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*दोनों तरफ़ से निभाया जाये, वही रिश्ता कामयाब होता है, एक तरफ़ से सेंक कर तो रोटी भी नहीं बनती..!*

सुपर सुविचार


*दोनों तरफ़ से निभाया जाये, वही रिश्ता कामयाब होता है*

*एक तरफ़ से सेंक कर तो रोटी भी नहीं बनती..!*



*मन के जिस दरवाजे से "शक" अंदर प्रवेश करता है,* 

*"प्यार" और "विश्वास"*
*उसी दरवाजे से बाहर निकल जाते हैं..*

सुपर सुविचार


एक घर मे *पांच दिए* जल रहे थे।


एक दिन पहले एक दिए ने कहा -


इतना जलकर भी *मेरी रोशनी की* लोगो को *कोई कदर* नही है...


तो बेहतर यही होगा कि मैं बुझ जाऊं।


वह दिया खुद को व्यर्थ समझ कर बुझ गया । 


जानते है वह दिया कौन था ?


वह दिया था *उत्साह* का प्रतीक ।


यह देख दूसरा दिया जो *शांति* का प्रतीक था, कहने लगा -


मुझे भी बुझ जाना चाहिए।


निरंतर *शांति की रोशनी* देने के बावजूद भी *लोग हिंसा कर* रहे है।


और *शांति* का दिया बुझ गया । 


*उत्साह* और *शांति* के दिये के बुझने के बाद, जो तीसरा दिया *हिम्मत* का था, वह भी अपनी हिम्मत खो बैठा और बुझ गया।


*उत्साह*, *शांति* और अब *हिम्मत* के न रहने पर चौथे दिए ने बुझना ही उचित समझा।


*चौथा* दिया *समृद्धि* का प्रतीक था।


सभी दिए बुझने के बाद केवल *पांचवां दिया* *अकेला ही जल* रहा था।


हालांकि पांचवां दिया सबसे छोटा था मगर फिर भी वह *निरंतर जल रहा* था।


तब उस घर मे एक *लड़के* ने प्रवेश किया।


उसने देखा कि उस घर मे सिर्फ *एक ही दिया* जल रहा है।


वह खुशी से झूम उठा।


चार दिए बुझने की वजह से वह दुखी नही हुआ बल्कि खुश हुआ।


यह सोचकर कि *कम से कम* एक दिया तो जल रहा है।


उसने तुरंत *पांचवां दिया उठाया* और बाकी के चार दिए *फिर से* जला दिए ।


जानते है वह *पांचवां अनोखा दिया* कौन सा था ?


वह था *उम्मीद* का दिया...


इसलिए *अपने घर में* अपने *मन में* हमेशा उम्मीद का दिया जलाए रखिये ।


चाहे *सब दिए बुझ जाए* लेकिन *उम्मीद का दिया* नही बुझना चाहिए ।


ये एक ही दिया *काफी* है बाकी *सब दियों* को जलाने के लिए ....




*अफसोस इस बात का नही कि*
*“धर्म” का धंधा हो रहा है,*

*अफसोस तो इस बात का है कि*
*पढ़ा लिखा भी अंधा हो रहा है....!!!*

दोस्त, किताब, रास्ता और सोच गलत हों तो गुमराह कर देते हैं, और सही हो तो जीवन बना देतें हैं..!!





*कृपया इस दीवाली पर दीपक में तेल डालकर तेल बर्बाद ना करें.....*

*वो तेल किसी गरीब को दे दें जिससे वो भी पूरी बना के दीवाली मना सके......*

*इस मेसेज को पढ़कर मैं बहुत भावुक हो गया हूँ और इससे inspire होकर मैंने decide किया है कि इस बार पांच दीपक कम जलाऊंगा,*,

*और उस तेल को लट्ठ पे लगा के रखूंगा और इस तरह के मैसेज करने वालों को इसी लट्ठ से हैप्पी दीवाली बोलूंगा,,*



