सएप करूँ भगवान को...
और उसमें 'ब्लू टीक' हो जाए...!!!

" अपेक्षा और उपेक्षा " ये दो ऐसी घातक भावनाएं हैं, जो मजबूत से मजबूत सम्बंधों की जडें हिलाकर रख देती हैं!!!!!

" अपेक्षा और उपेक्षा "
ये दो ऐसी घातक भावनाएं हैं,
जो मजबूत से मजबूत सम्बंधों की
जडें हिलाकर रख देती हैं!!!!!   


           

अपेक्षा और उपेक्षा में
एक बारीक फर्क है
एक देती दर्द है
दूसरी सुखद क्षण है
यदि तुम करते हो
खुद से यह दोनों
दूजें समझे तुमको बौना
कर्म करो सही दिशा में
दशायें तो क्षणभंगुर हैं
बदलते मौसम का ज्वर हैं
जिसके फेर में जीते दुर्बल हैं
जो है ही नहीं सांसों में
उस सन्निपात का नाम
कायरों ने रखा डर है
इसे मार भगाओ मन से
भीतर घात से बाहर आओ
पर कुतरे आसमानों ने
शुरूआतें ऐसे ही होती यारों ।।                      
  

संसार को जब भी हम अपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं तो संग पैदा होता है। जैसे ही उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं तो संग की भावना समाप्त हो जाती है। आसक्ति हटती है, अटैचमेंट टूटता है। इसलिए मैं कहता हूँ कि कभी भी किसी की तरफ अपेक्षा की दृष्टि से मत देखना, बल्कि उपेक्षा की दृष्टि से देखना।

कोई भी चीज जो मोह रही हो, उससे अटैच मत होईये। रास्ते में चलते हुए आपको अगर बाजार में कोई चीज दिखे, बिकने को तैयार खड़ी गाड़ी दिखे, ज्वैलरी शाप में सजे हुये जेवर दिखें, या किसी दुकान में सुन्दर वस्त्रों पर आपने नजर डाली। अगर वहाँ आपकी उपेक्षा वाली दृष्टि है तो आपका ध्यान सिर्फ देखने में हुआ और आगे चल पड़े। आपका मन उन चीज़ों से जुड़ा नहीं। लेकिन, यदि अपेक्षा की दृष्टि से देखा और सोचा कि अच्छा! इतनी अच्छी चीज यहाँ मिलती है! मंहगी होगी! हो सकता है ठीक दाम से भी मिल जाये! आपने सोचा, सत्संग में जायेंगे, उसके बाद वापिस आते हुए एक बार तो जरूर दुकान में बात करके जायेंगे। जब सत्संग में आकर के बैठे तो ध्यान उसी साड़ी पर, जेवर पर, वस्त्र पर या कार पर होगा।

अपेक्षा से देखा न आपने, तो कहीं भी जाओ! कहीं भी बैठो! ध्यान बार-बार उसी पर रहेगा। जरा एक बार देख तो लूँ। इतनी अच्छी गाड़ी, इतना अच्छा माडल अगर मेरे पास हो तो कितना अच्छा हो। अब यहाँ उस वस्तु से आपका संग जुड़ गया। रास्ते में चलते हुए अगर आप कहीं कूड़ा कचरा देखते हैं तो उसे आप कभी अपेक्षा की दृष्टि से नहीं देखते, वरन् उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं। इसलिए कभी वह गन्दगी आपके मन में याद नहीं रहती। याद वही चीज रहेगी, जिससे आपको आसक्ति हो गई। वह भी चीज़ या बात याद रहती है, जिसके बारे में आपके भीतर घृणा जाग गई हो।

ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जिससे घृणा है, जिससे बैर है वो भी हर समय याद आयेगा और जिसके प्रति आपकी बड़ी आसक्ति है, वह चीज़ भी आपको हर समय याद आएगी। उठते-बैठते, चलते-फिरते हर समय आप उसे याद करेंगे। यदि आप अपनी दृष्टि को सम्यक् बना लेंगे और "ना काहू से दोस्ती न काहू से बैर" की नीति को अंगीकार कर लेंगे तो फिर कोई याद आने वाला नहीं। ऐसा करके बहुत सारी मानसिक चिंताओ एवं विकृतियों से आप मुक्त हो जाएँगे। इसलिए, आप ऐसा ही करना।