गुस्सा क्या है? दूसरे की गलती की सजा खुद को देना !!*

सुपर सुविचार



*प्रयत्न करने से कभी न चूकें..!*

           *हिम्मत नहीं तो प्रतिष्ठा नहीं,*

           *विरोधी नहीं तो प्रगति नहीं..!!*

 *जो पानी में भीगेगा*

*वो सिर्फ लिबास बदल सकता है*

*लेकिन जो पसीने में भीगता है वो*

*इतिहास बदल सकता है.*

 




*किसी ने एक नाराज शख्स से पूछा की गुस्सा क्या है*,

*उसने बहुत खुबसूरत जवाब दिया की दूसरे की गलती की सजा खुद को देना !!*





*उदास होने के लिए उम्र पड़ी है,*

 *नज़र उठाओ सामने ज़िंदगी खड़ी है*




      *बहुत सुन्दर पंक्ति* 

        *जो मुस्कुरा  रहा है,* 

       *उसे  दर्द  ने  पाला  होगा..,*

           *जो  चल  रहा  है,* 

  *उसके  पाँव  में  छाला  होगा.,*

        *बिना संघर्ष के इन्सान*

     *चमक नहीं सकता,  यारों.,*

     *जो जलेगा उसी दिये में तो,* 

            *उजाला होगा...।*




  


           



*ज़िंदगी तो सभी के लिए* 

    *एक रंगीन किताब है ..!*

            *फर्क बस इतना है कि,*

            *कोई हर पन्ने को दिल से*

           *पढ़ रहा है; और*

            *कोई दिल रखने के लिए*

            *पन्ने पलट रहा है।*

    *हर पल में प्यार है*

    *हर लम्हे में ख़ुशी है ..!*

           *खो दो तो यादें हैं,* 

           *जी लो तो ज़िंदगी है* ..!!





विज्ञान हमें कहां से कहां ले आया

*विज्ञान हमें कहां से कहां ले आया*

*पहले :-* वो कुँए का मैला कुचला पानी पीकर भी 100 वर्ष जी लेते थे
*अब :-* RO का शुद्ध पानी पीकर 40 वर्ष में बुढ़े हो रहे हैं

*पहले :-* वो घानी का मैला सा तेल खाके बुढ़ापे में भी मेहनत कर लेते थे।
*अब :-* हम डबल-ट्रिपल फ़िल्टर तेल खा कर जवानी में भी हाँफ जाते हैं

*पहले :-* वो डले वाला नमक खाके बीमार ना पड़ते थे।
*अब :-* हम आयोडीन युक्त खाके हाई-लो बीपी लिये पड़े हैं

*पहले :-* वो नीम-बबूल कोयला नमक से दाँत चमकाते थे और 80 वर्ष तक भी चबा चबा के खाते थे
*अब :-* कॉलगेट सुरक्षा वाले रोज डेंटिस्ट के चक्कर लगाते हैं

*पहले :-* वो नाड़ी पकड़ कर रोग बता देते थे
*अब :-* आज जाँचे कराने पर भी रोग नहीं जान पाते हैं

*पहले :-* वो 7-8 बच्चे जन्मने वाली माँ 80 वर्ष की अवस्था में भी खेत का काम करती थी।
*अब :-* पहले महीने से डॉक्टर की देख-रेख में रहते हैं | फिर भी बच्चे पेट फाड़ कर जन्मते हैं

*पहले :-* काले गुड़ की मिठाइयां ठोक-ठोक के खा जाते थे
*अब :-* खाने से पहले ही शुगर की बीमारी हो जाती है

*पहले :-* बुजुर्गों के भी घुटने नहीं दुखते थे
*अब :-* जवान भी घुटनों और कमर के दर्द से कहराता है

*समझ नहीं आता ये विज्ञान का युग है या अज्ञान का*?

बेटा ! मत पूछ कि शिक्षक कौन है?