*कृपया इस दीवाली पर दीपक में तेल डालकर तेल बर्बाद ना करें.....*

*वो तेल किसी गरीब को दे दें जिससे वो भी पूरी बना के दीवाली मना सके......*

*इस मेसेज को पढ़कर मैं बहुत भावुक हो गया हूँ और इससे inspire होकर मैंने decide किया है कि इस बार पांच दीपक कम जलाऊंगा,*,

*और उस तेल को लट्ठ पे लगा के रखूंगा और इस तरह के मैसेज करने वालों को इसी लट्ठ से हैप्पी दीवाली बोलूंगा,,*



"दोस्त" "किताब" "रास्ता" और "सोच"....*

दोस्त, किताब, रास्ता और सोच गलत हों तो गुमराह कर देते हैं, और सही हो तो जीवन बना देतें हैं..!!*



*बहुत प्यारा सन्देश*

कभी आपका बस की सबसे पीछे वाली सीट पर बैठने का मौका लगा है l यदि नही ; तो कभी गौर करना  l और हा ; तो आपने महसूस किया होगा कि  पीछे की सीट पर धक्के ज्यादा महसूस होते है l चालक तो सबके लिए एक ही है l बस की गति भी समान है l फिर ऐसा क्यों ? साहब जिस बस में आप सफर कर रहे है उसके चालक से आपकी दूरी जितनी ज्यादा होगी - आपकी यात्रा में धक्के भी उतने ही ज्यादा होंगे l

 आपकी जीवन यात्रा के सफर में भी जीवन की गाड़ी के चालक *परमपिता* से आपकी दूरी जितनी ज्यादा होगी आपको ज़िन्दगी में *धक्के* उतने ही ज्यादा खाने पड़ेंगे l अपनी रोज़ की दिनचर्या में यथासंभव कुछ समय अपने *आराध्य* के समीप बैठो और उनसे अपने मन की बात एकदम साफ शब्दों में कहो l आप स्वयं एक अप्रत्याशित चमत्कार महसूस करेंगे।

गुस्सा क्या है? दूसरे की गलती की सजा खुद को देना !!*

सुपर सुविचार



*प्रयत्न करने से कभी न चूकें..!*

           *हिम्मत नहीं तो प्रतिष्ठा नहीं,*

           *विरोधी नहीं तो प्रगति नहीं..!!*

 *जो पानी में भीगेगा*

*वो सिर्फ लिबास बदल सकता है*

*लेकिन जो पसीने में भीगता है वो*

*इतिहास बदल सकता है.*

 




*किसी ने एक नाराज शख्स से पूछा की गुस्सा क्या है*,

*उसने बहुत खुबसूरत जवाब दिया की दूसरे की गलती की सजा खुद को देना !!*





*उदास होने के लिए उम्र पड़ी है,*

 *नज़र उठाओ सामने ज़िंदगी खड़ी है*




      *बहुत सुन्दर पंक्ति* 

        *जो मुस्कुरा  रहा है,* 

       *उसे  दर्द  ने  पाला  होगा..,*

           *जो  चल  रहा  है,* 

  *उसके  पाँव  में  छाला  होगा.,*

        *बिना संघर्ष के इन्सान*

     *चमक नहीं सकता,  यारों.,*

     *जो जलेगा उसी दिये में तो,* 

            *उजाला होगा...।*




  


           



*ज़िंदगी तो सभी के लिए* 

    *एक रंगीन किताब है ..!*

            *फर्क बस इतना है कि,*

            *कोई हर पन्ने को दिल से*

           *पढ़ रहा है; और*

            *कोई दिल रखने के लिए*

            *पन्ने पलट रहा है।*

    *हर पल में प्यार है*

    *हर लम्हे में ख़ुशी है ..!*

           *खो दो तो यादें हैं,* 

           *जी लो तो ज़िंदगी है* ..!!





विज्ञान हमें कहां से कहां ले आया

*विज्ञान हमें कहां से कहां ले आया*

*पहले :-* वो कुँए का मैला कुचला पानी पीकर भी 100 वर्ष जी लेते थे
*अब :-* RO का शुद्ध पानी पीकर 40 वर्ष में बुढ़े हो रहे हैं

*पहले :-* वो घानी का मैला सा तेल खाके बुढ़ापे में भी मेहनत कर लेते थे।
*अब :-* हम डबल-ट्रिपल फ़िल्टर तेल खा कर जवानी में भी हाँफ जाते हैं

*पहले :-* वो डले वाला नमक खाके बीमार ना पड़ते थे।
*अब :-* हम आयोडीन युक्त खाके हाई-लो बीपी लिये पड़े हैं

*पहले :-* वो नीम-बबूल कोयला नमक से दाँत चमकाते थे और 80 वर्ष तक भी चबा चबा के खाते थे
*अब :-* कॉलगेट सुरक्षा वाले रोज डेंटिस्ट के चक्कर लगाते हैं

*पहले :-* वो नाड़ी पकड़ कर रोग बता देते थे
*अब :-* आज जाँचे कराने पर भी रोग नहीं जान पाते हैं

*पहले :-* वो 7-8 बच्चे जन्मने वाली माँ 80 वर्ष की अवस्था में भी खेत का काम करती थी।
*अब :-* पहले महीने से डॉक्टर की देख-रेख में रहते हैं | फिर भी बच्चे पेट फाड़ कर जन्मते हैं

*पहले :-* काले गुड़ की मिठाइयां ठोक-ठोक के खा जाते थे
*अब :-* खाने से पहले ही शुगर की बीमारी हो जाती है

*पहले :-* बुजुर्गों के भी घुटने नहीं दुखते थे
*अब :-* जवान भी घुटनों और कमर के दर्द से कहराता है

*समझ नहीं आता ये विज्ञान का युग है या अज्ञान का*?

सोचने लायक बात- बच्चे हमारी कहाँ  सुनते है वो केवल हमारी नकल करते हैं..."

*सोचने लायक बात*

मैं मैट्रो मे सफर कर रहा था। एक औरत किताब पढ़ रही थी सामने बैठा उसका छोटा बच्चा भी किताब पढ़ रहा था तभी मेरे बाजू में खडे एक सज्जन ने महिला से पूछा "आपने स्मार्ट्फ़ोन की जगह बच्चे के हाथ में किताब कैसे दे दी, जबकि आजकल बच्चों को हर समय स्मार्ट्फ़ोन मोबाइल चाहिए।"  उस औरत का जवाब सुनकर मैं थोड़ी देर सोच में पड़ गया. उसका जवाब था...."बच्चे हमारी कहाँ  सुनते है वो केवल हमारी नकल करते हैं..."

                        *— अज्ञात*



*स्त्री के जीवनचक्र का बिम्ब है*
*नवदुर्गा के नौ स्वरूप...*

1. जन्म ग्रहण करती हुई कन्या *"शैलपुत्री"* स्वरूप है।

2. कौमार्य अवस्था तक *"ब्रह्मचारिणी"* का रूप है।

3. विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से वह *"चंद्रघंटा"* समान है।

4. नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह *"कूष्मांडा"* स्वरूप है।

5. संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री *"स्कन्दमाता"* हो जाती है।

6. संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री *"कात्यायनी"* रूप है।

7. अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से वह *"कालरात्रि"* है।

8. संसार (कुटुंब ही उसके लिए संसार है) का उपकार करने से *"महागौरी"* है।

9. धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार में अपनी संतान को सिद्धि(समस्त सुख-संपदा) का आशीर्वाद देने वाली *"सिद्धिदात्री"* हो जाती है।



जब तुम विचित्र ओर पेचीदे मार्गो से उन तत्वों की खोज करोगे जो तुम्हे ईश्वर तक पहुंचा सके, तो तुम तत्व को दूर ही पाओगे। 
प्रत्येक नई सड़क पर तत्व दूर होता जाएगा। विद्या और बुद्धिमता की जितनी अधिक खोज करोगे तत्व को दूर ही पाओगे। कई गुरुओ, किताबो ओर विद्यालयो के विचार तुम्हारे भीतर के विचारों को भी उल्ट पुलट कर देंगे।  