*बेटा ! मत पूछ कि शिक्षक कौन है?*

*तेरे प्रश्न का सटीक उत्तर*
                    *तो मेरा मौन है।*
शिक्षक न पद है, न पेशा है,
                     न व्यवसाय है ।
ना ही गृहस्थी चलाने वाली
                         कोई आय हैं।।
शिक्षक सभी धर्मों से ऊंचा धर्म है।                          गीता में   उपदेशित
         "मा फलेषु "वाला कर्म है ।।   
   
        शिक्षक एक प्रवाह है ।
        मंज़िल नहीं राह  है ।।    
          शिक्षक      पवित्र   है।     
        महक फैलाने वाला इत्र है
शिक्षक स्वयं जिज्ञासा है ।
खुद कुआं है पर प्यासा है ।।

वह डालता है चांद सितारों ,
तक को तुम्हारी झोली में।
वह बोलता है बिल्कुल,
तुम्हारी       बोली   में।।
वह कभी मित्र,
        कभी मां तो ,
             कभी पिता का हाथ है ।
साथ ना रहते हुए भी,
                ताउम्र का तेरे साथ है।।
वह नायक ,महानायक ,
तो कभी विदूषक बन जाता है ।
तुम्हारे   लिए  न  जाने,
कितने     मुखौटे     लगाता है।।

इतने मुखौटों के बाद भी,
वह   समभाव  है ।
क्योंकि यही तो उसका,
सहज    स्वभाव है ।।
           
शिक्षक, कबीर के गोविंद से,
                   बहुत ऊंचा है ।
  कहो भला कौन,
              उस तक पहुंचा है ।।

वह न वृक्ष है ,
      न पत्तियां है,
                न फल है।
           वह केवल खाद है।
वह खाद बनकर,
             हजारों को पनपाता है।
और खुद मिट कर,
             उन सब में लहलहाता है।।

शिक्षक एक विचार है।
दर्पण है ,   संस्कार है ।।

शिक्षक न दीपक है,
                  न बाती है,
                         न रोशनी है।
वह स्निग्ध  तेल है।
          क्योंकि उसी पर,
दीपक का सारा खेल है।।

शिक्षक तुम हो, तुम्हारे भीतर की
               प्रत्येक अभिव्यक्ति है।
कैसे कह सकते हो,
            कि वह केवल एक व्यक्ति है।।

शिक्षक चाणक्य, सांदीपनी ,
          तो कभी विश्वामित्र है ।
गुरु और शिष्य की
       प्रवाही परंपरा का चित्र है।।

शिक्षक    भाषा का मर्म है ।
अपने शिष्यों के लिए धर्म है ।।

साक्षी और  तुम्हारा पक्ष है ।
चिर   अन्वेषित उसका    लक्ष्य  है ।।

शिक्षक अनुभूत सत्य है।
स्वयं  एक   अटल   तथ्य है।।

शिक्षक ऊसर को
           उर्वरा करने की हिम्मत है।
स्व की आहुतियों के द्वारा ,
         पर के विकास की कीमत है।।        
वह इंद्रधनुष है ,
जिसमें सभी रंग है।
कभी सागर है,     
       कभी तरंग है।।

वह रोज़ छोटे - छोटे
              सपनों से मिलता है ।
मानो उनके बहाने
                स्वयं में खिलता  है ।।

वह राष्ट्रपति होकर भी,
       पहले शिक्षक होने का गौरव है।
वह पुष्प का बाह्य सौंदर्य नहीं ,
       कभी न मिटने वाली सौरभ है।।

वह भोजन पकवाता है,
        झाड़ू भी लगवाता है ,
            दूध और फल लाता है ।
बावजूद इसके अपनी मुख्य
   भूमिका को भी बखूबी से निभाता है।।

बदलते परिवेश की आंधियों में ,
         अपनी उड़ान को
  जिंदा रखने वाली पतंग है।
अनगढ़ और  बिखरे
        विचारों के दौर में,
   मात्राओं के दायरे में बद्ध,
भावों को अभिव्यक्त
        करने वाला छंद है। ।

हां अगर ढूंढोगे ,तो उसमें
सैकड़ों कमियां नजर आएंगी।
तुम्हारे आसपास जैसी ही
      कोई सूरत नजर आएगी  ।।

लेकिन यकीन मानो जब वह,
   अपनी भूमिका में होता है।
तब जमीन का होकर भी,
         वह आसमान सा होता है।।

अगर चाहते हो उसे जानना ।
ठीक - ठीक     पहचानना ।।

तो सारे पूर्वाग्रहों को ,
          मिट्टी में गाड़ दो।
अपनी आस्तीन पे लगी ,
    अहम् की रेत  झाड़ दो।।
फाड़ दो वे पन्ने जिन में,
           बेतुकी शिकायतें हैं।
उखाड़ दो वे जड़े ,
    जिनमें छुपे निजी फायदे हैं।।

फिर वह धीरे-धीरे स्वतः
              समझ आने लगेगा ।
अपने सत्य स्वरूप के साथ,
             तुम में समाने लगेगा।।
और क्या कहूँ वह वह आशा,जिज्ञाषा है।
सबके सफल जीवन की
परम् अभिलाषा है।।

जय शिक्षक

सोचने लायक बात- बच्चे हमारी कहाँ  सुनते है वो केवल हमारी नकल करते हैं..."

*सोचने लायक बात*

मैं मैट्रो मे सफर कर रहा था। एक औरत किताब पढ़ रही थी सामने बैठा उसका छोटा बच्चा भी किताब पढ़ रहा था तभी मेरे बाजू में खडे एक सज्जन ने महिला से पूछा "आपने स्मार्ट्फ़ोन की जगह बच्चे के हाथ में किताब कैसे दे दी, जबकि आजकल बच्चों को हर समय स्मार्ट्फ़ोन मोबाइल चाहिए।"  उस औरत का जवाब सुनकर मैं थोड़ी देर सोच में पड़ गया. उसका जवाब था...."बच्चे हमारी कहाँ  सुनते है वो केवल हमारी नकल करते हैं..."

                        *— अज्ञात*



*स्त्री के जीवनचक्र का बिम्ब है*
*नवदुर्गा के नौ स्वरूप...*

1. जन्म ग्रहण करती हुई कन्या *"शैलपुत्री"* स्वरूप है।

2. कौमार्य अवस्था तक *"ब्रह्मचारिणी"* का रूप है।

3. विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से वह *"चंद्रघंटा"* समान है।

4. नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह *"कूष्मांडा"* स्वरूप है।

5. संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री *"स्कन्दमाता"* हो जाती है।

6. संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री *"कात्यायनी"* रूप है।

7. अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से वह *"कालरात्रि"* है।

8. संसार (कुटुंब ही उसके लिए संसार है) का उपकार करने से *"महागौरी"* है।

9. धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार में अपनी संतान को सिद्धि(समस्त सुख-संपदा) का आशीर्वाद देने वाली *"सिद्धिदात्री"* हो जाती है।



जब तुम विचित्र ओर पेचीदे मार्गो से उन तत्वों की खोज करोगे जो तुम्हे ईश्वर तक पहुंचा सके, तो तुम तत्व को दूर ही पाओगे। 
प्रत्येक नई सड़क पर तत्व दूर होता जाएगा। विद्या और बुद्धिमता की जितनी अधिक खोज करोगे तत्व को दूर ही पाओगे। कई गुरुओ, किताबो ओर विद्यालयो के विचार तुम्हारे भीतर के विचारों को भी उल्ट पुलट कर देंगे।  

*निस्तब्धता की दशा में अपने भीतर ध्यान करो तुम्हें अंतर्दृष्टि से वो सब कुछ मिल जाएगा जिस की तुम्हें तलाश है। तुम्हारा अपना आत्मा ही सब को व्याप्त कर लेगा।*



*ज्ञान के बाद यदि अहंकार का जन्म होता है* 

*तो वो ज्ञान जहर है*

*और*

*ज्ञान के बाद नम्रता का जन्म होता है*

*तो यही ज्ञान अमृत होता है..*


सुंदर सुविचार



भारत माता की जय........
            दूसरों से नफरत करके हम कभी कुछ नहीं जीतते और दूसरों को स्नेह देकर हम कभी कुछ नहीं हारते आज से हम सबको स्नेह देने वाली शीतला देवी बनें........