*निस्तब्धता की दशा में अपने भीतर ध्यान करो तुम्हें अंतर्दृष्टि से वो सब कुछ मिल जाएगा जिस की तुम्हें तलाश है। तुम्हारा अपना आत्मा ही सब को व्याप्त कर लेगा।*



*ज्ञान के बाद यदि अहंकार का जन्म होता है* 

*तो वो ज्ञान जहर है*

*और*

*ज्ञान के बाद नम्रता का जन्म होता है*

*तो यही ज्ञान अमृत होता है..*


सुंदर सुविचार



भारत माता की जय........
            दूसरों से नफरत करके हम कभी कुछ नहीं जीतते और दूसरों को स्नेह देकर हम कभी कुछ नहीं हारते आज से हम सबको स्नेह देने वाली शीतला देवी बनें........

मन में से अहंकार निकल जाए तो.. जीवन जीने में मज़ा आ जाता है..

 *रिश्तों की रस्सी कमजोर तब* 

          *हो जाती है ,.....*

    *जब  इंसान  गलत  फहमी में* 

          *पैदा होने वाले......*

    *सवालों  के  जबाब  भी खुद*

          *ही बना लेता है.....!*

    *हर   इंसान   दिल   का  बुरा*

          *नहीं होता ......  ,*

    *बुझ जाता है चिराग अक्सर* 

          *तेल की कमी के कारण...,* 

    *हर बार  कसूर हवा का नहीं* 

          *होता.......!!*

        *Have a nice day*

   

सुपर सुविचार


"किसी बात को  सिर्फ इसलिए मत मानो कि ऐसा सदियों से होता आया है, परम्परा है, या सुनने मे आई है । इसलिए मत मानो कि किसी धर्म शास्त्र, ग्रंथ में लिखा हुआ है या ज्यादातर लोग मानते है । किसी धर्मगुरु, आचार्य, साधु-संत, ज्योतिषी की बात को आंख मूंद कर मत मान लेना । किसी बात को सिर्फ इसलिए भी मत मान लेना कि वह तुमसे कोई बड़ा या आदरणीय व्यक्ति कह रहा है बल्कि *हर बात को पहले बुद्धी, तर्क, विवेक, चिंतन व अनुभूति की कसौटी पर तोलना, कसना, परखना, ओर यदि वह बात स्वयं के लिए, समाज व सम्पूर्ण मानव जगत के कल्याण के हित लगे, तो ही मानना ।"*                                          


"अपने दीपक स्वयं बनो"


सुपर सुविचार




   *पैर में से काँटा निकल जाए तो*

       *चलने में मज़ा आ जाता है,*

*और मन में से अहंकार निकल जाए तो..*

     *जीवन जीने में मज़ा आ जाता है..*

     *चलने वाले पैरों में कितना फर्क है ,*

         *एक आगे है तो एक पीछे  ।*

    *पर ना तो आगे वाले को अभिमान है*

      *और ना पीछे वाले को अपमान ।*

           *क्योंकि उन्हें पता होता है*

      *कि पलभर में ये बदलने वाला है ।*

       *" इसी को  जिन्दगी  कहते है "?* 

       *"खुश रहिये मुस्कुराते  रहिये*  



*"चर्चा और आरोप*
*ये दो चीजें * 
*सिर्फ सफल व्यक्ति  के भाग्य  में ही होती है..!!"*


यह सामान्य नियम है कि दूसरों की निंदा नहीं करनी चाहिए और अपनी प्रशंसा स्वयं नहीं करनी चाहिए।*
*यह ठीक है।*
*परंतु कहीं-कहीं इसके अपवाद भी होते हैं ।*

जब किसी का दोष दूर करना हो , उसे अपराधों से दुखों से बचाना हो , तो ऐसी स्थिति में उसके दोष बताए जा सकते हैं । जैसे माता पिता बच्चों को तथा अध्यापक विद्यार्थियों को उनके दोष बताते हैं....यहां उद्देश्य उनका कल्याण करना है , उन्हें दुखी या अपमानित करना नहीं है ।*