मन में से अहंकार निकल जाए तो.. जीवन जीने में मज़ा आ जाता है..

 *रिश्तों की रस्सी कमजोर तब* 

          *हो जाती है ,.....*

    *जब  इंसान  गलत  फहमी में* 

          *पैदा होने वाले......*

    *सवालों  के  जबाब  भी खुद*

          *ही बना लेता है.....!*

    *हर   इंसान   दिल   का  बुरा*

          *नहीं होता ......  ,*

    *बुझ जाता है चिराग अक्सर* 

          *तेल की कमी के कारण...,* 

    *हर बार  कसूर हवा का नहीं* 

          *होता.......!!*

        *Have a nice day*

   

सुपर सुविचार


"किसी बात को  सिर्फ इसलिए मत मानो कि ऐसा सदियों से होता आया है, परम्परा है, या सुनने मे आई है । इसलिए मत मानो कि किसी धर्म शास्त्र, ग्रंथ में लिखा हुआ है या ज्यादातर लोग मानते है । किसी धर्मगुरु, आचार्य, साधु-संत, ज्योतिषी की बात को आंख मूंद कर मत मान लेना । किसी बात को सिर्फ इसलिए भी मत मान लेना कि वह तुमसे कोई बड़ा या आदरणीय व्यक्ति कह रहा है बल्कि *हर बात को पहले बुद्धी, तर्क, विवेक, चिंतन व अनुभूति की कसौटी पर तोलना, कसना, परखना, ओर यदि वह बात स्वयं के लिए, समाज व सम्पूर्ण मानव जगत के कल्याण के हित लगे, तो ही मानना ।"*                                          


"अपने दीपक स्वयं बनो"


सुपर सुविचार




   *पैर में से काँटा निकल जाए तो*

       *चलने में मज़ा आ जाता है,*

*और मन में से अहंकार निकल जाए तो..*

     *जीवन जीने में मज़ा आ जाता है..*

     *चलने वाले पैरों में कितना फर्क है ,*

         *एक आगे है तो एक पीछे  ।*

    *पर ना तो आगे वाले को अभिमान है*

      *और ना पीछे वाले को अपमान ।*

           *क्योंकि उन्हें पता होता है*

      *कि पलभर में ये बदलने वाला है ।*

       *" इसी को  जिन्दगी  कहते है "?* 

       *"खुश रहिये मुस्कुराते  रहिये*  



*"चर्चा और आरोप*
*ये दो चीजें * 
*सिर्फ सफल व्यक्ति  के भाग्य  में ही होती है..!!"*


यह सामान्य नियम है कि दूसरों की निंदा नहीं करनी चाहिए और अपनी प्रशंसा स्वयं नहीं करनी चाहिए।*
*यह ठीक है।*
*परंतु कहीं-कहीं इसके अपवाद भी होते हैं ।*

जब किसी का दोष दूर करना हो , उसे अपराधों से दुखों से बचाना हो , तो ऐसी स्थिति में उसके दोष बताए जा सकते हैं । जैसे माता पिता बच्चों को तथा अध्यापक विद्यार्थियों को उनके दोष बताते हैं....यहां उद्देश्य उनका कल्याण करना है , उन्हें दुखी या अपमानित करना नहीं है ।*

इसी प्रकार से जब दूसरे लोग आप के विषय में नहीं जानते और आपको अपना परिचय स्वयं देना पड़ जाए,  तो ऐसी परिस्थिति में आप अपने गुण स्वयं भी बता सकते हैं , तब उसमें दोष नहीं माना जाएगा।

जैसे सभी डॉक्टर लोग अपने क्लीनिक पर अपनी सारी डिग्रियां स्वयं लिखते हैं । बड़े-बड़े विद्वान तथा  अधिकारी अपने विजिटिंग कार्ड पर अपनी सारी योग्यताएं स्वयं लिखते हैं।

तो इस प्रकार से परिचय देने की दृष्टि से यदि अपने गुण बताए जाएं , तो इसमें दोष नहीं है ।*
*ईश्वर ने भी वेदों में अपना परिचय देने के लिए बहुत सारे गुण स्वयं बताए हैं।*