इसी प्रकार से जब दूसरे लोग आप के विषय में नहीं जानते और आपको अपना परिचय स्वयं देना पड़ जाए,  तो ऐसी परिस्थिति में आप अपने गुण स्वयं भी बता सकते हैं , तब उसमें दोष नहीं माना जाएगा।

जैसे सभी डॉक्टर लोग अपने क्लीनिक पर अपनी सारी डिग्रियां स्वयं लिखते हैं । बड़े-बड़े विद्वान तथा  अधिकारी अपने विजिटिंग कार्ड पर अपनी सारी योग्यताएं स्वयं लिखते हैं।

तो इस प्रकार से परिचय देने की दृष्टि से यदि अपने गुण बताए जाएं , तो इसमें दोष नहीं है ।*
*ईश्वर ने भी वेदों में अपना परिचय देने के लिए बहुत सारे गुण स्वयं बताए हैं।*

ईमानदारी से कमाई करने वालों के शौक भले ही पूरे न हो...पर नींद जरूर पूरी होती हैं...!*

इस तस्वीर मे सारी प्लेट उल्टी है।।।
लेकिन चंद एक प्लेट सीधी।।।
जैसे ही आप को सीधी प्लेट नज़र आयेगी वैसे ही सब की सब प्लेट सीधी होजायगी ।।।।
जिन्दगी मे भी इसी तरहा होता है।।।
जब हमारी सोंच अछि हो तो हर चीज़ अछि लगने लगती है।।।।





*ना थके कभी पैर,* 

*ना कभी हिम्मत हारी है,* 

*जज्बा है परिवर्तन का ज़िंदगी में इसलिये सफर जारी है|*


*"मन" सभी के पास होता है.. मगर "मनोबल" कुछ लोगों के पास ही होता है..*






*अंदाज कुछ अलग हैं,*
        *मेरे सोचने का.!!!*

*सबको मंजिल का शोक हैं.!!*
     *और मुझे सही रास्तों का.!!!*
 *लोग कहते हैं, पैसा रखो, बुरे वक्त में काम आयेगा...*
*हम कहते है अच्छे लोगों के साथ रहो, बुरा वक्त ही नहीं आयेगा.*
  







गजानन मह वन्दे गजकंथड़ रुपिनम ।
विघ्नहरणम सदा नौभी ऋद्धि सिद्धि प्रदायकम ।।
नमस्ते सृष्टि रूपाय,नाद रूपाय ते नमः ।
भक्त प्रियाय देवाय ,नमस्तुभ्य विनायकं ।।
 
    
"तन की खूबसूरती एक भ्रम  है..!*
*सबसे खूबसूरत आपकी "वाणी" है..!*
       *चाहे तो दिल "जीत" ले..!*
        *चाहे तो दिल "चीर" दे"!!*
*इन्सान सब कुछ कॉपी कर सकता है..!*
  *लेकिन किस्मत और नसीब नही..!*
        *"श्रेय मिले न मिले,*
  *अपना श्रेष्ठ देना कभी बंद न करें*
     

सुपर सुविचार


*ईमानदारी से कमाई करने वालों के शौक भले ही पूरे न हो...*

*पर नींद जरूर पूरी होती हैं...!*


 किसी से बदला लेना बहुत आसान है मगर किसी का बदला चुकाना बहुत ही मुश्किल। उन्हें भुलाना अच्छी बात नहीं जो विपत्ति में आपका साथ दिया करते हैं। पैसों पर ज्यादा घमंड मत करना उनसे सिर्फ बिल चुकाया जा सकता है बदला नहीं।
      सब कुछ होने पर भी यदि आपको संतोष नहीं है तो फिर आपको अभाव सतायेगा और सब कुछ मिलने पर भी यदि आप चुप नहीं रह सकते तो फिर आपको स्वभाव सतायेगा। यदि फिर आपके मन में अपने पास बहुत कुछ होने का अहम आ गया तो सच मानो फिर आपको आपका ये कुभाव सतायेगा।
       दौलतवान न बन सको तो कोई बात नहीं, दिलवान और दयावान बन जाओ, आनंद ही आनंद चारों तरफ हो जायेगा। जिन्दगी बदलने के लिए लड़ना पड़ता है।
और आसान करने के लिए समझना पड़ता है।