ईमानदारी से कमाई करने वालों के शौक भले ही पूरे न हो...पर नींद जरूर पूरी होती हैं...!*

इस तस्वीर मे सारी प्लेट उल्टी है।।।
लेकिन चंद एक प्लेट सीधी।।।
जैसे ही आप को सीधी प्लेट नज़र आयेगी वैसे ही सब की सब प्लेट सीधी होजायगी ।।।।
जिन्दगी मे भी इसी तरहा होता है।।।
जब हमारी सोंच अछि हो तो हर चीज़ अछि लगने लगती है।।।।





*ना थके कभी पैर,* 

*ना कभी हिम्मत हारी है,* 

*जज्बा है परिवर्तन का ज़िंदगी में इसलिये सफर जारी है|*


*"मन" सभी के पास होता है.. मगर "मनोबल" कुछ लोगों के पास ही होता है..*






*अंदाज कुछ अलग हैं,*
        *मेरे सोचने का.!!!*

*सबको मंजिल का शोक हैं.!!*
     *और मुझे सही रास्तों का.!!!*
 *लोग कहते हैं, पैसा रखो, बुरे वक्त में काम आयेगा...*
*हम कहते है अच्छे लोगों के साथ रहो, बुरा वक्त ही नहीं आयेगा.*
  







गजानन मह वन्दे गजकंथड़ रुपिनम ।
विघ्नहरणम सदा नौभी ऋद्धि सिद्धि प्रदायकम ।।
नमस्ते सृष्टि रूपाय,नाद रूपाय ते नमः ।
भक्त प्रियाय देवाय ,नमस्तुभ्य विनायकं ।।
 
    
"तन की खूबसूरती एक भ्रम  है..!*
*सबसे खूबसूरत आपकी "वाणी" है..!*
       *चाहे तो दिल "जीत" ले..!*
        *चाहे तो दिल "चीर" दे"!!*
*इन्सान सब कुछ कॉपी कर सकता है..!*
  *लेकिन किस्मत और नसीब नही..!*
        *"श्रेय मिले न मिले,*
  *अपना श्रेष्ठ देना कभी बंद न करें*
     

सुपर सुविचार


*ईमानदारी से कमाई करने वालों के शौक भले ही पूरे न हो...*

*पर नींद जरूर पूरी होती हैं...!*


 किसी से बदला लेना बहुत आसान है मगर किसी का बदला चुकाना बहुत ही मुश्किल। उन्हें भुलाना अच्छी बात नहीं जो विपत्ति में आपका साथ दिया करते हैं। पैसों पर ज्यादा घमंड मत करना उनसे सिर्फ बिल चुकाया जा सकता है बदला नहीं।
      सब कुछ होने पर भी यदि आपको संतोष नहीं है तो फिर आपको अभाव सतायेगा और सब कुछ मिलने पर भी यदि आप चुप नहीं रह सकते तो फिर आपको स्वभाव सतायेगा। यदि फिर आपके मन में अपने पास बहुत कुछ होने का अहम आ गया तो सच मानो फिर आपको आपका ये कुभाव सतायेगा।
       दौलतवान न बन सको तो कोई बात नहीं, दिलवान और दयावान बन जाओ, आनंद ही आनंद चारों तरफ हो जायेगा। जिन्दगी बदलने के लिए लड़ना पड़ता है।
और आसान करने के लिए समझना पड़ता है।

छोटा बनके रहोगे तो मिलेगी हर रहमत प्यारों 
बड़ा होने पर तो माँ भी गोद से उतार देती है

आयुर्वेद 41 दोहे - कृपया इस जानकारी को जरूर आगे बढ़ाएं

*आयुर्वेद दोहे*

पानी में गुड डालिए, बीत जाए जब रात!
सुबह छानकर पीजिए, अच्छे हों हालात!!

*धनिया की पत्ती मसल, बूंद नैन में डार!*
दुखती अँखियां ठीक हों, पल लागे दो-चार!!

*ऊर्जा मिलती है बहुत, पिएं गुनगुना नीर!*
कब्ज खतम हो पेट की, मिट जाए हर पीर!!