छोटा बनके रहोगे तो मिलेगी हर रहमत प्यारों 
बड़ा होने पर तो माँ भी गोद से उतार देती है

दुनिया उन्ही की खैरियत पूछती है, जो पहले से खुश हो

*दुनिया उन्ही की खैरियत पूछती है, जो पहले से खुश हो,*

*जो तकलीफ में हैं, उन्के तो मोबाईल नंबर तक खो जाते हैं..*


मनुष्य को हमेशा मौका नही ढूंढना चाहिये,
क्योंकि जो आज है वही सबसे अच्छा मौका है।



प्रेम एक ऐसा अनुभव है जो मनुष्य को कभी हारने नही देता,
और घृणा एक ऐसा अनुभव है जो इंसान को कभी जीतने नही देता।



मनुष्य को हमेशा यह नही सोचना चाहिए की वो अपने जीवन में कितना खुश है,
बल्कि यह सोचना चाहिये की उस मनुष्य की वजह से दूसरे कितने खुश हैं।



जब तक हम किसी भी काम को करने की कोशिश नही करते हैं, जब तक हमे वो काम नामुमकिन ही लगता है।



मनुष्य को अपने लक्ष्य में कामयाब होने के लिए
खुद पर विश्वास होना बहुत ज़रूरी है।


*इन्सान को कभी अपने वक़्त*  

*पर घमन्ड नही करना चाहिए*

*क्योंकि*

*वक़्त तो उन नोटों का भी*         

*नहीं हुआ* 

*जो कभी पूरा बाजार खरीदने*   

*की ताकत रखते थे*

मेरी निंदा से यदि किसी को संतोष होता है , तो....

*जिदंगी का खुबसूरत*
*लम्हा कौन सा होता है??*
       
*Fantastic Answer :*

*जब आपका परिवार आपको*
*दोस्त समझने लगे*
*और*
*आपका दोस्त आपको*
*"अपना परिवार"*








*परीक्षा हमेशा अकेले में होती हैं..*
*लेकिन उसका परिणाम सबके सामने होता है।*
*इसलिए कोई भी कर्म करने से पहले*
*परिणाम पर जरूर विचार करें ....*





आँखों से अंधा होना यह तो भाग्य की बात है मगर विवेक से अंधा होना यह दुर्भाग्य की बात है ।*

आंख के अंधे को जगत नजर नहीं आता मगर विवेक के अंधे को तीनों लोकों के नाथ नजर नहीं आते ।*

आँख से अंधा होना दयनीय है मगर विवेक से अंधा होना सोचनीय है।*

आँख ना हो तो केवल एक जन्म ख़राब होता है लेकिन विवेक के अभाव में तो जन्म-जन्मान्तर तक प्रभावित होते है ।

*पैसा लोगों की*
*हैसियत*
*बदल सकता है*
*औकात*
*नही..!!!*

  

आप अगर खुश रहना जानते हैं और लोगों से हंस कर मिलने की आदत रखते हैं, तो यह आपके व्यक्तित्व का बहुत बड़ा गुण है. इसकी बदौलत आप जीवन के हर छेत्र में लोगों के पसंदीदा हो सकते हैं....अगर आपमें यह गुण नहीं है, तो आप बेशक नापसंद किए जा सकते हैं ।

हर आदमी चाहता है कि एक खुश व्यक्ति के साथ अपना वक्त बिताए, उससे बतियाए....इसलिए जो जितना खुशमिजाज होता है, वह उतना ही पसंद किया जाता है, इसलिए आप भी खुश रहने का प्रयास करिए।