*प्रातः काल पानी पिएं, घूंट-घूंट कर आप!*
बस दो-तीन गिलास है, हर औषधि का बाप!!

*ठंडा पानी पियो मत, करता क्रूर प्रहार!*
करे हाजमे का सदा, ये तो बंटाढार!!

*भोजन करें धरती पर, अल्थी पल्थी मार!*
चबा-चबा कर खाइए, वैद्य न झांकें द्वार!!

*प्रातः काल फल रस लो, दुपहर लस्सी-छांस!*
सदा रात में दूध पी, सभी रोग का नाश!!

*प्रातः- दोपहर लीजिये, जब नियमित आहार!*
तीस मिनट की नींद लो, रोग न आवें द्वार!!

*भोजन करके रात में, घूमें कदम हजार!*
डाक्टर, ओझा, वैद्य का , लुट जाए व्यापार !!

*घूट-घूट पानी पियो, रह तनाव से दूर!*
एसिडिटी, या मोटापा, होवें चकनाचूर!!

*अर्थराइज या हार्निया, अपेंडिक्स का त्रास!*
पानी पीजै बैठकर, कभी न आवें पास!!

*रक्तचाप बढने लगे, तब मत सोचो भाय!*
सौगंध राम की खाइ के, तुरत छोड दो चाय!!

*सुबह खाइये कुवंर-सा, दुपहर यथा नरेश!*
भोजन लीजै रात में, जैसे रंक सुजीत!!

*देर रात तक जागना, रोगों का जंजाल!*
अपच,आंख के रोग सँग, तन भी रहे निढाल^^

*दर्द, घाव, फोडा, चुभन, सूजन, चोट पिराइ!*
बीस मिनट चुंबक धरौ, पिरवा जाइ हेराइ!!

*सत्तर रोगों कोे करे, चूना हमसे दूर!*
दूर करे ये बाझपन, सुस्ती अपच हुजूर!!

*भोजन करके जोहिए, केवल घंटा डेढ!*
पानी इसके बाद पी, ये औषधि का पेड!!

*अलसी, तिल, नारियल, घी सरसों का तेल!*
यही खाइए नहीं तो, हार्ट समझिए फेल!

*पहला स्थान सेंधा नमक, पहाड़ी नमक सु जान!*
श्वेत नमक है सागरी, ये है जहर समान!!

*अल्यूमिन के पात्र का, करता है जो उपयोग!*
आमंत्रित करता सदा, वह अडतालीस रोग!!

*फल या मीठा खाइके, तुरत न पीजै नीर!*
ये सब छोटी आंत में, बनते विषधर तीर!!

*चोकर खाने से सदा, बढती तन की शक्ति!*
गेहूँ मोटा पीसिए, दिल में बढे विरक्ति!!

*रोज मुलहठी चूसिए, कफ बाहर आ जाय!*
बने सुरीला कंठ भी, सबको लगत सुहाय!!

*भोजन करके खाइए, सौंफ, गुड, अजवान!*
पत्थर भी पच जायगा, जानै सकल जहान!!

*लौकी का रस पीजिए, चोकर युक्त पिसान!*
तुलसी, गुड, सेंधा नमक, हृदय रोग निदान!

*चैत्र माह में नीम की, पत्ती हर दिन खावे !*
ज्वर, डेंगू या मलेरिया, बारह मील भगावे !!

*सौ वर्षों तक वह जिए, लेते नाक से सांस!*
अल्पकाल जीवें, करें, मुंह से श्वासोच्छ्वास!!

*सितम, गर्म जल से कभी, करिये मत स्नान!*
घट जाता है आत्मबल, नैनन को नुकसान!!

*हृदय रोग से आपको, बचना है श्रीमान!*
सुरा, चाय या कोल्ड्रिंक, का मत करिए पान!!

*अगर नहावें गरम जल, तन-मन हो कमजोर!*
नयन ज्योति कमजोर हो, शक्ति घटे चहुंओर!!

*तुलसी का पत्ता करें, यदि हरदम उपयोग!*
मिट जाते हर उम्र में,तन में सारे रोग।

*कृपया इस जानकारी को जरूर आगे बढ़ाएं*