*"" जिसकी प्रसन्नता को संसार की विघ्न बाधाएँ छीन नहीं सके, वही सच्चा अमीर है ""*
                              
हर किसी को यही लगता है कि वह बहुत दुखी है, उसके जीवन में बहुत संघर्ष है, उसके लिये राह बहुत कठिन है....पर जैसा कहा कि सभी को ऐसा ही लगता है इसका मतलब है कि ‘"अपने "' को त्याग कर और "‘दूसरे’" को अपना कर हम सुखी नहीं हो सकते हैं ।
हम जहाँ हैं, जिस स्थिति में हैं वहीं अगर विश्वास का दामन थाम लें तो सुखी हो सकते हैं क्योंकि अतिसुख देने वाली मात्र एक आत्म विश्वास ही है ।

       
आज का आदमी मेहनत में कम और मुकद्दर में ज्यादा विश्वास रखता है। आज का आदमी सफल तो होना चाहता है मगर उसके लिए कुछ खोना नहीं चाहता है। वह भूल रहा है कि सफलताएँ किस्मत से नहीं मेहनत से मिला करती हैं।
       किसी की शानदार कोठी देखकर कई लोग कह उठते हैं कि काश अपनी किस्मत भी ऐसी होती लेकिन वे लोग तब यह भूल जाते हैं कि ये शानदार कोठी, शानदार गाड़ी उसे किस्मत ने ही नहीं दी अपितु इसके पीछे उसकी कड़ी मेहनत रही है। मुकद्दर के भरोसे रहने वालों को सिर्फ उतना मिलता है जितना मेहनत करने वाले छोड़ दिया करते हैं।
       किस्मत का भी अपना महत्व है। मेहनत करने के बाद किस्मत पर आश रखी जा सकती है मगर खाली किस्मत के भरोसे सफलता प्राप्त करने से बढ़कर कोई दूसरी नासमझी नहीं हो सकती है।
       दो अक्षर का होता है "लक", ढाई अक्षर का होता है "भाग्य", तीन अक्षर का होता है "नसीव" लेकिन चार अक्षर के शब्द मेंहनत के चरणों में ये सब पड़े रहते हैं।

अगर आप अच्छी याददाश्त के धनी हैं तो यह अच्छी बात है मगर कभी-कभी आपकी यही अच्छी याददाश्त आपके लिए गलत साबित हो जाती है। दुनियाँ में हर बार वही नहीं घटता जिसे याद रखा जा सके यहाँ कई बार वो भी घट जाता है जिसे भुलाना अनिवार्य हो जाता है।
       इस दुनियाँ में ऐसे भी लोग हैं जो मात्र यह याद कर-करके दुखी होने में लगे है कि पाँच साल पहले मेरा इतना-इतना नुकसान हो गया था, मेरा अपमान हो गया था अथवा मेरे साथ गलत व्यवहार किया गया था।
      इन पाँच-पाँच साल पुरानी घटनाओं को स्मरण कर रोने वालों को देखकर लगता है, काश अगर इनकी स्मरण शक्ति इतनी तेज न होती तो ये बेचारे फिर व्यर्थ में भूतकाल (बीते समय) का रोना न रोकर वर्तमान की खुशियों का आनन्द ले रहे होते।
       उस व्यर्थ को भुलाने का प्रयास करो जो आपको इस जीवन के आनन्द से वंचित करता है।
गीताजी कहती हैं भूतकाल में जो चला गया और भविष्य में जो मिलने वाला है उसके बारे में सोचकर वह आनन्द का अवसर न गंवाओ जो आपको वर्तमान में मिल रहा है।

          

विचार और दृष्टिकोण से ही जीवन का ताना बाना रचा हूआ है ,,
विचारों के चयन से ही प्रभु माया का खेल निर्भर है ,,आप के अन्दर सकरात्मक दृष्टिकोण और अच्छे विचार हैं तो आप ज्यादे सच्चे मन से अपने धर्म ,अर्थ ,कर्म पथ पर आनन्द पूर्वक जीवन जी रहे हैं ,,
तनावरहित ,,,लेकिन जैसे ही विचारों की अशुद्धि आती है तुरन्त माया भी उसी अनरूप वातावरण तैयार करती हूई मिलेगी ,,विचारों के चयन में प्रभु की भक्ति की शक्ति मायने रखती है ,,
विचार को सारगर्भित रूप देने के लिये ही धर्म बना है पंथ बना पूर्वजों का डर था कि आने वाला समय कहीं मनुष्य भटक न जाये इसलिये उन्होने धार्मिक ग्रन्थों की रचना कर डाली आप रामायण पढ़ डालिये संदेष जो छिपा है कर्तव्य पालन निष्ठा का न समझ में आये तो फिर ,,,,बेकार ही है ,,धर्म का मर्म केवल आप के मन को शुद्ध करने के लिये बना है
जिस व्यक्ति के पास आप होते हो अगर लगे इस व्यक्ति के पास आकर आपके अन्त:चित्त साफ और सपष्ट सकरात्मक दृष्टिकोण बनना प्रारम्भ हो गया अँहकार को अगर त्याग दें और वह व्यक्ति आपके मस्तिष्क के रन्ध रन्ध में आनन्द दे तो
सत्संगी है वो ,,वरना आप चार घण्टा सत्संग सुन रहे हों और विचारों में परिवर्तन ही न हो तो कोई मतलब नहीं ,,,

      
सच है दुनिया का तो काम ही है कहना। ऊपर देखकर चलोगे तो कहेंगे... ‘"
अभिमानी हो गए।‘" नीचे देखकर चलोगे तो कहेंगे... ‘"बस किसी के सामने देखते ही नहीं।‘" आंखे बंद कर दोगे तो कहेंगे कि.... ‘"ध्यान का नाटक कर रहा है‘"....चारो ओर देखोगे तो कहेंगे कि.... ‘"निगाह का ठिकाना नहीं। निगाह घूमती ही रहती है।"‘ और परेशान होकर आंख फोड़ लोगे तो यही दुनिया कहेगी कि....‘"
किया हुआ भोगना ही पड़ता है।‘" ईश्वर को राजी करना आसान है, लेकिन संसार को राजी करना असंभव है।*

दुनिया क्या कहेगी, उस पर ध्यान दोगे तो भजन नहीं कर पाओगे। यह नियम है।*

*अंत मे दोस्तो*

मसला यह भी है इस ज़ालिम दुनिया का..;*
*कोई अगर अच्छा भी है तो वो अच्छा क्यों है..!*

*और.......*

चक्रव्यूह रचने वाले सारे अपने ही होते हैं.!*
*कल भी यही सच था और आज भी यही सच है.!*

संसार में कोई व्यक्ति यदि हमें अच्छा कहे तो क्या हम अच्छे हो जाएंगे ??? नहीं, ऐसा कभी नहीं होगा...अगर हम बुरे हैं तो बुरे ही रहेंगे। अगर हम अच्छे हैं तो अच्छे ही रहेंगे , भले ही पूरी दुनियां हमें बुरा कहे। लोग निंदा करे तो मन में आनंद आना चाहिए। हम पाप नहीं करते , हम किसी को दुःख नहीं देते , फिर भी हमारी निंदा होती है तो उसमें दुःख नहीं होना चाहिए , प्रत्युत प्रसन्नता होने चाहिए। भगवान के द्वारा जो होता है , सब मंगलमय ही होता है। इसलिए मन के विरुद्ध बात हो जाए तो उसमें आनंद मनाना चाहिए।*

एक संत ने कहा है..... ""मेरी निंदा से यदि किसी को संतोष होता है , तो बिना प्रयत्न के ही मेरी उन पर कृपा हो गई , क्योंकि कल्याण चाहने वाले पुरुष तो दूसरों के संतोष के लिए अपने कष्टपूर्वक कमाए हुए धन का भी परित्याग कर देते हैं। मुझे तो कुछ करना ही नहीं पड़ा।""*